गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

वैदिक कविता

 वैदिक कविता

भय के सब कारण मिटा दो
~~~~~~~~~~~~~~~
ऋग्वेद : षष्ठ मंडल : सूक्त-6
ऋषि : भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
~~~~~~~~~~~~~~~
प्र नव्यसा सहसः सूनुमच्छा
यज्ञेन गातुमव इच्छमानः।
वृश्चद्वनं कृष्णयामं रुशन्तं
वीती होतारं दिव्यं जिगाति।।
(6:6:1:)
♨️
तुम्हारे मार्ग पर आना चाहते हैं हम,
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
यह यज्ञ हमें तुम्हारे पास वहाँ ले आये,
जहाँ हमारा सब अज्ञान झड़ जाये।
तुम आकर्षित करते हो हमें,
हे देदीप्यमान्! तुम होता हो, दिव्य हो।।1।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
तुम श्वेतवर्णी हो, पावक हो,
तुम्हारी ध्वनि गूँज उठती हृदय में।
हे अजर-अमर! हे युवतम!
अंतःशत्रुओं का संहार कर
हमारी जीवन-यात्रा को सफल करो।।2।।
हे पवित्रताओं के अधिपति!
तुम्हारी प्रेरणाएँ शुचिता से ओतप्रोत हैं।
तुम हमारे आचरण को शुद्ध करो,
अपने प्रकाश से प्रक्षालन करो घनान्धकार का,
हमारे जीवन का पथ प्रशस्त करो।।3।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के देव!
तुम पवित्र ज्वालाओं में प्रत्यक्ष हो।
इस पृथ्वी पर बो रहे हो ज्योति-बीज,
अश्वों के बंधन खोल रहे हो तुम।
तुम विश्व-भ्रमण पर निकले हुए
वह शिखर बना रहे हो, जहाँ पहुँचना है हमें।।4।।
तुम ज्योति की वर्षा करते हो,
सृजन देते हो, जीवन की लय देते हो।
वे वरदान देते हो तुम ही हमें,
जो क्रूर बंधनों को शिथिल कर दे।
द्वेष के जंगल जलाने की शक्ति देते हो तुम ही।।5।।
हे ज्योतिर्मय विद्याओं के स्वामी!
अपना आलोक पृथ्वी पर फैला दो।
भय के सब कारण मिटा दो,
दुर्घर्ष शत्रुओं के सब घेरे तोड़ दो।।6।।
तुम अनिर्वचनीय हो, अद्भुत हो,
हे आह्लादमय! उज्ज्वल धन दो हमें,
समृद्ध करो हमारी चेतना को।
तुम्हारे पास आनंद का कोश है,
वह कोश हमारे लिये खोल दो।।7।।

सितारा नहीं बना

 दु:ख दर्द की मिठास को खारा नहीं बना

ख़ामोशी को ज़ुबान दे ,नारा नहीं बना
जिसने जमीन से लिया है खाद औ' पानी
उस ख्वाब को फ़लक का सितारा नहीं बना
वो बेज़ुबाँ है पर तेरी जागीर तो नहीं
उसको,शिकार के लिए, चारा नहीं बना
घुटने ही टेक दे जो सियासत के सामने
अपने अदब को इतना बिचारा नहीं बना
जज़्बात कोई खेल दिखाने का फ़न नहीं
जज़्बात को जादू का पिटारा नहीं बना
इंसान की फितरत तो है शबनम की तरह ही
अब उसको,जुल्म करके,अंगारा नहीं बना

भारतवंशी

 आजादी के पूर्व पश्चिमी पंजाब- हिंदुस्तान याने अखंड भारत का हिस्सा था!देश का विभाजन हुआ तब लाखों हिंदू वहां मार दिये गये! जो जान बचाकर भारत आ गये या अफ्रीका, यूके, अमेरिका चले गए वे अपने आपको आज भी भारतवंशी मानते हैं! सिर्फ हिंदू ही नहीं बल्कि अनेक मुसलमान ,ईसाई और पारसी जो अमेरिका, यूरोप जा बसे, वे भी अपने आपको भारतवंशी ही कहते हैं !

