गुरुवार, 28 जनवरी 2021

गौरैया गाती तो है

 मुश्किल से गुजरी स्याह रात के बाद,

खुशनुमा एक नयी सुबह आती तो है।
घर के आँगन में हो कोई हरा-भरा पेड़,
तो कभी कभी गौरैया भी गाती तो है।।
यों तितलियां जीती हैं सिर्फ आठ पहर,
किंतु जिंदगी उनकी भी मुस्कराती तो है!
जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो,
भले मानुष को यह धरती सुहाती तो है!!
आभामंडल मंद हो या तीव्र दीप्तिमंत का,
प्रकाशकिरण उसके अंतस में समाती तो है!
लहरें दरिया की हों या महासागर कीं,
उमड़ घुमड़ गंतव्य में समाती तो है!!
आज भले ही मौसम है बदमिजाज कुछ,
किंतु बसंत के आने पर कोयल गाती तो है।
क्रूर निष्ठुर नीरस नागर सभ्यता के इतर,
ग्राम्यगिरा में लोरी की आवाज आती तो है!!
गौरैया,तितली,कोयल,लोरी,भोरका कलरव,
सह्रदय इंसानमें जीनेकी उमंग जगाती तो है।
- श्रीराम तिवारी !

संपूर्ण क्रांति

स दौर में ऐंसा कुछ नहीं बचा जिस पर देश को नाज़ हो! सत्ताधारी दल,कार्यपालिका, न्याय पालिका,व्यवस्थापिका,प्रिंट,द्र्श्य, श्रव्य चाटुमीडिया कोई क्षेत्र नहीं बचा,जो इस व्यवस्था की जीवन्तता का वाहक सिद्धम हो सके!जन संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है! अब किसान आंदोलन को तत्काल स्थगित कर संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया जाना चाहिए! क्योंकि जब तक मौजूदा सरकार है, तब तक सिर्फ धन्ना सेठों और भ्रस्ट रिश्वतखोर सरकारी अफसरों की तूती बोलती रहेगी? इंक्लाब जिंदाबाद! किसान मजदूर एकता जिंदाबाद!! संघर्षों का रास्ता - सही रास्ता सही रास्ता!!!

व्यस्त रहिये

 छोटी छोटी बातों का आनंद उठाइए,अपना Sense of humor जगाइये-जैसे छोटे छोटे बच्चों को खिलौने उपहार दीजिये,उनसे बतियाइये!दोस्तों से हल्का फुल्का मनो विनोद और रचनात्मक रुचिकर कामों में व्यस्त रहिये! मस्त रहिये स्वस्थ रहिये! क्योंकि वक्त तेजी से खत्म हो रहा है,हो सकता है कि किसी दिन पीछे मुड़कर देखें तो लगे कि सारा जीवन नीरस बीत गया ”

दर्ज है हर बात इतिहास में

 रक्त- रंजित सा चमन था कभी।

और खतरे में वतन था कभी।
सर उठाने की मिली थी सज़ा।
खून से लथपथ बदन था कभी।
फूट डालो और शासन करो।
हर फिरंगी का चलन था कभी।
दर्ज है हर बात इतिहास में ।
इस जहां में क्या अमन था कभी।
थी किसे परवाह अंजाम की।
मुफ्त में मिलता कफन था कभी

रविवार, 24 जनवरी 2021

मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है !

 मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है !

उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है!!
वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान,
पाँव उठाने के लिए उनको सहारे को तरसते देखा है !
जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग,
उन्ही नजरों को भादों की तरह बरसते देखा है !!
जिनके हाथों के मात्र इशारे से टूट जाते थे पत्थर,
उन्ही हाथों को पत्तों की तरह थर थर काँपते देखा है!
जिनकी आवाज़ में था बिजली कड़कने का भ्रम,
उनके होठों पै जबरन चुप्पी का ताला लगा देखा है !!
ये जवानी ये ताकत ये दौलत सब कुदरती है ..
इनके रहते हुए भी इंसान को बेजान हुआ देखा है !
अपने आज के रुतवे पर इतना ना इतराना बंधुओ,
वक्तकी धारामें बड़े बड़ों को मजबूर हुआ देखा है !!
दे सको तो किसी मजलूम का साथ देकर देखो,
वरना शेखी बघारते तो हजारों को देखा है!
मैने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है!
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है !!

