सभी सनातनी को डॉ. विकास दिव्यकीर्ति का "दी लल्नटॉप" पर दिया गया पोने तीन घंटे साक्षात्कार को पूरा देखना चाहिए। हालांकि कि यह साक्षात्कार उनके पब्लिसिटी स्टंट का ही हिस्सा है। पिछले कुछ समय से उनके विवादास्पद वीडियो बहुत वायरल हुई, उन सभी पर उन्होंने सफाई भी देने की कोशिश की है।
लेकिन मैं जब सभी सनातनी को वीडियो देखने के लिए कह रहा हूँ तो उसका सांस्कृतिक कारण है। विकास सर का परिवार मूलतः पंजाब से माइग्रेट करके हरियाणा के भिवानी में बस गया था। उनके माता-पिता आर्यसमाजी थें, जिनके घर में प्रतिदिन हवन होता था। उनके माता-पिता दोनों हिन्दी के प्राध्यापक थें। पिता जी आर्यसमाज के दयानंद सरस्वती से संबंधित कॉलेज में ही शिक्षक थें। ऊपर से इनका परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी से भी इस कदर जुड़ा हुआ था कि इनके पिता ने इन्हें ABVP से राजनीति करने के लिए ही दिल्ली विश्वविद्यालय भेजा था। यह दिल्ली में रहते भी आरएएस के संकल्प होस्टल में थें। इनके ऊपर दक्षिणपंथी और संघी होने का टैग लगा हुआ था।
इनका एडमिशन डॉ. जाकिर हुसैन कॉलेज में हुआ। ये उस समय अयोध्या में राम मंदिर बनाने के पक्षधर थें और कारसेवा करने के लिए जानेवाले थें पर किसी कारणवश जा नहीं पायें। यह जब कॉलेज से चुनाव लड़नेवाले थें तो संघ के लोगों ने सतर्क कर दिया कि आपके जान को खतरा है और यह नहीं लड़ें। जो उस समय लड़ा उस पर चाकुओं का हमला हुआ, हालांकि वह बच गया। इनके ABVP के उस समय के तीन मित्रों की हत्या हो गई। दो को चाकुओं के प्रहार से मारा गया और एक को दिनदहाड़े गोली मारी गई। हिन्दू-मुस्लिम क्षात्र राजनीति का वह विद्रूप चेहरा इन्होंने देखा था।
पर एक दिन इनके हाथों में ओशो रजनीश की किताब आ गयी। ये स्वयं मानते हैं कि सबसे पहले ओशो के विचारों ने इनके दिमाग में छेद किया। ये अब हर विषय को तर्क की कसौटी पर कसने लगें। इसके बाद ये कार्ल मार्क्स और मार्क्स वेबर से बहुत प्रभावित हुए और इनका दुनिया देखने का दृष्टिकोण ही बदल गया और ये वामपंथी, फेमिनिस्ट आदि होते चले गयें। जीवन के चार-पाँच साल ये घोर नास्तिक के रूप में व्यतीत कियें, हालांकि अब उसमें थोड़ा परिवर्तन आ गया है।
संघ कहता है कि वह व्यक्तित्व निर्माण करता है। अब यह सोचना पड़ेगा कि संघ कैसा व्यक्तित्व निर्माण करता है कि उसके द्वारा निर्माण किया गया व्यक्तित्व आज इतना बड़ा वामपंथी होकर दक्षिणपंथ की चूलें अकेले दम पर हिला रहा है। आर्यसमाज और संघ की जीवनभर की ट्रेनिंग पर ओशो रजनीश, कार्ल मार्क्स, मार्क्स वेबर जैसे दार्शनिकों के विचार भारी पड़ जाते हैं।
इस व्यक्तित्व निर्माण की संघ की व्यवस्था में कहीं तो कमी रही ही होगी। यह कमी तेजतर्रार युवाओं को बौद्धिक खुराक न देने की कमी है। आज इस कमी की भरपाई दक्षिणपंथ में स्वयं से उदित हुए सैंकड़ों बौद्धिक योद्धा कर रहे हैं जिनका किसी दक्षिणपंथी संगठनों से कहीं दूर-दूर तक नाता नहीं है। आज उनके तीव्र बौद्धिक प्रतिरोध का ही परिणाम है कि जो विकास दिव्यकीर्ति अपने जीवन के पास्ट के बारे में बहुत कम बोलते रहे हैं वे खुलकर सामने आकर बोल रहे हैं कि वे भी पूर्व में ठप्पा मारा हुआ दक्षिणपंथी रहे हैं। आज यह स्वयं से उदित दक्षिणपंथी बौद्धिक रणबांकुरों का ही पराक्रम है कि देश की फिजा बदल गयी है। बड़े-बड़े वीर इन बौद्धिक योद्धाओं के तीव्र प्रतिरोध का सामना करने से बच रहे हैं।
एक बार समय निकाल कर इस वीडियो को अवश्य देखियेगा। विशेषकर ऐसे माता-पिता जिनके बच्चे कॉलेज जाने के मुहाने पर खड़े हैं, उन्हें यह वीडियो अवश्य देखनी चाहिए और इस पर काम करना चाहिए कि उनका बच्चा भले बौद्धिकता की ऊँचाई को प्राप्त करे पर अपनी जड़ों से न कट जाए।
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