1947 में विभाजन भारत का हुआ था, अतएव इस विभाजन से पूर्व *अखंड भारत* में पैदा हुआ हर शख्स भारतवंशी माना जाएगा! शहीद भगत सिंह का जन्म खट्टरकलां (अब पाकिस्तान) में हुआ था, किंतु सारी दुनिया उन्हें भारतीय मानती है, किंतु पाकिस्तान वाले भगतसिंह को अपना नही मानते!पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी पाकिस्तान में पैदा हुए थे, किंतु कभी किसी पाकिस्तानी ने दावा नही किया कि श्री आडवानी पाकिस्तानी हैं! भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह,इंद्रकुमार गुजराल और अभिनेता पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार,मनोज कुमार इत्यादि सब अखंड भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्में, और ये सब अपने आप को भारतवंशी ही मानते रहे! किंतु पाकिस्तान में कभी किसी ने नही कहा कि ये सब पाकिस्तानवंशी हैं!
इसी तरह ऋषि सुनक के दादा परदादा अखंड भारत में ही जन्में थे ! किंतु जब पाकिस्तान बनने की खबर आई और मुस्लिम दंगाइयों ने हिंदुओं सिखों पर हमले शुरु कर दिये तब अधिकांश हिंदू जान बचाकर भारत आ गये! ऋषि सुनक के दादा की ससुराल दिल्ली में थी, वहां वे अपनी पत्नी को छोड़ काम धंधे की तलाश में बाया नैरोबी, तंजानिया -यू.के.जा पहुंचे ! बाद में जब सुनक के दादा यूके में सैटल हो गये तो सुनक की दादी और परिवार को दिल्ली से यूके बुलवा लिया! इस परिवार ने बहुत बुरे दिनों को देखा है, अनेक तकलीफ उठाने के बावजूद अपना धर्म (सनातनी हिंदू) नही छोड़ा!
बेशक ऋषि सुनक इंग्लैंड में जन्में और पूर्णत : ब्रिटिशस हैं! किंतु उन्हें अपने भारतवंशी और हिंदू होने पर गर्व है! नैरोबी वाले, तंजानिया वाले कुछ नहीं कह रहे हैं, केवल पाकिस्तान का भारत विरोधी मीडिया गुंजरावाला की रट रहा है! जबकि अखंड भारत के उसी गुजरांवाला में महाराजा रणजीतसिंह, इंद्रकुमार गुजराल,सरदार मन मोहनसिंह,और दिलीप कुमार (यूसुफ खान) भी पैदा हुए, किंतु किसी पाकिस्तानी ने कभी दावा नही किया कि ये पाकिस्तानी हैं!
लेकिन ब्रिटिश सरकार की चमचा गिरी करने के वास्ते ऋषि सुनक को पाकिस्तानी बताया जा रहा है, इस मुहिम में कुछ मुर्ख भारतीय भी शामिल हैं! गोकि पाकिस्तान बना ही 1947 में था ! जबकि ऋषि सुनक के हिंदू पूर्वज अखंड भारत में जन्मे और पाकिस्तान बनने से बहुत पहले भारत आये और यहां से अफ्रीका यूरोप चले गए!
यदि ऋषि सुनक भारतवंशी नही होते ,हिंदू नही होते तो शायद ही नारायण मूर्ति, सुधामूर्ति के दामाद बन पाते!अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन ने हिंदुओं को दीवाली की शुभकामनाएँ देते समय भारतीय आजादी की 75 वीं ववर्षगांठ पर एक भारतवंशी (ऋषि सुनक) के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने की भी
बधाई
दी!
ज्यों ही ऋषि सुनक के बारे में मीडिया ने लिखा कि वो भारतवंशी हैं, त्यों ही भारत विरोधी ताकतों ने विचारे ऋषि सुनक के पूर्वजों की कुंडली बना डाली! और सिद्ध कर दिया कि वो भारतवंशी नही हैं! चलो मान लिया कि ऋषि सुनक भारतववंशी नही हैं, लेकिन इतना तो मान लो कि वे विख्यात भारतीय पूंजीपपति इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति एवं सुधा मूर्ति के दामाद तो हैं! गोकि ऋषि सुनक भारतीय दामाद हैं!
अब जलने वाले जला करें! हमाये ठेंगे सें ! ऋषि सुनक पक्का हिंदू है और भारतवंशी भी!
See insights