हम सब जिम्मेदार है!! -श्रीराम तिवारी

 इन दिनों मीडिया की ख़बरों के केंद्र में,

चमचागिरी और भांडगिरी की बहार है ।
कोई कहता है "मेरा -भारत-महान है "
कोई कहता यहाँ दो लोगों की सरकार है ।।
जनता को नेता-नेता को जनता कोस रहे,
सरकार किसानों को ठहराती कसूरवार है ।
धनाड्य वर्ग की भोग लिप्सा बढ़ती जाती,
देशकी आवाम उस अनुपातमें नही बेक़रार है!!
नव यौवना नारी देह प्रदर्शन बिना आजकल,
टिकता नही कोई जरूरी विज्ञापन समाचार है!
बाज़ार में सरकारी क्षेत्र केे बिना प्रतिस्पर्धा,
अधिकांश माल बिकता नहीं मंदी भरमार है!!
झंडा 5-G और सूचनातंत्र क्रांति का बुलंद है,
आर्थिक नीति में वैचारिक भ्रान्ति बरकरार है।
पूँजीवाद में मूल्यों का पतन और मजूरों की दुर्दशा ,
इस सर्वनाश के लिये हम सब जिम्मेदार है!!
-श्रीराम तिवारी

जीवन का आनंद क्या है?

