मान लीजिये आप सरेआम लुट गये। लुटेरों ने आपके तन पर कपड़ों के अलावा कुछ और नहीं छोड़ा। आप रोते-बिलखते थानेदार के पास पहुँचे। अगर थानेदार रपट लिखने के बदले आपको हितोपदेश दे—“रूपया-पैसा सब सांसारिक मोहमाया है। इन क्षुद्रताओं से उपर उठो और मोक्ष की कामना करो”, तो कैसा रहेगा!
हमारे समय की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि जिन बातोँ को चुटकुला मानकर हंसते हैं वो अगले दिन सचमुच हमारी आँखों के सामने घटित होने लगती हैं। दो महीना पहले तक कोरोना युद्ध जीत लेने और वैक्सीन बांटकर पूरी दुनिया को कोरोना मुक्त बनाने का दावा कर रहे विश्वगुरू हालात बिगड़ते ही अंतर्ध्यान हो गये। उनकी जगह मोर्चा संभाला विश्वगुरू के गुरू मोहन भागवत ने।
जब तन नंगा हो लाज बचाने के लिए दर्शन की लंगोटी ही काम आती है। भागवत जी ने पूरे भारत को आध्यात्मिक ज्ञान दिया-- “कोरोना से मरने वाले मरे नहीं बल्कि मुक्त हुए हैं।“
ये सुनते ही मेरी आंखों सामने कई साल पहले ‘मुक्त’ हुई दो विभूतियों हरने पांड्या और जज लोया की तस्वीर घूमने लगीं।
भागवत जी ने ब्रहज्ञान दिया और इसे आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया कुछ साहित्यकार, चिंतक, मनीषी टाइप लोगों ने।
किसी ने कहा-- ‘ राम-राम! राजनीति इतनी दूषित हो गई है कि अब देखा नहीं जाता। पक्ष और विपक्ष लड़ रहे हैं। शर्म आनी चाहिए। मैंने तो अपनी आंखें बंद कर ली हैं।‘
मां शारदा के उपासक विद्या वाचस्पति टाइप लोग इतने मासूम क्यों होते हैं कि उन्हें यह समझ में ना आये कि अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन के बिना लोगों के तड़प-तड़पकर मर जाने का जिम्मेदार कौन है?
हरिशंकर परसाई कह गये हैं “ अपनी बेइज्ज़ती में दूसरों को भी शामिल कर लो तो आधी इज्ज़त बच जाती है।“ इस समय पढ़े-लिखे लोगों का एक तबका यही कर रह है।
वो सरकार की आधी इज्ज़त बचाने के लिए छायावादी किस्म की भंगिमाएं अपना रहा है.. जैसे ये तो हमेशा से होता आया है।
माफ कीजियेगा ये हमेशा से नहीं होता आया। अगर होता आया होता तब भी वर्तमान को वैध ठहराने का आधार नहीं बन सकता था।
सिस्टम की खामियां थीं और सुधार के मांग लगातर उठ रही थी। इसीलिए तो सरकार बदली थी। लेकिन ये पहली ऐसी सरकार है, जो अपने वोटरों को इंसान मानने तक को तैयार नहीं है।
उत्तर प्रदेश से बहकर बिहार पहुंची सैकड़ों लाशों के बारे में पूछा गया तो यूपी के एक मंत्री ने फरमाया “ इन लाशों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है। प्रदेश बीजेपी की सरकार है, इसलिए जानबूझकर उसे बदनाम करने की साजिश की जा रही है।“
प्रयागराज में मिली हज़ारों लाशों के बारे सरकार क्या कहेगी? खुद बीजेपी के एक विधायक कह चुके हैं कि अगर मैं सवाल पूछूंगा तो देशद्रोह के इल्जाम में जेल भेज दिया जाउंगा।
कोरोना की जब पिछली लहर आई थी तो यूपी सरकार के मंत्री और क्रिकेटर चेतन चौहान ने एक सरकारी अस्पताल में बदइंतजामी के बीच तड़प-तड़पकर दम तोड़ा था। उनके साथ भर्ती लोगों ने बताया था कि किस तरह वो मदद मांगते रहे और स्टॉफ उनकी अनसुनी करता रहा।
बीजेपी के कई विधायक और मंत्री भी कोरोना की भेंट चढ़ गये हैं। मगर उनके परिजन व्यवस्था के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकते। इससे अच्छे दिन और क्या होंगे?
इस समय पूरा सिस्टम कुछ वैसे ही चल रहा है, जिस तरह कोई क्रिमिनल सिंडिकेट चलता है। कोई गवाह मुंह खोले, उससे पहले उसका काम लगा दो।
तो उपदेशमाला आगे भी इसी तरह जारी रहेगी। असंख्य लोग जिनके अपने घर में सबकुछ ठीक-ठाक है, वो भारतीय संस्कृति की महानता, सांसरिक बंधनों से मुक्ति और मोक्ष पर प्रवचन देते दिखाई देते रहेंगे। सुनते रहिये और गुनते रहिये।
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