 बेरोजगारों को मंदिर मस्जिद नहीं ,

रोजगार और राशन -पानी चाहिये!
बदनसीब मुर्दों को बैंकों खाता नहीं,
बदन पर दो गज कफ़न ही चाहिए!!
स्वच्छता सदाचार सुशासन के नारे,
नही राजनैतिक इच्छा शक्ति चाहिये!
हरएक को शिक्षा का समान अधिकार,
और हर हाथ को काम मिलना चाहिए!
प्रजातंत्र में दलगत जुबानी जंग ही नहीं,
व्यवस्था भी लोकतांत्रिक होनी चाहिए!
देश की एकता अखंडता अक्षुण्ण रहे,
और वतन पर आंच नहीं आनी चाहिए!!
इस सिस्टम में किंचित यह संभव नहीं कि,
हरएक के मनकी मुराद पूरी होनी चाहिये
किंतु न्यूनतम संसाधनों की आपूर्ती सतत,
देश के हर नागरिक तक पहुंचनी चाहिए!
सौभाग्य से इस धरा पर वह सब मौजूद है,
जो जिंदा रहने वास्ते प्राणीमात्र को चाहिये!
शोषण,उत्पीड़न केवल इंसानी फ़ितरत है
इसीलिए अन्याय का प्रतिकार होना चाहिये!!
बार बार के पूंजीवादी सत्ता परिवर्तन से-
मुनाफाखोरों को न जाने कितना चाहिये !
कालेधन वालों को संरक्षण क्यों मिलता रहा
गड़बड़ी कहां पर है यह स्पष्ट होना चाहिए।।
श्रीराम तिवारी

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

ज़ेहाद या धर्मयुद्ध :यक्ष प्रश्न

 जिनको लगता है कि शिवराज पाटिल गलत बोले हैं, वे एक बार गीता अवश्य पढ़ें, क्योंकि पाटिल के बयान से वही असहमत होगा, जिसने गीता पढ़ी ही नहीं! दरसल भारत की प्राचीन आवाम ने भगवान श्रीकृष्ण के बजाय अहिंसावादियों का और पंचशील सिद्धांतों का अनुसरण ज्यादा किया! हमारे पूर्वज सभ्य और विनम्र होते चले गए! उन्हें नही मालूम था कि धरती के दूसरे हिस्सों में जाहिल कौमे उत्पन्न होंगी और ताकतवर होकर भारत पर बर्बर हमला करेंगी!

इसके अलावा पंडे पुजारियों ने देवी देवताओं के मंदिर बनाने,उनकी लीलाओं का वर्णन करने के बजाय यदि भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया गीता का संदेश या भगवान श्रीराम द्वारा दिया गया लंकाकांड संदेश अपने आचरण में उतारा होता तो धरती पर आर्यों के अलावा दूसरा कोई धर्म होता ही नहीं!
वैसे भी ज़ेहाद से आशय
"धर्म की रक्षा हेतु युद्ध से है,यहाँ धर्म से आशय केवल धर्म,मज़हब नहीं है,अपितु इसकी व्याख्या विशद है,अपनी संस्कृति की रक्षा,अपनी सन्तति की रक्षा, अपनी सम्पति की रक्षा, अपनी धरोहर की रक्षा भी धर्म ही होता है,उसके लिए अगर युद्ध किया जाये तो वह ज़ेहाद या धर्मयुद्ध कहलाता है।"शिवराज पाटिल
अब इसमें गलत क्या बोला गया है?
ये यक्ष प्रश्न है!

