भार्गव कुलोत्पन्न महर्षि वाल्मीकि को आदिवासी कहना शास्त्र विरुद्ध है और असत्य है।आदिकवि वाल्मीकि आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकिरामायण में स्वयं का परिचय देते ही हैं कि वे किसी किरात-दस्यु-वनवासी कुलोत्पन्न नहीं थे ,अपितु ब्रह्मर्षि भृगु के वंशमें उत्पन्न ब्राह्मण थे। रामायण में ही भार्गव वाल्मीकि ने २४००० श्लोकों में श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी ऐसा वर्णन है –
*“संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्र कम् ! उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना !!" (वाल्मीकि रामायण ७/९४/२५)*
श्रीमद्वाल्मीकिरामायण में वाल्मीकि भगवान् श्रीरामचन्द्र को अपना परिचय देते हुए कहते हैं –
*“प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन" (वाल्मीकिरामायण ७/९६/१८)*
यहाँ स्पष्ट स्वयं को प्रचेता का दशवाँ पुत्र कहा है महर्षि वाल्मीकि ने "प्रचेता" पर प्रकाश डालते हुए ब्रह्मवैवर्तपुराण में आया है –
*”कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टु: सृष्टिविधौ पुनः !*
*य: पुत्रश्चेतसो धातु: बभूव मुनिपुङ्गव: !!*
*तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामह: !"*
– *अर्थात् कल्पान्तरों के बीतने पर सृष्टा के नवीन सृष्टि विधान में ब्रह्मा के चेतस से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , उसे ही ब्रह्मा के प्रकृष्ट चित्त से आविर्भूत होनेके कारण प्रचेता कहा गया है।*
इसीलिए ब्रह्मा के चेतस से उत्पन्न दशपुत्रों में वाल्मीकि प्राचेतस प्रसिद्ध हुए। मनुस्मृति में वर्णन है ब्रह्माजी ने प्रचेता आदि दश पुत्र उत्पन्न किये –
*“अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ! पतीत् प्रजानामसृजं महर्षीनादितो दश !! मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलसत्यं पुलहं क्रतुम् ! प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च !!* *(मनु०१/३४-३५)*
*अतएव महर्षि वाल्मीकि जन्मान्तर में भी ब्राह्मण (भार्गव) थे और आदिकवि वाल्मीकि के जन्म में भी (प्राचेतस) ब्राह्मण थे। शिवपुराणमें कहा है प्राचेतस वाल्मीकि ब्रह्मा के पुत्र ने श्रीमद्रामायण की रचना की* -
*” पुरा स्वायम्भुवो ह्यासीत् प्राचेतस महाद्युतिः ! ब्रह्मात्मजस्तु ब्रह्मर्षि तेन रामायणं कृतम् !!*
*महाभारत में भी आदिकवि वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव) कहा है और यही भार्गव रामायण के रचनाकार हैं* –
*“श्लोकश्चापं पुरा गीतो भार्गवेण महात्मना !*
*आख्याते रामचरिते नृपति प्रति भारत !!”*
*(महाभारत १२/५७/४०)*
शिवपुराण में यद्यपि उनको जन्मान्तर का चौर्य वृत्ति करने वाला बताया है तथापि वे भार्गव कुलोत्पन्न थे। भार्गव वंश में लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे ,उन्ही का दूसरा नाम ऋक्ष था । ब्राह्मण होकर भी चौर्य आदि कर्म करते थे और श्रीनारदजीकी सद् प्रेरणासे पुनः तप के द्वारा महर्षि हो गये।
*“भार्गवान्वयसम्भवः !! लोहजङ्घो द्विजो ह्यासीद् ऋक्षनामोन्तरो हि स: !*
*ब्राह्मीं वृत्तिं परित्यज्य चोर कर्म समाचरेत् ! नारदेनोपदिष्टस्तु तपोनिष्ठां समाश्रितः !!"*
इत्यादि वचनों से भृंगु वंश में उत्पन्न लोहजगङ्घ ब्राह्मण जिसे ऋक्ष भी कहते थे , ब्राह्मण वृत्ति त्यागकर चोरी करने लगा था , फिर नारदजी की प्रेरणा से तप करके पुनः ब्रह्मर्षि हो गये । उन्हें किरात-भील कुलोत्पन्न कहना अनुचित है । २४वें त्रेतायुगमें भगवान् श्रीराम हुए तब रामायण की रचनाकर आदिकवि के रूपमें प्रसिद्ध हुए । विष्णुपुराणमें इन्हीं भृगुकुलोद्भव ऋभु वाल्मीकि को २४वें द्वापरयुग में वेदों का विस्तार करने वाले २४वें व्यासजी कहा है –
*“ऋक्षोऽभूद्भार्गववस्तस्माद्वाल्मीकिर्योऽभिधीयते (विष्णु०३/३/१८)* - यही भार्गव ऋभु २४वें व्यासजी पुनः ब्रह्माजीके पुत्र प्राचेतस वाल्मीकि हुए।
-श्री मुदित मिश्र
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