राजनैतिक दुश्मनी अथवा प्रतिस्पर्धा के मद्दे नजर सत्तापक्ष को यह सहज या स्वाभाविक अधिकार है कि वह अपने वर्ग शत्रु को आगे न बढ़ने दे! मोदी सरकार वही कर रही है जो यदि सत्ता में रहकर कांग्रेस या किसी अन्य राष्ट्रीय विपक्षी दल ने किया होता! किंतु इस संदर्भ में यह काबिले गौर है कि कुछ नेता विशेष सत्ता में रहकर खुद ही देश को लूटते रहे और जबतक वे सत्ता में रहे,तो विपक्ष को भी लूटने का मौका देते रहे!
इस श्रेणी में चंद्रशेखर, देवेगोड़ा, मुलायम,लालू,मुफ्ती, करुणानिधि,मुरासोलीमारन,प्रकाश सिंह बादल और शेख अदुल्ला परिवार प्रमुखता से आते हैं! इनके राज में कभी किसी पर छापे नही पड़े! मनमोहन सिंह जी भी आर्थिक भ्रष्टाचार पर मौन ही रहे! चंद्रशेखर की तरह डॉ. मनमोहन सिंह जी भी अजातशत्रु ही थे !सरकारी भ्रष्टाचार पर कोई सरकार कुछ नहीं कर सकी! चंद्रशेखर ने तो विदेशी कर्ज न चुकाने पर देश का सोना तक गिरवी रखा था!
30-40 साल पहले आम धारणा थी कि सरकारी कर्मचारियों /अधिकारियों के वेतन भत्ते कम हैं इसलिये रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार होता है!फिर पे कमीशन आये और यूनियनों ने लड़ भिड़कर खूब वेतन भत्ते बढवाये तो यथार्थ के धरातल पर देखा गया कि जिसकी जितनी ज्यादा पगार +भत्ते बढ़े,वह उतना ही रिश्वतखोर,मक्कार और महाभ्रस्ट होता चला गया! जब निजीकरण हुआ तब लोगों को पता चला कि सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक उपकर्मों के आला अफसरों ने देश को किस कदर लूटा और कार्य की गुणवत्ता किस स्तर तक गिरती चली गई?
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