शनिवार, 30 जुलाई 2022

राहुल सांकृत्यायन

 राहुल सांकृत्यायन महान विभूतियों की अग्रिम पंक्ति के अध्येता विचारक और इतिहासकार थे ! जिसने राहुल सांकृत्यायन को पढ़ लिया,समझो उसने घर बैठे सारे जगत का भूत वर्तमान और भविष्य जान लिया! राहुल जी कट्टर हिन्दू (कान्यकुब्ज ब्राह्मण त्रिपाठी) परिवार में जन्मे और जब वे मरे तो उनकी शवयात्रा में हिंदू मुस्लिम ईसाई, बौद्ध और मार्क्सवादी-तर्कवादी -नास्तिक सभी उपस्थित थे।

सोचो कि,अपनी बात को शिद्दत से रखने के लिए विगत सदी के महान आचार्य,दार्शनिक,प्रात: स्मरणीय परम ध्यानयोगी ओशो,( आचार्य रजनीश ) भी कभी कभी अपनी बात को बल देने के लिए राहुल सांकृत्यायन के कथन को प्रस्तुत करते थे, क्योंकि तत्कालीन विश्व के अधिकांश बुद्धिजीवी और दार्शनिक महर्षि अरविन्द और सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन के बाद राहुल सांकृत्यायन को ही सबसे बड़ा विद्वान मानते थे! पढ़े लिखे विद्वान लोग भी उनके कथन को अंतिम प्रमाण मानते थे!
युवा अवस्था में राहुल सांकृत्यायन सनातन हिंदू धर्म की दुर्दशा से आहत होकर *बुद्धम शरणम् गच्छामि " हो गये और अपने चौथेपन में वे‌ शहीद भगतसिंह की तरह कट्टर मार्क्सवादी और अंत में नास्तिक हो गए थे! उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक आते आते भारत में वैसे सभी धर्म मजहब गुलजार थे,किंतु बौद्ध धर्म दर्शन का प्राचीन इतिहास धूमिल हो चुका था। पुरातात्विक अवशेष खोजने में उत्सुक यूरोपीय पुरातत्ववेत्ता राहुल सांकृत्यायन से मार्ग दर्शन लेते रहे !
इसी दौरान राहुल सांकृत्यायन जी हिमालय स्थित तिब्बत,नैपाल, भूटान,वर्मा और लद्दाख से बौद्ध धर्म ग्रंथ खच्चरों पर लाद लाद कर जीर्ण शीर्ण हो चुकी पुरातन पांडुलिपियों को भारत लाकर, अपने देश की सांस्कृतिक आध्यात्मिक और पुरातात्विक विरासत को समृद्ध करते रहे! किंतु बौद्ध धर्म से भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिली और अंत में वे मार्क्सवादी हो गए । और मौत नजदीक आते आते वे परम नास्तिक हो गये!उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति से उनके समकालीन बड़े बड़े तुर्रम खां भी ईर्ष्या करते थे!

बाणभट्ट का साहित्य स्टेविया या गुड़मार बूटी की तरह है।जिसका स्वाद सबसे अलग और उसके हृदयंगम करने के बाद सब फीका लगता है।एक बात औऱ मार्क्सवाद की परंपरा में हमे इसकी भारतीय मुकुटमणि मानवेन्द्र राय को भी स्मरण करना चाहिए।हिंदी के सर्जकों में कबीर के बाद निराला,और राहुल जी ही ऐसे हस्ताक्षर हैं जिनकी करनी और कथनी में कभी अंतर नही रहा।इसिलए उन्हें वाणी का डिक्टेटर,महाप्राण और महापंडित कहा जाता है
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