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आजकल भारत में एक अजीब तरह का वहाबी इस्लाम का प्रचलन बढ़ते जा रहा है , जो अपनी पूरी सांस्कृतिक विरासात को भूल गया है अब न उसे बाबा फरीद याद हैं न अमीर खुसरो वह रसखान , सेख महमंद , संत लालदास , ताज बीबी , संत रज्जब अली , भक्त कारे बेग , संत कमाल साहेब , शाही अली कादर , दारा शिकोह , संत वाजिद , अब्दुल रहीम खानखाना ,भक्त लतीफ शाह , मालिक मोहम्मद जायसी , भक्त सालबेग ( जिनकी समाधि पर जगन्नाथ जी की रथ यात्रा , रुककर सलामी देती है ) भक्त अलीखान , बाबा नुरिद्दिन , संत बाबा मलेक ,बुल्ले शाह , भक्त बाबा दीन दरवेश , संत यारी साहेब , मीर मुराद , नजीर अकबराबादी ,अकबर अली , उमर अली , नासिर मामुद ,लाल मामुद , सैयद मुरतिजा ,रहीमुद्दीन , चांद काजी ,आदि सभी संतो की वाणी भी भूल गया
इन सभी संतो ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राम कृष्ण जगन्नाथ जी की भक्ति का प्रवाह जन जन तक पहुंचाने का काम किया ।
कृष्ण भक्त रसखान की ऐसी ही एक रचना में प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूं जिसे धर्म निरपेक्ष शिक्षा प्रणाली लागू होने के पहले शिक्षा प्राप्त हर व्यक्ति ने अवश्य पढ़ा होगा क्योंकि जबसे भारत में धर्म निरपेक्ष शिक्षा प्रारम्भ हुई है तबसे पाठ्यक्रम से , नानक , तुलसी , मीरा , कबीर , रैदास , नामदेव , रसखान , जैसे संत बाहर हो गए हैं । अब तो शायद कोई भी स्कूली बच्चा इन संतो की कोई भी रचना सुना सकता हो ।
ये है कृष्ण भक्त रसखान की वह प्रतिनिधि रचना ।
।। सेस , महेश , गनेश ,दिनेश , सुरेसहू , जाहि निरंतर गावें ।।
।। जाहि अनादि , अनंत , अखंड , अचेद , अभेद , सुबेध ,बतावें ।।
।। नारद से सुक व्यास रटें, पचि हारे तेऊ पुनि पार न पावे ।।
।। ताहि अहीर की छोहरिया , छछिया भर छाछ पे नाच नचावें ।।
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