सोमवार, 4 जुलाई 2022

इस्लामः-

 

(660).इस्लाम दुनियां का सबसे अधिक खतरनाक संगठन है क्योंकि इस संगठन ने धर्म का नकाब भी लगा लिया है और स्वयं को सत्ता के साथ भी जोड़ लिया है।
(661). यदि किसी देश में मुसलमान दस प्रतिशत तक हों तो मानवता के व्यवहार की याचना करते हैं, बीस प्रतिशत हो जाए तो बराबरी के लिए संघर्ष करते हैं और तीस प्रतिशत हो जाए तो अत्याचार शुरू कर देते हैं। यदि संख्या कम हो तो इनका आचरण दारुल अमन का होता है। संख्या बीस प्रतिशत से ऊपर हो जाए तो ये दारुल हरब का लक्ष्य बनाते हैं और संख्या तीस प्रतिशत से ऊपर होते ही तो इनका लक्ष्य दारूल इस्लाम बन जाता है।
(662). मुसलमान भी दो प्रकार के हैंः- (1). धार्मिक (2). साम्प्रदायिक/संगठित। धार्मिक मुसलमान वह होते हैं जो तौहिद (एकेश्वरवाद), रोजा, हज, नमाज और जकात को प्राथमिकता मानकर अन्य रीति-रिवाजों को गौण मानते हैं। संगठित मुसलमान संख्या विस्तार, वेशभूशा, दाढ़़ी, विवाह, तलाक आदि को धार्मिकता की तुलना में अधिक महत्व देते हैं। शुक्रवार की नमाज में भी धार्मिक मुसलमान नमाज को महत्व देता है तो संगठित मुसलमान मौलाना की तकरीर को।
(663). भारत में धार्मिक मुसलमानों की संख्या लगातार घट रही है। सूफी मुसलमान आमतौर पर धार्मिक होते हैं किंतु उनकी संख्या भी घट रही है। संघ परिवार किसी मुसलमान को धार्मिक नही मानता जो कि गलत है ।
(664). संगठन में शक्ति होती है। इस्लाम, धर्म के नाम पर एक संगठन है। संगठन शक्ति के बल पर इस्लाम ने चैदह सौ वर्षो में ही बहुत ज्यादा उन्नति कर ली। हिन्दुत्व विचारों के आधार पर आगे बढ़ता है तो ईसाइयत प्रेम, सेवा, सद्भाव, लोभ, लालच के आधार पर। दोनों ही इस्लाम की संगठन शक्ति के समक्ष नहीं टिक सके। पिछले पांच-छः वर्षो में नरेंद्र मोदी के आने के बाद पूरी दुनियां इस्लाम से सतर्क हो रही है। चीन इस सतर्कता में सबसे सफल रहा है। चीन के प्रयत्न सबसे अच्छे हैं। भारत भी ठीक दिशा में है।
(665). इस्लाम की संगठन शक्ति पूरी दुनियां के लिए चुनौती है। भारत को भी इसे समझना चाहिए किन्तु संघ परिवार इसमें बड़ी बाधा है। संघ परिवार समस्या के समाधान की अपेक्षा अपना लाभ उठाना चाहता है। संघ परिवार की कार्यप्रणाली पूरी तरह संगठनात्मक है धार्मिक नहीं। संघ पहले समान नागरिक संहिता की बात करता था तो अब हिंदू राष्ट्र की करने लगा।
(666). भारत में धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा लगाकर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का घातक प्रयास हुआ। पैंसठ वर्ष तक हिन्दुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा गया। अब मोदी सरकार समान नागरिक संहिता चाहती है तो संघ परिवार मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखना चाहता है। मरता हुआ विपक्ष मुसलमानों को ढाल बनाकर कुछ बचने के लिए प्रयत्नशील है। संघ परिवार को इस विपक्षी मुस्लिम एकता का लाभ मिल रहा है।
(667). कोरोना संकट में तबलीगियों के आचरण ने भारतीय मुसलमानों की पोल खोल कर रख दी। पहले हिन्दुओं के मन में मुसलमानों के विरूद्ध कुछ आक्रोश था घृणा नहीं। अब आक्रोश का स्थान घृणा ने ले लिया है। जो काम संघ परिवार सत्तर वर्षो में नही कर सका वह कार्य तबलीगियों की एक मूर्खता ने कर दिया। अब भारत के हर आदमी को पता चल गया कि भारतीय मुल्ला-मौलवी स्वयं संचालित नहीं हैं। ये मुल्ला-मौलवी विदेशी योजना से संचालित हैं। ये मुल्ला तो सिर्फ माध्यम हैं। वास्तव में तो भारत का मुसलमान विदेशी मुसलमानों की कठपुतली मात्र है।
(668). दुनियां में दो प्रवृत्तियां घातक हैंः- (1). बल (2). छल। साम्यवाद दुनियां की सबसे अधिक खतरनाक विचारधारा है जो छल को अधिक महत्व देती है और इस्लाम दुनियां का सर्वाधिक खतरनाक संगठन है जो बल को अधिक महत्व देता है। दुनियां में इस्लाम और साम्यवाद में कहीं एकता नहीं है किन्तु भारत में दोनो खतरनाक समूह एक साथ मिलकर काम करते हैं।
(669). भारत का अधिकांश मुसलमान स्वयं को शेर समझता है और दूसरों को गाय। उसके अन्दर यह भावना भरी हुई है कि वे भारत के शासक थे और अंग्रेजों ने मुसलमानों से भारत की सत्ता ली थी। इसलिए सत्ता पर उनका पहला अधिकार बनता है। धीरे-धीरे दुनियां में जिस तरह का वातावरण बन रहा है उसमें मुसलमानों को या तो धर्म की दिशा में जाना होगा या समापन की प्रतीक्षा करें। इस टकराव की शुरूआत भारत से सम्भव है और इस टकराव के पहले संघ को धार्मिक या समाप्त करना आवष्यक है।


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