अपना हिंदुस्तान देख ले

 !! कैसा है शमशान देख ले !!

!! चल मेरा खलिहान देख ले !!
!!अगर देखना है मुर्दे को !!
!!भूंंखा कोई किसान देख ले !!
!! सर्वनाश का सर्वे कर कर !!
!! पटवारी धनवान देख ले !!
!! पोर अंगूठा टिका टिकाकर!!
.!! सेठ कोई बेईमान देख ले !!
!! घावों में हैं नमक रगड़ते !!
!! सरकारी अफसरान देख ले !!
!! राम और राज दोनों रूठे हैं !!
!! मुख मलीन मुस्कान देख ले !!
!! कुर्की की डिक्री पे अंकित !!
!! गिरता हुआ मकान देख ले !!
.!! सम्मन मिला कचहरी से जो!!
!! वह अधिग्रहण फरमान देख ले !!
!! अखवारी विज्ञापन झूँठे!!
!! उजड़े गाँव उत्थान देख ले !!
!! क्या घूमता है विदेश में ?
!! खुद अपना हिंदुस्तान देख ले!!

राष्ट्रवाद और इस्लाम ,

 समग्र राष्ट्रवाद और इस्लाम , शीर्षक मुत्ताहिदा कौमियात और इस्लाम ( उर्दू : متحدہ قومیت اور اسلام ) 1938 में दारुल उलूम देवबंद के डीन हुसैन अहमद मदनी द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है, जो समग्र राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती है - मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों के लिए एकजुट भारत . पुस्तक ने भारत के विभाजन का विरोध किया और इसमें मदनी ने "एक संयुक्त भारत के भीतर एक 'समग्र राष्ट्रवाद' के आदर्श की वकालत की, जिसे उन्होंने सोचा था कि पूरे उपमहाद्वीप में अपने समुदाय के प्रसार और समृद्धि के लिए अधिक अनुकूल होगा।

विरासत और सियासत

 मानव -सभ्यताओं के इतिहास में ,मानव जीवन के अतीत में,जो-जो गरिमामय -जीवनदायक तत्व खोजे गये,जिन मानवीय धीरोदात्त चरित्रों ,आदर्शों ,मूल्यों सिद्धान्तों और वैज्ञानिक आविष्कारों से यह धरती वीरप्रसूता और शस्य श्यामला बनी, जिन उपादानों से ,उत्पादन के साधनों के अन्वेषण से जीवमात्र को शुकुन और शांति मिली,जिन सिद्धांतों -मूल्यों में स्वतंत्रता ,समानता ,भ्रातत्व और सुख समृद्धि का भाव पुष्पित पल्लवित हुआ ,उन्हें हमें 'अतीत की विरासत' कहते हैं।

जिन कारणों से मनुष्य स्वार्थी बर्बर और हैवान बना, जिन आविष्कारों से धरती की जीवन्तता को खतरा बढ़ा, जिन-जिन कारणों से जल-जंगल -जमीन का क्षरण हुआ, जिन रीति रिवाजों से सामाजिक विषमता निर्धनता बढ़ी, जिन कारणों से एक बदमाश व्यक्ति ताकतवर बना और सत्यनिष्ठ व्यक्ति कमजोर हुआ, जिन कारणों से एक गुंडा किसी सहज सरल सचरित्र मनुष्य का शोषण-उत्पीड़न करता है,जिन कारणों से इस दुनिया में युद्ध ,महायुद्ध और तथाकथित धर्मयुध्द लड़े जाते रहे ,जिस वजह से भाई-भाई में भी बैरभाव उत्पन्न हो जाता है उसे हम सत्ता की *सियासत* कहते हैं।

बच्चों को किताबी कीडा न बनाईये.

*एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया।* *वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया।*
*अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा। 5 बेडरूम का घर रउसके पास। शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद* *खूबसूरत लड़की से हुई।*
*एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए,* *अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।*
*लेकिन दुर्भाग्यवश 7 साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली!अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई।*
*ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया,फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को* *justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन* *परिस्थितयों में।उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical* *Psychology ने ‘What went wrong'?
जानने के लिए study किया।*
*पहले कारण क्या था, suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...*
*इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने :This man was* *programmed for success but he was not trained, how to handle* *failure.यह व्यक्ति* *सफलता के लिए तो तैयार था,पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का* *सामना कैसे किया जाए।*
*अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को, 12th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी। .
अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets*
*कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी,अलग से इम्तहान लेती है।* *आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे।* *वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल, सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है। कोई डेट sheet नहीं।*
*एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है*
*इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये।*
**विशेष -*बच्चों को बस किताबी कीडा मत बनाईये, बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ धार्मिक, समाजिक व संस्कार भी देना जरूरी है, हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।*
*Don't make them machine with brain rather humans with emotions and feelings*
किसी पाश्चात्य दार्शनिक ने फरमाया है कि *बच्चे हमारे है, जान से प्यारे है।*
अर्थात बच्चों को सिर्फ पढ़ाना लिखाना ही पैरेंट्स का कर्तव्य नही है बल्कि उन्हें मॉरल वैुल्यूज और संवेदनाओं के स्तर पर भी बेहतर ढंग से विकसित किया जाना चाहिए! 20 -25 साल की उम्र तक यदि शारीरिक विकास > मानसिक विकास>आर्थिक विकास और आध्यात्मिक विकास में से कोई एक भी अधूरा रह गया,तो वह आजीवन अधूरा ही रहेगा, भले ही वह प्रधानमंत्री बन जाये या बिल गैट्स,अंबानी अडानी की तरह टॉप पूंजीपति !
See insights

पाकिस्तान एक्जामिन्ड विद द पार्टिशन स्कीम्स -स्वतंत्रता सेनानी रेजाउल करीम

 ''सारी दुनिया को बता दें कि भारतीय मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं, जैसा कि यूरोपीय राजनीति में इस शब्द को समझा जाता है. धार्मिक पंथ में अंतरों को छोड़कर, ऐसा कुछ भी नहीं है जो एक हिंदू को मुस्लिम से अलग कर सके." बंगाल के एक स्वतंत्रता सेनानी रेजाउल करीम ने इन शब्दों को अपनी लोकप्रिय पुस्तक पाकिस्तान एक्जामिन्ड विद द पार्टिशन स्कीम्स में 1941में भारतीय मुसलमानों को मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग द्वारा की गई पाकिस्तान की मांग के खिलाफ मनाने के लिए लिखा था.