 ईशावास्यमिदं यत्किंचित जगत्याम् जगत,

तेन त्यक्तेन भूंजींथा मा कस्य विद धनम्"
-ईशावास्योपनिषद
अर्थात- *जिसने भोगा ही नहीं है, वह त्याग कैसे करेगा? और जिसके पास है ही नहीं, वह छोड़ेगा क्या और कैसे?*
एक यहूदी फकीर हुआ बालसेन। एक दिन एक धनपति उससे मिलने आया। वह उस गांव का सबसे बड़ा धनपति था, यहूदी था। और बालसेन से उसने कहा कि कुछ शिक्षा मुझे भी दो। मैं क्या करूं?
बालसेन ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा, वह आदमी तो धनी था लेकिन कपड़े चीथड़े पहने हुए था। उसका शरीर रूखा-सूखा मालूम पड़ता था। लगता था, भयंकर कंजूस है। तो बालसेन ने पूछा कि पहले तुम अपनी जीवन-चर्या के संबंध में कुछ कहो। तुम किस भांति रहते हो? तो उसने कहा कि मैं इस भांति रहता हूं जैसे एक गरीब आदमी को रहना चाहिये। रूखी-सूखी रोटी खाता हूं। बस नमक, चटनी और रोटी से काम चलाता हूं। एक कपड़ा जब तक जार-जार न हो जाए तब तक पहनता हूं। खुली जमीन पर सोता हूं, एक गरीब साधु का जीवन व्यतीत करता हूं।
बालसेन एकदम नाराज हो गया और कहा, नासमझ! जब भगवान ने तुझे इतना धन दिया तो तू गरीब की तरह जीवन क्यों बिता रहा है? भगवान ने तुझे धन दिया ही इसलिए है कि तू सुख से रह, ठीक भोजन कर। खा कसम कि आज से ठीक भोजन करेगा, अच्छे कपड़े पहनेगा, सुखद शैया पर सोयेगा, महल में रहेगा।
धनपति भी थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा कि मैंने तो सुना है कि यही साधुता का व्यवहार है। पर बालसेन ने कहा कि मैं तुझसे कहता हूं कि यह कंजूसी है, साधुता नहीं है। काफी समझा-बुझाकर कसम दिलवा दी। वह आदमी जरा झिझकता तो था, क्योंकि जिंदगी भर का कंजूस था। जिसको वह साधुता कह रहा था वह साधुता थी नहीं, सिर्फ कृपणता थी। लेकिन लोग कृपणता को भी साधुता के आवरण में छिपा लेते हैं। कृपण भी अपने को कहता है कि मैं साधु हूं इसलिए ऐसा जीता हूं। पर बालसेन ने उसे समझा-बुझाकर कसम दिलवा दी।
जब वह चला गया तो बालसेन के शिष्यों ने पूछा कि यह तो हद्द हो गई। उस आदमी की जिंदगी खराब कर दी। वह साधु की तरह जी रहा था। और हमने तो सदा यही सुना है कि सादगी से जीना ही परमात्मा को पाने का मार्ग है। यही तुम हमसे कहते रहे। और इस आदमी के साथ तुम बिलकुल उल्टे हो गये। क्या इसको नरक भेजना है?
बालसेन ने कहा, ‘यह आदमी अगर रूखी रोटी खायेगा तो यह कभी समझ ही न पायेगा कि गरीब का दुख क्या है! यह आदमी रूखी रोटी खायेगा तो समझेगा कि गरीब तो पत्थर खाये तो भी चल जाएगा। इसे थोड़ा सुखी होने दो ताकि यह दुख को समझ सके; ताकि जितने लोग इसके कारण गरीब हो गये हैं इस गांव में, उनकी पीड़ा भी इसको खयाल में आये। लेकिन यह सुखी होगा तो ही उनका दुख दिखाई पड़ सकता है। अगर यह खुद ही महादुख में जी रहा है, इसको किसी का दुख नहीं दिखाई पड़ेगा। कोई गरीब इसके द्वार पर भीख मांगने नहीं जा सकता, क्योंकि यह खुद ही भिखारी की तरह जी रहा है। यह किसी की पीड़ा अनुभव नहीं कर सकता।
विपरीत का अनुभव चाहिये। अगर सुख ही सुख हो संसार में तो तुम्हें सुख का पता ही न चलेगा। और तुम सुख से इस बुरी तरह ऊब जाओगे जितने कि तुम दुख से भी नहीं ऊबे हो। और तुम उस सुख का त्याग कर देना चाहोगे।
देखो पीछे लौटकर इतिहास में। महावीर और बुद्ध जैसे त्यागी गरीब घरों में पैदा नहीं होते; हो नहीं सकते। क्योंकि सुख से ऊब पैदा होनी चाहिये, तब त्याग होता है। बुद्ध के जीवन में इतना सुख है कि उस सुख का स्वाद मर गया। जिसने रोज सुस्वादु भोजन किये हों, तो स्वाद मर जाए। कभी-कभी उपवास जरूरी है भूख का रस लेने के लिये। अगर भूख का मौका ही न मिले और रोज उत्सव चलता रहे घर में, और मिष्ठान्न बनते रहें तो जल्दी ही स्वाद मर जाएगा। भूख ही मर जाएगी।
इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गरीबों के धार्मिक उत्सव सदा भोजन के उत्सव होते हैं। और अमीरों के धार्मिक उत्सव सदा उपवास के होते हैं। अगर जैनों का धार्मिक पर्व उपवास का है, तो उसका अर्थ है। लेकिन एक मुसलमान, एक गरीब हिंदू–जब उसका धार्मिक दिन आता है तो ताजे और नये कपड़े पहनता है। अच्छे से अच्छा भोजन बनाता है। हलवा और पूड़ी उस दिन बनाता है। वह धार्मिक दिन है। जिसके तीन सौ चौंसठ दिन भूख से गुजरते हों, उसका धार्मिक दिन उपवास का नहीं हो सकता। होना भी नहीं चाहिये; वह अन्याय हो जाएगा। लेकिन जो तीन सौ चौंसठ दिन उत्सव मनाता हो भोजन का, उसका धार्मिक दिन उपवास का ही होना चाहिये।
हम अपने स्वाद को विपरीत से पाते हैं। इसलिए जब जैनों का पर्युषण होता है, तभी पहली दफा उन्हें भूख का अनुभव होता है। और पर्युषण के बाद पहली दफा दो चार दिन खाने में मजा आता है, और खाने के संबंध में सोचने में मजा आता है। और पर्युषण के दिनों में ही सपने देखते हैं वे खाने के, बाकी दिन नहीं देखते क्योंकि सपनों की कोई जरूरत नहीं है। बाकी दिन वे सलाह लेते हैं चिकित्सक से कि भूख मर गई है।
जिन मुल्कों में भी धन बढ़ जाता है, वहीं उपवास को मानने वाले संप्रदाय पैदा हो जाते हैं। यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में आज उपवास का बड़ा प्रभाव है। गरीब मुल्कों में उपवास का प्रभाव हो भी नहीं सकता। लोग वैसे ही उपवासे हैं। लेकिन अमेरिका में लोग महीनों के उपवास के लिए जाते हैं। नेचरोपेथी के क्लिनिक हैं, चिकित्सालय हैं, जहां कुल काम इतना है कि लोगों को उपवास करवाना।
अगर सुख ही सुख हो और दुख का उपाय न हो तो तुम ऊब जाओगे सुख से। एक बड़े मजे की बात है कि दुख से आदमी कभी नहीं ऊबता, क्योंकि दुख में आशा बनी रहती है। आज दुख है, कल सुख होगा। सपना जिंदा रहता है। मन कामना करता रहता है और कल पर हम आज को टालते रहते हैं। दुखी आदमी कभी नहीं ऊबता। सुखी आदमी ऊबता है; क्योंकि उसकी कोई आशा नहीं बचती। सुख तो आज उसे मिल गया, कल के लिये कुछ बचा नहीं।
तुम्हें पता नहीं है कि महावीर और बुद्ध क्यों संन्यासी हुए? जैनों के चौबीस तीर्थंकर राजाओं के बेटे क्यों हैं, हिंदुओं के सब अवतार राजपुत्र क्यों हैं? बात जाहिर है, साफ है। गणित सीधा है। सुख इतना था कि वे ऊब गये। और ज्यादा पाने का कोई उपाय नहीं था। जितना हो सकता था वह था, वह पहले से मिला था।
इसलिए जिस दिन महावीर नग्न होकर रास्ते पर भिखमंगे की तरह चले, उन्हें जो आनंद मिला है, तुम भूल मत करना नग्न चलकर रास्ते पर; तुम्हें वह न मिलेगा। क्योंकि तुम गणित ही चूक रहे हो। उसके पहले राजा होना जरूरी है। वस्त्रों से जब कोई इतना ऊब गया हो कि वे बोझिल मालूम होने लगे तब कोई नग्न खड़ा हो जाए रास्ते पर तो स्वतंत्रता का अनुभव होगा–मुक्ति! उसे लगेगा कि मोक्ष मिला। जो भोजन से इतना पीड़ित हो गया हो, वह जब पहली दफा उपवास करेगा तो शरीर फिर से जीवंत होगा; फिर से भूख जगेगी। और जो महलों में रह-रहकर कारागृह में बंद हो गया हो, जब वह खुले आकाश के नीचे, वृक्ष के नीचे सोयेगा तब उसे पहली दफा पता चलेगा कि जीवन का आनंद क्या है!
महावीर की बात सुनकर कई साधारण-जन भी त्यागी हो जाते हैं। वे बड़ी मुश्किल में पड़ते हैं क्योंकि जो आनंद महावीर को मिला, वह उन्हें मिलता हुआ मालूम नहीं पड़ता। तो वे सोचते हैं शायद अपनी कोई साधना में भूल है। साधना में कोई भूल नहीं, शुरुआत में ही भूल है।

