गुरुवार, 4 अगस्त 2022

मुठ्ठी भर धनवान भये,बाकी सब कंगाल।।

 लोकतांत्रिक व्यवस्था,है घातक शमशीर!

इसके चारों खंब में, कोई नही गंभीर !!
भारत के जनतंत्र को,लगा भयानक रोग।
सत्तापक्ष में घुस गए, कुछ दलबदलू लोग।।
नयी आर्थिक नीति से देश हुआ कंगाल।
काजू-किशमिश हो गयी,देशी अरहर दाल।।
रुपया खाकर बैंक का,चो्ट्टे हुऐ फरार।
पक्ष विपक्ष में हो रही,फोकट की तकरार।।
भारत के बाजार में,अटा विदेशी माल!
डालर जी मदमस्त हैं,रुपया हुआ हलाल!!
अच्छे दिन उनके हुए,अफसर और दलाल।
मुठ्ठी भर धनवान भये,बाकी सब कंगाल।।
जात-पांत आधार पर,आरक्षण की नीति।
बिकट हुई असमानता,निर्धनजन भयभीत!!
आवारा पूँजी कुटिल, व्याप रही चहुं ओर।
मल्टीनेशनल लूटते,दुष्ट मुनाफाखोर।।
बढ़ते व्ययके बजट की, बनी नयी यह नीति!
ऋण पर ऋण लेते रहो,गाओ ख़ुशी के गीत !!
धीरे धीरे सब किये,राष्ट्र रत्न नीलाम।
औने -पौने बिक गए ,बीमा -टेलीकॉम।।
लोकतंत्र की पीठ पर,लदा माफिया राज।
ऊपर से नीचे तलक,बंधा कमीशन आज।।
वित्त निवेशकों के लिए ,तोड़े गये तटबंध।
आनन-फानन कर दिये,श्रमविरुद्ध अनुबंध !!
क्रिप्टो करेंसी ने गजब,ऊंची भरी उड़ान!
आतंकवाद के फेर में,धरती हुई श्मशान!

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