यह भारतीय इतिहास लेखन की एक त्रासदी है कि मुस्लिम लीग का समर्थन करने वाले मुसलमानों को बहुत जगह दी गई है, जिन्ना की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ संयुक्त भारत के लिए लड़ने वाले भारतीय मुसलमानों को या तो भुला दिया गया या हमारे इतिहास के पुस्तकों में हाशिए पर ही रह गए.लोकप्रिय इतिहासलेखन हमें इस विश्वास में ले जाता है कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के अलावा कोई अन्य भारतीय मुस्लिम नेता भारत के विभाजन के खिलाफ नहीं लड़ रहा था. सचाई इस गलत धारणा से कोसों दूर है. मौलाना हुसैन अहमद मदनी, अल्लाह बख्श सोमरू, ख्वाजा अब्दुल हमीद और अल्लामा मशरिकी कुछ ऐसे लोकप्रिय नेता थे जो भारत के विभाजन को रोकने के लिए उग्रवादी कदम उठाने के लिए तैयार थे.
बीरभूम (पश्चिम बंगाल) में पैदा हुए रेजाउल करीम एक राष्ट्रवादी बंगाली मुस्लिम नेता थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन सांप्रदायिक विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित कर दिया.
आज, हमारी पाठ्यपुस्तकों में राष्ट्र निर्माण में उनका उल्लेख तक नहीं है. करीम ने अपने पूरे जीवन में बंगाली मुसलमानों में राष्ट्रवाद और हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना पैदा करने के लिए बंगाली और अंग्रेजी में बड़े पैमाने पर लिखा. उनकी पुस्तक फॉर इंडिया एंड इस्लाम ने तर्क दिया कि कैसे इस्लाम और भारतीय राष्ट्रवाद में कोई विरोधाभास नहीं है.
जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित वंदे मातरम को सार्वभौमिक रूप से एक सांप्रदायिक मुद्दे के रूप में स्वीकार किया गया था, तो करीम ने बंकिमचंद्रर निकत मुसलमानेर रिन, शीर्षक से एक बंगला निबंध लिखने की हिम्मत की, जो बंकिम के लेखन को उपनिवेश विरोधी और मुस्लिमविरोधी नहीं होने का बचाव करता था.
1940में, मुस्लिम लीग द्वारा लाहौर प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के बाद करीम ने पाकिस्तान के विचार का मुकाबला करने के लिए विभाजन योजनाओं के साथ पाकिस्तान की जांच की.
करीम ने तर्क दिया कि यह विचार कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, ऐतिहासिक था. ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा में विक्टोरिया विश्वविद्यालय के नीलेश बोस लिखते हैं, "रेजौल करीम ने एक बंगाली मुस्लिम समग्र राष्ट्रवाद विकसित किया, जिसका उद्देश्य एक उपजाऊ, संभावित भविष्य के भारत के संदर्भ में धर्म, क्षेत्र और राष्ट्र को जोड़ना था."
किताब की शुरुआत में ही करीम ने मुस्लिम लीग के नेताओं के इरादों पर यह कहते हुए प्रहार किया, "यह कहना अजीब है कि वे सभी व्यक्ति जिन्होंने हमेशा भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का समर्थन किया है, अब पाकिस्तान आंदोलन के पैरोकार बन गए हैं. लेकिन वे मुसलमान जिन्होंने हमेशा देश के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया, वे लगभग इस आंदोलन के सख्त खिलाफ हैं."
उन्होंने इस तर्क का विरोध किया कि ऐतिहासिक रूप से यमुना नदी के उत्तर का क्षेत्र भारत के अन्य हिस्सों से अलग था. करीम ने दिखाया कि सिकंदर के समय से लेकर मुगलों तक और ब्रिटिश पंजाब और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत भारत का हिस्सा थे.
उनके विचार में यदि धर्म के आधार पर भूमि का विभाजन स्वाभाविक था तो यह मध्यकालीन शासकों द्वारा किया जाना चाहिए था. इसके बजाय, मध्ययुगीन काल के दौरान हिंदू और मुसलमान किसी भी धर्म के शासकों के पीछे एकजुट हो गए.
करीम का मानना ​​​​था कि विभाजन की योजना बंगाल के विभाजन और अलग निर्वाचक मंडल के रूप में शुरू हुई एक परिणति के अलावा और कुछ नहीं थी. उनके लिए एक राष्ट्र के नागरिक के रूप में वैश्विक मुसलमानों का विचार काल्पनिक था. उन्होंने लिखा, "यह विश्वास कि दुनिया के मुसलमान एक राष्ट्र के हैं, केवल एक कल्पना है, एक काल्पनिक आदर्श है जिसे व्यवहार में कभी महसूस नहीं किया गया था, और ऐसा कभी नहीं किया जाएगा. भारत के बाहर के मुसलमान हमें अपने परिजन के रूप में अस्वीकार करते हैं, वे हमें विदेशियों के रूप में घृणा करते हैं, वे हमारी गुलामी के कारण हमारी उपेक्षा करते हैं, और यदि उन्हें सत्ता में रखा जाता है, तो वे हमें अपने अधीन कर लेंगे, हमें विदेशी विजेता की तरह अपमानित करेंगे. फिर हम खुद को किसी विदेशी शक्ति के अधीन इस आधार पर क्यों न होने दें कि वह शक्ति एक मुस्लिम शक्ति है. इसलिए भारत में हमारी स्थिति वैसी ही है जैसी देश के हिंदुओं के साथ है. हम भारत के हैं, और हम इस देश के लोगों के साथ एक राष्ट्र हैं."
करीम के विचार में अल्पसंख्यक अधिकार राष्ट्र को विभाजित करने के लिए एक उपकरण के अलावा और कुछ नहीं थे. ऐसे कई समूह हो सकते हैं जो इन अल्पसंख्यक अधिकारों का दावा करते हैं, "अंतिम विश्लेषण में अल्पसंख्यक संरक्षण मुस्लिम हितों की सुरक्षा नहीं है; यह भारत का विभिन्न समूहों, उप-समूहों और दलों में विभाजन है ताकि लोगों की संयुक्त ताकतों द्वारा कोई भी सुसंगत कार्रवाई भारत में संभव न हो. इसलिए अल्पसंख्यक हित का मतलब मुस्लिम हित नहीं है. अल्पसंख्यक हमेशा अल्पसंख्यक होते हैं; उन्हें कभी भी बहुमत नहीं बनाया जा सकता."
करीम ने भारतीय मुसलमानों से एकजुट भारत के लिए एकजुट होने और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति को खारिज करने के लिए कहा. उन्होंने लिखा है:
“मुझे भारत के सभी गौरव और गौरव पर गर्व है. वैभव और गरिमा से ओतप्रोत हमारी आम मां को उसकी पूर्व स्वतंत्रता और महिमा एक बार फिर से हासिल करने दें,. सही अर्थों में भारत को हमारी मातृभूमि बनने दें.
इसकी चौड़ी छाती पर जो कुछ भी उगता है वह हमारी विरासत है. इसके वेद, इसके उपनिषद, इसके राम, सीता, इसकी रामायण, और महाभारत, इसकी कृष्ण और गीता, इसके अशोक और अकबर, इसके कालिदास और अमीर खुसरू, इसके औरंगजेब और दारा, इसके राणा प्रताप और सीताराम- सभी हमारी अपनी विरासत हैं.
उनमें से कोई भी हमारे लिए पराया नहीं है-मुसलमान, या हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए पराया नहीं है. इसमें जो कुछ भी बुरा है या उसमें जो कुछ भी अच्छा है, वह सब मेरा है. हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, सिख, जो भी समुदाय भारत में रहता है, वह मेरे भाई हैं. उनके साथ मैं एक अविभाजित राष्ट्र बनाता हूं और उनके साथ मैं गिरता हूं और उनके साथ मैं उठता हूं.
मेरा भाग्य शेष भारत के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है. इसलिए हम हिन्दुओं, मुसलमानों और अन्य समुदायों को प्रेम और श्रद्धा से अपनी भारत माता के सामने खड़े होकर उनका सम्मान करना चाहिए. हमारी दुखी मां बंधन में है और हमें उसे मुक्त कर उसे स्वतंत्र, सुखी और संतुष्ट बनाना चाहिए. आइए हम आने वाले नए भारत का स्वागत करें- एक सौ पचास साल के विदेशी प्रभुत्व के मलबे से उभर रहे नए भारत का.
आइए हम सभी अपनी महान भारत माता को नमन करें- दक्षिण भारत और उत्तरी भारत नहीं, हिंदू भारत और मुस्लिम भारत नहीं, बल्कि समग्र रूप से भारत, संपूर्णता में अविभाजित भारत- भारत सभी सभ्यता और संस्कृति की सार्वभौमिक जननी है. आइए हम अपनी मातृभूमि भारत का विभाजन न करें, और उसके अस्तित्व के तंत्रिका-केंद्र को न काटें. वह एक और अविभाजित, और एक ही रहे, कि हम उसके बच्चों को अपना भाई कहें, हमारी हड्डी की हड्डी और हमारे मांस का मांस. और वही हमारा उद्धार है."