इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
शुक्रवार, 28 मई 2021
हर ज़ख़्म छिपाते जाएँ!
आपका शौक़ है बस आग लगाते जाएँ,
हम शिकायत न करें, सिर्फ़ बुझाते जाएँ।
तुम चमन बेच भी डालो तो कोई बात नहीं,
हमसे उम्मीद कि हम साथ निभाते जाएँ !
ज़ख़्म पर ज़ख़्म लगाओ तुम्हें डर किस का है?
हम पे लाज़िम है कि हर ज़ख़्म छिपाते जाएँ!
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