सड़क दुर्घटना में, पहाड़ खिसकने में, मंदिरों में दर्शन के लिये उमड़ी भीड़ में जो कांवड़िये मरे,यद्यपि हम उनकी मौत का जिम्मेदार उनको ही मानते हैं! कांवड़ यात्रा में धनिक वर्ग का न तो कोई धनाड़य मरा,न कोई बड़ा नेता मरा, यहां तक कि कोई शंकराचार्य या मठाधीश कांवड़ यात्रा, जुलूस जलसों में जब जाता ही नही, तो मरेगा क्यों?
भारत में प्रायः देखा गया है कि धर्मांध लोगों को अपने शास्त्रीय धर्मसूत्रों या आप्तबचनों में कोई दिलचस्पी नही है। महापुरुषों के बताये मार्ग पर चलने के बजाय केवल सैर सपाटे के लायेद अमरनाथ,वैष्णव देवी,चार धाम,52 शक्ति पीठ, द्वादश ज्योतिर्लिंग,हेम कुंड साहिब,तिरूपति बालाजी,शिर्डी या हज यात्रा पर निकल पड़ते हैं!
इन दिनों कांवड़ यात्रा कुछ ज्यादा ही हाईटैक हो गई है ! 'बम बम बोल' वाले नारों के साथ साथ अब इलेक्ट्रिानिक,डिजीटल साधनों और सोशल मीडिया पर यात्राओं के द्रश्य भी प्रचारित होने लगे हैं! जबकि इन चीजों का धर्म मजहब से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है! जो लोग सत्य,अहिंसा,अस्तेय,ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ,शौच,संतोष ,स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान द्वा इत्यादि के बारे में जानते हैं,वे इस तरह की व्यर्थ बातें नही करते ! और अन्याय,अत्याचार करने वालों से किसीभी किस्म का जायज संबंध रखने के बजाय वे तार्किक और सार्थक संघर्ष करने में विश्वास रखते हैं।
आम तौर पर अमीर-गरीब ,शरीफ-बदमाश सभी किस्म के धर्मांध हिन्दुओं मुस्लिमों को अपने पाखंडी 'बाबाओं' मुल्ले मौलवियों पर अटूट अंध श्रद्धा हुआ करती है। साम्प्रदायिक और जातीय आधार पर वोट जुगाड़ने वाले दलों को ये अंधश्रद्धा के नशे में डूबी नस्ल केवल 'चुनाव जिताऊभीड़' मात्र हैं !इसीलिए वे बाबाओं-कठमुल्लों के पाखंड- व्यभिचार पर चुप्पी साधे रहते हैं। इस तरहकी मानसिकता सिर्फ-हिंदुओं में ही नहीं,बल्कि अल्पसंख्यक वर्ग में भी पाई जाती है। इसी मानसिकता ने विपक्ष को शून्य पर ला खड़ा किया है और सत्तपक्ष को खुल्लम खुल्ला खेलने का मौका दिया है!
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