बुधवार, 12 मई 2021

दवाफरोशों के चेहरों पै चमक आई है!

 बुलंदियों पर है मुकाम उनका,

फिर भी मुस्कराना नहीं आता!
दुनिया भर की खुशियाँ नसीब हैं,
बस खिलखिलाना नहीं आता!!
न जाने क्यों देता है खुदा उन्हें ,
जिन्हें खुदाई जताना नही आता!
जिन्हें खुदकी आभासी छवि के सिवा,
और कुछ भी नजर नहीं आता!!
वक्त और सियासत ने बख्स दी,
उनको शख्सियत कुछ ऐंसी कि!
श्मशान की लपटों मुरझाये चेहरों,
की तरफ उनका ध्यान नही जाता!!
माना कि आफत की वेला आई है,
दवाफरोशों के चेहरों पै चमक आई है!
काली स्याह रात का अँधेरा घना,
ऊषा का नजारा नजर नही आता!!
उनके दावे पर एतवार करे कौन,
की हम शबे-रात के हमसफर होंगे !
जब हमें ही अपने उत्तरदायित्व का,
ठीक से वहन करना नहीं आता!!
श्रीराम तिवारी

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