सोमवार, 4 जुलाई 2022

कैसे मानूँ कि आपका बताया इस्लाम ही सच्चा हैं

 ह जिस तर्क की मैं बात कर रहा हूँ वह प्राचीन भारतीय दर्शन का हिस्सा हैं। भारत में आम जनता भले ही सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करती हो परन्तु विभिन्न दार्शनिक स्कूल तर्क के बिना बात नहीं करते थे। प्रमाण उनके लिए सर्वोच्च था नहीं तो बहस ख़ारिज हो जाती थी। आपसे भी मैं उसी आधार पर पूँछ रहा हूं कि मैं कैसे मानूँ कि आपका बताया इस्लाम ही सच्चा हैं, जबकि हमें स्वंय मुहम्मद साहब के खास नजदीकियों और शिष्यों के व्यवहार में उस शिक्षा के दर्शन नहीं होते जिनकी बातें आप करते हैं। बिना प्रमाण तो, अपनी अपनी ढपली और अपना अपना राग वाली बात हो गई।

और दुसरी बात यदि इस्लाम में कट्टरपंथी एवं दकियानूसी की बात करे तो यह विचारधारा भी हर काल में बलवती रही हैं। इतनी पुरानी विचारधारा जिसका इस्लाम पर लम्बे समय तक डामिनेशन रहा हैं। एक झटके में गलत या फर्जी बोलकर झिड़की नहीं जा सकती। वस्तुतः अगर लम्बे समय इसे लोग अनुकरण करते रहे तो यही सच्ची विचारधारा मानी जायेगी।
उदाहरण के तौर पर भारतीय वैदिक ग्रंथों में मूर्तिपूजा का कोई सबूत नहीं परन्तु पिछले 1800 वर्षों से हम मुर्तिपूजा के प्रमाण देख रहे हैं। आज यह सर्वव्यापी हैं और हर घर में ऐसे ही पूजा होती हैं। यह वर्तमान में हिन्दु धर्म का एक प्रमुख गुण हैं इसे झुठलाया नहीं जा सकता, भले ही कोई विद्वान वेदों के हवाले से लाख दलील देता रहे कि मुर्तिपूजा हिन्दू धर्म का हिस्सा नहीं हैं। (यह पूर्णत सत्य भी हैं) इसी प्रकार धार्मिक कट्टरवाद और हत्याये, अन्य धर्मों के प्रति कटुता का भाव इस्लाम का नैसर्गिक गुण हैं, इस बात को चेक करने का भी कोई तरीका नहीं कि यह आरम्भिक वर्षों में था या नहीं।। इस्लाम के बारे आरम्भ में क्या था इसे साबित करने का तरीका वहीं पुस्तकें हैं जिन पर सुधारवादियों को संदेह हैं। तो अपनी बात कैसे रखेगे।

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