विचार शक्ति' की महत्ता तो जग जाहिर है। इसके दुरूपयोग से इंसान हैवान या शैतान बन जाता है , इसके सदुपयोग से इंसान दुनिया में इंसानियत का झंडा भी बुलंद कर सकता है। मनुष्य अपने अवचेतन मन की वृत्तियों को पुन्जीभूत कर उससे उतपन्न ऊर्जा के मार्फत प्राकृतिक तत्वों और अन्य प्राणियों के व्यवहार को भी बदल सकता है। यह कोई दैवीय चमत्कार नहीं अपितु विशुद्ध मनोविज्ञान है। इस प्रक्रिया का आस्तिक -नास्तिक से कोई वास्ता नहीं। यह विशुद्ध मानसिक मशक्क्त है। प्रायः हर जागरूक मनुष्य यह जानता है कि वह यदि अपने विचारों पर ध्यान दे तो उसके विचार ही शब्द बन जाते हैं। मनुष्य यदि शब्दों पर ध्यान दे तो वे कर्म बन जाते हैं ,याने कर्म का कारण या हेतु बन जाते हैं। विचार शक्ति से ही दुनिया में वैज्ञानिक क्रांति हुई है। विचार शक्ति से ही राजनैतिक -सामाजिक -सांस्कृतिक क्रांतिकारियों ने अनेक क्रांतियाँ की हैं। और तमाम जेहादियों -धर्मांध पाखंडियों ने भ्रान्तियाँ भी उतपन्न कीं हैं।
विचार शक्ति का सिद्धांत जब नकारात्मक संदर्भ में सही हो सकता है तो सकारात्मक अर्थ में सही क्यों नहीं होगा ? बीसवीं शताब्दी के नाजीवादी -फासीवादी हिटलर का मंत्री गोयबल्स कहा करता था कि एक झूंठ को बार-बार बोलो वह सच में परिणित हो सकता है ! भारत में भी कुछ लोग हिटलर के अनुयायी हैं , वे भी इस विचार शक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का दुरूपयोग करते हुए राज्य सत्ता हासिल करने में कामयाब हो रहे हैं। लेकिन उनका विनाश सुनिश्चित है। अंततोगत्वा सामूहिक जन चेतना की विचार शक्ति ही सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष उदारवादी-जनवादी व्यवस्था के निमित्त मानवता का सिंहनाद करेगी।
जो लोग धर्मनिपेक्ष भारत ,समाजवादी भारत ,खुशहाल भारत ,मजबूत भारत चाहते हैं ,उन्हें भीड़तंत्र को लोकतंत्र नहीं मान लेना चाहिए ,बल्कि अपनी उत्कृष्ट विचार शक्ति की सामूहिक सकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। इस विचार शक्ति को सिर्फ सार्वजानिक जीवन में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत जीवन को भी सदुपयोग करके जीवन को कुछ हद तक खुशहाल बनाया जा सकता है। यकीन न हो तो एक प्रयोग करके देखें ! सुबह से दोपहर तक झूंठ-मूठ ही सही रोज खुश रहने का नाटक करें ,आप पाएंगे कि दोपहर बाद कोई आप को दुखी नहीं कर सकता ! श्रीराम तिवारी :-
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