देश में कितनी खुशहाली आई ?

 किसानों को आंदोलन के लिये मजबूर कर,जनता और मीडिया को इस आंदोलन के औचित्य की बहस में उलझाकर मोदी सरकार निम्नलिखित मुद्दों का जबाब देने से कतरा रही है!

*1. विगत साढ़े छ: साल में कितने करोड़ युवाओं को रोजगार दिया ?*
*2. गंगा मैया कितनी साफ हुई ?*
*3. बुलेट ट्रेन के कितने कोच तैयार हुए ?*
*4. मेक इन इंडिया का क्या परिणाम रहा ?
*5. कितने दागी नेता जेल गए ?*
*6. धारा 370 हटाने के बाद कितने कश्मीरी पंडित वापिस कश्मीर पहुंचे ?*
*7. कितने कश्मीरी पंडितों का घर मिला ?*
*8. डीजल पेट्रोल कितना सस्ता हुआ ?*
*9. मंहगाई कितनी कम हुई ?*
*10. लाहौर और करांची पर कहाँ तक कब्जा किया ?*
*11. सेना को कितनी स्वायत्ता मिली ?
*12. चीन थर-थर कब कितना कांपा ?*
*13. क्या देश ईमानदार देशों की श्रेणी में आ गया ?*
*14. स्टार्ट-अप इंडिया का क्या हाल है ?*
*15. जवानों का खाना सुधरा क्या ?*
*16. बिहार को 1,25,000 करोड़ का पैकेज मिला ?*
*17. अलगाववादी नेताओं की सुविधाएं बंद की क्या ?*
*18. ओवैसी और वाड्रा जेल गए क्या ?*
*19. पिछले कार्यकाल में मोदी के ढेरों विदेशी दौरों से भारत को क्या लाभ हुआ ?
*20. राम मन्दिर के लिये दिये गये पहले वाले चंदे का क्या हुआ ?*
*21. गुलाबी क्रांति गौ हत्या रुकी क्या ?*
*22. डॉलर का मूल्य रूपये के मुकाबले कितना कमजोर हुआ ?*
*23. कितने स्मार्ट सिटी तैयार हो गये ?*
*24. सांसद आदर्श ग्राम योजना में कितने गाँव खुशहाल हुए ?*
*25. महिलाओं पर अत्याचार सामुहिक रेप के कांड रुके क्या ?*
*26. बीफ एक्सपोर्ट में भारत को एक नम्बर किसने बनाया ?*
*27. 100 दिन में विदेशों से काला धन आया क्या ?*
*28. कितने लोगों को 15 लाख मिले ?*
*29. नोटबन्दी से आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर टूटी क्या ?*
*30. देश में घूसखोरी बंद हुई क्या ?*
*31. देश में कितनी खुशहाली आई ?*
*32. स्वच्छता अभियान कितना सफल रहा ?*
*33. टैक्स सुधार कितना हुआ ?*
*34. इंस्पेक्टर राज कितना कम हुआ ?*
*35. बैंक का अरबों डकारने वाले कितने पूंजीखोर जेल गए ?*
*36. पार्टी के नाम पर काली कमाई वाले कितने नेता जेल गए ?*
*37. कितने स्कूल, कॉलेज, अस्पताल खुले ?*
*38. हिंदी का उपयोग कितना बढ़ा ?*
*39. सिंचाई की सुविधा कितनी बढ़ी ?*
*40. किसानों की आत्महत्या रुक गई क्या ?*
*41. कितने नए वैज्ञानिक प्रयोग हुए ?*
*42. सबको आवास मिल गया क्या ?*
*43. अदालतों में कितने जज नियुक्त हुए ?*
*44. भारत कितने दिन में विश्वगुरू बनेगा ?*
*45. कॉमन सिविल कोड लागू हो गया क्या ?*
*46. बलूचिस्तान को भारत में मिला लिया क्या ?*
*47. नेपाल से रिश्ते अच्छे हुए कि ख़राब ?*
*48. देश की इकॉनोमी कैशलेस हो गई है क्या ?*
*49. हिन्दू तिथि से नववर्ष को सरकारी मान्यता मिल गई क्या ?*
*50. रामसेतु को ऐतिहासिक स्थल बनाया कि नहीं ?*
*51. संसद, विधानसभा में महिलाओं को
33 फीसदी आरक्षण मिला क्या ?*
*52. लोकपाल नियुक्त हुआ या नहीं ?*
*53. कितनी नदियों को जोड़ा गया ?*
*54. शिक्षामित्रो से किया वादा पूरा किया क्या ? जबकि अपने संकल्प पत्र में रखा और बनारस की रैली में खुद कहा फिर भी कुछ नही किया !*
*55. दाऊद पकड़ाया क्या ?*
*56. शिक्षा प्रणाली में कितना सुधार हुआ ?
* ये सवाल देश के नागरिक की हैसियत से 2014 के भाषणों और चुनावी घोषणा पत्र के मद्देनजर बीजेपी से अवश्य पूछना चाहिये! धन्यवाद...

अलि संग कोयल बसंत को बुलावै है

 पूस में गुजारी रातें गुदड़ी में जाग-जाग,

माघ संग हेमंत मचान पै बितावै है।
फागुन के संग आई गेहुओं में बालियां,
अमुआ की डार बौर अगनि लगावै है।
चंपा कचनार बेला सेमल पलाश फूले,
पतझड़ पवन पापी मदन जगावे है।
मादकता गंध भरे महुए के फूल झरें,
अलि संग कोयल बसंत को बुलावै है।
(मेरे प्रथम काव्य संग्रह अनामिका से अनुदित... )

