तांत्रोत्तर भारत के प्रगतिशील साहित्य कारों ,कवियों और राष्ट्रवादियों के साहित्य सृजन में 'भारतीय राष्ट्रवाद' हमेशा शिद्द्त से मौजूद रहा है ,किन्तु अंग्रेजों के बहकाबे आकर दलित पिछड़े जातिवादी नेता -आरक्षणवादी नव धनाड्य नेताओं ,मजहबी धर्म गुरुओं ,कट्टरपंथी,आतंकी अल्पसंख्यकों,भृष्ट नेताओं ,रिस्वतखोर अफसरों -दलालों मुनाफाखोर व्यापारियों ,जमीनदारों,भूतपूर्व राजवंशों के जेहन में 'भारतीय राष्ट्रवाद' सिरे से नदारद रहा है।
विचित्र बिडंबना है कि भारतीय लोकतंत्र का यह भृष्ट 'बुर्जुवा वर्ग ही भारत भाग्य विधाता बन बैठा है।दोषपूर्ण चुनाव प्रणाली स्वाधीनता संग्राम के दरम्यान, आजादी के बाद के दो दशक बाद तक अधिकांश हिंदी कवियों ने फ़िल्मी गीतकारों ने,राष्ट्रवादी चेतना के निमित्त देशभक्ति पूर्ण कविता ,गजल ,शायरी और गीतों का सृजन किया! कुछ अब भी कर रहे हैं और कुछ फिल्मों में 'राष्ट्रीय चेतना -राष्ट्रवाद के निमित्त बहुत कुछ सकारात्मक फिल्माया है।
'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा।' मेरे देश की धरती सोना उगले ,वन्दे मातरम ,आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की ,,,, ए मेरे वतन के लोगो ,,,,,,झंडा ऊँचा रहे हमारा ,,,,,इत्यादि सैकड़ों गीत आज भी लोगों की जुबान पर हैं। किन्तु जिन लोगों का स्वाधीनता संग्राम में रत्ती भर योगदान नहीं रहा,जो अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली बने रहे,वे साम्प्रदायिक संगठन-आजादी के बाद भी अपने-अपने धर्म-मजहब के लोगों को खूंटों से बांधने के लिए हलकान हो रहे हैं ।
कोई कहता है कि भारत *गजवा ए हिंद*होना चाहिये! कोई कहता है कि दारुल हरम होना चाहिये ! कौन बड़ी सी बात धरम पर मिट जाना'! कहने को आतंकियों का कोई मजहब नही ,किंतु कश्मीर से लेकर कोलकाता तक और केरल से लेकर कैराना तक,निरीह हिंदुओं की हत्या करने वाले सबके सब पाकिस्तान परस्त आतंकी ही थे!
दूसरे धर्म मजहब का अध्यन किये बिना कुछ धर्मांध लोग अपने मजहब से बढ़कर दुनिया में किसी और धर्म मजहब को कुछ नही समझते ! सम्भवतः उन्हें अपने रक्तरंजित इतिहास पर घमंड है! लेकिन भारत का मूल स्वभाव करुणा मैत्री,दया,क्षमा और प्रेम है!वतनपरस्तों को अपने अमर शहीदों पर गर्व है! हमें यह याद रखना होगा कि राष्ट्रवाद' का जिम्मा केवल भारतीय फ़ौज ने या कलम के सिपाहियों ने नही ले रखा है ?
Those peoples are Fighting each-other on the Castism,They are are Anti-Nationalist,,,,,,!
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