अपने स्वभाव से ही यह तय है कि 'सनातन धर्म' का अनुयाई चाहकर भी किसी बिधर्मी का बलात धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता! क्योंकि उसकी जाति -गोत्र-खाप की संरचना में नवआगुंतक को कोई स्थान नहीं है! और न ही यह 'सनातन धर्म' किसी व्यक्ति अथवा समाज पर तलवार या बन्दूक की ताकत से थोपा जा सकता है।
हालांकि इस सनातन धर्म के अंदर 'सांख्ययोग, ज्ञानयोग कर्मयोग,ध्यानयोग और सुदर्शन क्रिया इत्यादि उत्कृष्ट आध्यात्मिक गुण सूत्र ऐंसे हैं कि संसार का कोई भी मनुष्य बिना धर्म परिवर्तन के ही 'सनातन धर्म'का सहज अनुशरण कर सकता है।
हालाँकि इस्लाम ,बौद्ध ,जैन ,सिख और ईसाइयों की भाँति 'सनातन धर्म' में भी अनेक मत-मतांतर और आंतरिक मतभेद हैं। किन्तु इसके कुछ सिद्धांत और सूत्र कामन हैं!9 वैज्ञानिकता ,तार्किकता से परिपूर्ण हैं। उपनिषद,वेदांत दर्शन और गीता की शिक्षाएं अपनी रचनात्मक बुनावट में सार्वभौम और कालजयी हैं। और इसकी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम और ज्योति पीठ की परम्परा ,द्वादश ज्योतर्लिंग की भारत में भौगोलिक स्थति और प्रमुख नदियों में 'कुम्भ स्नान' वाली परम्परा 'सनातन धर्म' को मानवीय सम्वेदनाओं से जोड़कर और ज्यादा महान बनाती है। शायद इसीलिये 'इसे सनातन धर्म 'कहा गया है। और उसके प्रमुख आर्ष ग्रंथों -वेदों को 'अपौरषेय' कहा गया है। इनमें 'सनातन धर्म' की उदारता ,विनम्रता और महानता के लाखों मन्त्र दर्ज यहीं। उनमें से एक -दो मंत्र यहाँ प्रस्तुत है :
''इन्द्रम् मित्रम् वरुणं अग्निम अहुरथो,दिव्या सा सुपर्णों गरुत्मान,एकम सद विप्रः बहुधा बदन्ति''
अर्थात :-इंद्र,मित्र ,वरुण ,अग्नि ,अहुरमज्द एवं संसार के सभी देवी -देवता ,नैतिक आदर्श ,धर्म सिद्धांत मूलतः एक ही हैं। विद्वान लोग उन्हें भिन्न -भिन्न नामों से ।।अ
अयं निजः परोवेत्ति ,गणना लघुचेतसाम। उदार चरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम।।
अर्थात : ये मेरा है ,ये तेरा है इस प्रकार की सोच 'निम्नकोटि' के लोगों की हुआ करती है। उदार चरित्र के लोग तो सारे संसार को अपना कुटुंम्ब मानते हैं!
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