बुधवार, 17 अगस्त 2022

खलानाम् कंटकानाम् द्विधैव प्रतिक्रिया,

 लगभग साढ़े चौदह सौ साल पहले भारत में और सभ्य संसार में जितने धर्म,पंथ- मत थे,वे सब साइंटिफिक थे ! भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश सभ्य नागरिक गण वेदांत दर्शन से श्रुति,स्म्रति,आगम, निगम पुराण शास्त्रों से प्रेरणा लेते रहे, किंतु इनसे कुछ इतर भगवान आदिनाथ, भगवान कपिल,भगवान श्रीकृष्ण,भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध के उपदेशों पर आधारित सत्य,अहिंसा,करुणा,मैत्री,क्षमा और सद्भाव से प्रेरित सन्मार्ग का अनुसरण अधिकांश जनगण किया करते थे!

कालांतर में कुछ वैष्णव जन तो यह भी मानते थे कि सब कुछ श्रीकृष्ण ही है ! याने वे ईश्वर के पूर्णावतार हैं! ऐंसा मानकर ही तत्प्रेरित प्रेम और विश्व कल्याण के साथ साथ आत्म कल्याणकारी पथ का सतत अनुशीलिन करते हुए इस्कान वाले दिव्य आनंद का अनुभव किया करते हैं!
लेकिन शैतान को यह अमन शांति,यह देवोपम सभ्यता और संस्कृति मंजूर न थी ,सो उसने ये किया कि राक्षसों और मानवों को बराबर समझने वाले हैवान उत्पन्न किये और उन्हें इस हरे भरे सुख शांति संपन्न नखलिस्तान को रौंदने के लिये भारत की ओर भेज दिया! इसके बाद सारी दुनिया लहूलुहान होती चली गई! आज 1450 साल बाद भी नफरत और हिंसा का घना अंधेरा छाया हुआ है ! अब तो अभिव्यक्ति की आजादी पर भी ताले पड़े गये हैं! सच बोलने वाले का गला काट दिया जाता है!
इस दौर के समकालीन अर्थशास्त्री गण उक्त घोर आतंकवाद और साम्प्रदायिक बीमारी का इलाज ढूंड़ने के बजाय दूसरी काल्पनिक बीमारियों का वर्चुअल इलाज पेश करते रहते हैं! दूनिया में कायम मौजूदा आर्थिक-सामाजिक संकट को, नव्य उदारवाद जनित संकट को और अमेरिका या चीन पर ढोलते रहते हैं, जबकि मौजूदा संकट के लिये,अतीत की गुलामी के लिए और आसन्न संकट के लिए, केवल और केवल आतंक वाद और वे अहमक लोग जिम्मेदार हैं, जो हिंसात्मक प्रतिशोध में यकीन रखते हैं! ऐंसे तत्वों के लिए ही
संस्कृत वांग्मय में कहा गया है कि :-
"खलानाम् कंटकानाम् द्विधैव प्रतिक्रिया,
उपानन मुखभंगो वा दूर्तो वा विसर्जनम्!"
* * * *
कविवर अब्दुल रहीम खान -ए-खाना ने लिखा है :-

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें