गीत फिर एक गुनगुनाऊँ क्या!
आग पानी में फिर लगाऊँ क्या!
जूझना है तो सच-बयानी कर,
मैं तुझे आईना दिखाऊँ क्या!
आप आये कि ज़लज़ला आया.
आप आये हैं तो मैं जाऊँ क्या!
प्यार का ख़त जला दिया मैंने,
कोई तस्वीर फिर बनाऊँ क्या!
दिल हलक़ में कहीं न आ जाये,
बारहा फिर से मुस्कुराऊँ क्या!
वो तो बस झूठ-मूठ सोया है,
शोख़ है मैं उसे जगाऊँ क्या!
होंठ के पृष्ठ पर लिखा बोसा,
प्रेम के पाठ भी पढ़ाऊँ क्या!
नश्शा-ए मैं कहाँ उतरता है,
पाँव से भी मैं लड़खड़ाऊँ क्या!
लफ़्ज़ आए हैं माँगने मौका,
इसको छोड़ूँ उसे उठाऊँ क्या!
आग किसने लगायी गुलशन में,
जानते हो तो फिर बताऊँ क्या!
खेत सब चर गए खुले हड़हे,
ज़िंदगी भर उधार खाऊँ क्या!
टूट जायें न आप के सपने,
आपको और आज़माऊँ क्या!
देह पाई है हमनेे माटी की,
आपसे तथ्य मैं छुपाऊँ क्या!
मुझको आती नहीं ग़ज़ल गोई,
मंच पर जाऊँ तो भुनाऊँ क्या!
वाहवाही बहुत मिली तो सही,
पीठ मैंअपनी थपथपाऊँ क्या!
चुक रहा तेल बुझ रही बाती,
ख़ूने दिल शेष है जलाऊँ क्या!
तुमने उसको कफ़न बना डाला,
परचमे हिंद मैं उठाऊँ क्या!
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