एक दिल दहलाने वाली सत्य घटना है,!
1 एक शहीद बाप और उसकी 7 बलिदानी बेटियां ....गुजरांवाला का एक कुआं...
एक परिवार...
लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल की थी। राजवती (रज्जो) 17 तो भगवती (भागो) 16 की थी। पार्वती (पारो) 15 साल और गायत्री (गायो) 13 तथा ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरख की थी। जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी। प्रभावती पेट से थीं।
एक साल...
यह साल 1947 की बात है। हम आजाद हो गए थे। भारत का बंटवारा हो गया था। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती- काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। हम उन्हें हड़प लेंगे।
एक उम्मीद...
पर लाला जी बेफिक्र थे। उन्हें गांधी के आदर्शों पर यकीन था। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं। दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे। और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है। सब 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले लोग हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों पर जाते है। लाला जी का मन कहता था- सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।
एक तारीख...
18 सितंबर 1947। एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुॅंचा। चिल्लाया- लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को… लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा- क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है। मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं।
एक चेतावनी...
उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।” यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद खबर पहुंचानी रही होगी।
एक संवाद...
लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा- लाला जी हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा- हम कहीं नहीं जाएंगे। सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया- वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले- तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती बोलीं- आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं।
एक गुरुद्वारा...
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।
एक भीड़...
अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे,
- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच
एक निशाना...
प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था।
एक प्रतिज्ञा...
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी- हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।
एक इंतजार...
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे। ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।
एक उन्माद...
अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया।
एक सवाल...
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह।
एक कत्लेआम...
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...
एक मुक्ति...
लाजो ने कहा- तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा- जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा- यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।
एक आदेश...
लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा- गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा- मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी। लाला जी बोले- तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।
एक पिता...
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था।
लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है। भारत के विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं। वे पंजाब के अमृतसर में रहते थे। हाल ही में मुझे किसी ने यह लिंक, इस आग्रह के साथ पढ़ने के लिए भेजा था कि इसे हिंदी में अनुवाद कर लोगों के सामने रखा जाना चाहिए
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