है आज अँधेरा हर जानिब और नूर की बातें करते हैं !
नज़दीक की बातों से ख़ाइफ़ हम दूर की बातें करते हैं !!
तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए,
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं !
ये लोग वही हैं जो कल तक तंज़ीम-ए-चमन के दुश्मन थे,
अब आज हमारे मुँह पर ये दस्तूर की बातें करते हैं !!
इक भाई को दूजे भाई से लड़ने का जो देते हैं पैग़ाम,
वो लोग न जाने फ़िर कैसे जम्हूर की बातें करते हैं !
इक ख़्वाब की वादी है जिस में रहते हैं हमेशा खोए हुए,
धरती पे नहीं हैं जिनके क़दम वो तूर की बातें करते हैं !!
क्या ख़ूब अदा है उनकी "उबैद"अंदाज़-ए-करम कितना हसीं,
मजबूर के हक़ से ना-वाकिफ़ मजबूर की बातें करते हैं !
है आज अंधेरा हर जानिब और नूर की बातें करते हैं!!
ख़ाइफ़/afriad, भयभीत,जम्हूर/Rebulic,
तूर/पहाड़ का नाम !
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