मंगलवार, 4 मई 2021

क्षेत्रिय पार्टियों का जनाधार

 प्राय: देखने में आ रहा है कि मोदी सरकार की असफलता के कारण आम जनता क्षेत्रीय दलों की ओर मुखातिब हो रही है! हमें यह याद रखना चाहिये कि क्षेत्रिय पार्टियों का जनाधार भाषाई या क्षेत्रीय ही हो सकता है!

इस क्षेत्रीय भावना के कारण ही विगत 70-75 साल में तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य अब तक कावेरी विवाद नही सुलझा पाए हैं!
डीएमके,एआईडीएमके,शिवसेना,त्रिन्मूल कांग्रेस,नेशनल कांन्फ्रेंस,अकाली दल, सपा, वसपा,जदयू,राजद इत्यादि पुछल्ले दलों ने कभी कोई राष्ट्रीय अर्थ नीति या अंतर्राष्ट्रीय नीति घोषित नही की! ये सभी व्यक्तिवादी दल, केवल,जाति भाषा और साम्प्रदायिकता के आधार पर ही जिंदा रहते हैं! शिवसेना के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों के शब्दकोश में राष्ट्र शब्द नदारद है!
भारत में राष्ट्रीय स्तर की सिर्फ तीन पार्टियां हैं!कांग्रेस,भाजपा और लैफ्ट ( वामपंथ)! चूंकि भाजपा के पास चुनाव जिताने के लिये कैडर तो है किंतु कोई जनोन्मुखी आर्थिक नीति नहीं है,अत: भारत के लिये सिर्फ कांग्रेस और कम्युनिस्ट ही सही राजनैतिक दल हैं!
अत्यंत दुख और शर्म की बात है कि जिस बंगाल में कांग्रेस और लैफ्ट ने 35-35 साल शासन किया,वहाँ उनका खाता ही नही खुल सका! पाँव में नकली पट्टी बांधकर ममता ने भाजपा को नही,कांग्रेस और लैफ्ट को नही,धर्मनिर्पेक्षता को हराया है!

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