बुधवार, 26 मई 2021

दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों से कुछ चुनिंदा शेर*

*न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे,

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए!
*वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए!
*ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा!
*एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है!
*मौत ने तो धर दबोचा एक चीते की तरह,
*ज़िंदगी ने जब छुआ तो फ़ासला रखकर छुआ!
*एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख!
*मत कहो, आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है !
*हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए!
*मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएँगे,
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएँगे!
*तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ!

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