अतीत की तमाम वैश्विक क्रांतियों की प्रेरणा पाकर बीसवीं शताव्दी में दुनिया के तमाम सर्वहारा वर्ग ने 'सरमायेदारों से शोषण की मुक्ति के लिये अनथक संघर्ष किये हैं!तब श्रमिक वर्ग के लिये 'काम के घंटे-आठ' सुनिश्चित किये गय .किंतु आधुनिक सूचना संचार क्रांति और औद्योगिक क्राति ने नौकरीपेशा आधुनिक युवाओं के काम के घंटे बढ़ाकर उन्हें कोलू का बैल बना डाला है!
सोवियत अक्टूबर क्रांति तथा आजादी से पूर्व संसार की समस्त सकारात्मक क्रांतियों ने भारत,दक्षिण अफ्रीका हिंदचीन,जैसे गुलाम राष्ट्रों को आजाद कराने की महत प्रेरणा कदी और राष्ट्रवादी'स्वतंत्रता' का अर्थ सिखाया है!इन्ही क्रांतियों की बदौलत सारी दुनिया में धर्मनिरपेक्षता, अंतरराष्टीयतावाद और लोकतंत्र की धूम मच रही है !
भारत के दुर्भाग्य से,कुटिल पड़ोसियों की घोर अनैतिक हरकतों से और महाभ्रुष्ट पूंजीवादी भ्रस्ट व्यवस्था के परिणाम स्वरूप, आजादी के 75 साल बाद भी भारतीय जन-मानस में ,'राष्ट्रवादी चेतना नदारद है! केवल मुठ्ठी भर वामपंथी ही सच्चे राष्ट्रवादी है़! चुनावी नारों तक सीमित संघ परिवार को भी राष्ट्रवाद का ककहरा याद है। कुछ मुठ्ठीभर शायरों, कवियों और लेखकों की रचनाओं में भी यह राष्ट्रवाद सिसक रहा है।
व्यहारिक रूप से अधिकांस राजनैतिक दल और उनके नेता अपने ही मुल्क की मुखालफत करते रहते हैं! एक खास आतंकी कौम के गुमराह युवा भारत की बर्बादी के सपने देख रहे हैं! जय हिंद
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