अंधश्रद्धा' और धर्मान्धता

 जिस तरह विवेक बुद्धि वाले सजग मानवों ने मानव इतिहासके अलगअलग दौरमें, अलग-अलग कबीलों में और अलग-अलग सभ्यताओ में सामाजिक ,राजनैतिक व्यवस्था संचालन के लिए कहीं सामन्तवाद ,कहीं पूँजीवाद और कहीं साम्यवाद के सिद्धान्त-सूत्र स्थापित किये हैं ,उसी तरह सजग और विवेकशील मानवों ने अध्यात्म,दर्शन,धर्म - मजहब ,ईश्वर ,अल्लाह,गॉड और 'पारलौकिक शक्ति' के सारभौम सिद्धांत सूत्र प्रतिपादित किये हैं। जिस तरह किसी भद्र और नेक नीयत नागरिक के लिए यह उचित है कि वह अपने देश के स्थापित संविधान और कानून के अनुकूल आचरण करे, क्योंकि इसीमें उसका और उसके देशका हित सुरक्षित है। इसी तरह मनुष्य मात्र के लिए यह उचित है कि वह अपने पूर्वजों द्वारा अन्वेषित धर्म -मजहब और आध्यात्मिक दर्शन का भावात्मक अनुशीलन करे। क्योंकि इसीमें उसकी ,उसके परिवार की और समाज की भलाई सुनिश्चित है। हरेक सचेतन और तर्कशील विवेक बुद्धिवाले मनुष्य की यह जिम्मेदारी भी है कि वह धर्म और साम्प्रदायिकता का राजनीतिकरण नहीं होने दे। इसके अलावा धर्म-मजहब में व्याप्त पाखण्ड ,अधर्म ,अन्याय का वह प्रबल प्रतिकार भी करे ! सिद्धान्तः कोई भी मनुष्य 'अंधश्रद्धा' और धर्मान्धता को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

भारत का असली इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है :

दुनिया का तो पता नहीं किन्तु भारत के संदर्भ में अवश्य कई प्रकार का इतिहास पढ़ने सुनने में आता है. एक इतिहास वह जो हमेशा सत्तासीन शासकों द्वारा अपनी स्तुति या प्रशंसा कराने एवं सत्ता में बने रहने के निमित्त लिखा गया अथवा लिखवाया गया.ऐंसा इतिहास ईसा पूर्व आक्रमणकारी कुछ यूनानियों ने लिखा।उन्होंने कुछ हद तक ईमानदारी वर्ती और तत्कालीन भारत की खामियों के साथ साथ इसका अप्रतिम वैभव सम्पन्नता का भी सांगोपांग वर्णन किया हैं. दूसरा इतिहास वह है जो मध्ययुग में भारत पर हमला करने वाले खूंखार गजनवियों,तुर्कों,खिलजियों,अफगानों और मुगलों ने शिद्दत से केवल खुद का और अपने कबीलों के यशोगान के रूप में लिखवाया . तीसरी तरह का इतिहास अंग्रेजों और तमाम तिजारती यूरोपियनों ने भारत की बदतर तस्वीर पेश करते हुए और ईसाइयत एवं विजेताओं को भारत का उद्धारक बताने वाला तथा हिन्दू मुस्लिम के भेद को बढ़ाने वाला इतिहास लिखाया। आजादी के बाद सत्ताधारी कांग्रेसके प्रभाव में चौथा इतिहास जो पूर्ववर्ती शासकों के इतिहास पर आधारित था और जो अधिकतर शासकों की पसंद का आभासी इतिहास लिखवाया जाता रहा है। पांचवां इतिहास वह है जो अधिकांश काल्पनिक है,भारतीय सभ्यता विरोधी है और जातीयतावादी नजरिये से लिखा गया है। इसी तरह दक्षिणपंथी पुराणपंथी पौंगापंथी लोग भी मिथकों को इतिहास मानकर बड़े बड़े पोथे छापते रहते हैं.इसी तरह कुछ कुपढ़ और भारतीय गौरव से चिढ़ने वाले स्वयंभू प्रगतिशील लोग भी वैज्ञानिक नजरिये के बहाने केवल अंग्रेजों,मुगलों और विदेशी हमलावरों के तवारीखी रुक्कों को इतिहास बताकर अपना मजाक उड़वाते रहते है.दरसल भारत का असली इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है.

वेशक आर्य भारतीय ही थे,यदि बाहर से आये होते तो दक्षिण एशिया में स्थित विशाल भूभाग-पूर्व में इंडोनेशिया से लेकर पश्चिम में इराक तक और उत्तर में उलानबटोर से लेकर दक्षिण में गोदावरी तक के भूभाग को 'आर्यावर्त' क्यों कहा जाता ? जब फारसियों,तुर्कों ने सिंधु के उस पार का इलाका जीत कर अलग देश बना लिए तब सिंद्धु के पूर्व का भूभाग 'हिँदुस्तान' कहलाया। और सिंधु के पश्चिम में स्थित भूभाग को जो पहले पर्शिया कहा जाता था,वो ईरान कहा जाने लगा। कालांतर में उत्तर के आर्यों ने और दक्षिण के द्रविङोँ ने साझा संस्कृति और सभ्यता विकसित की जो सनातन परम्परा और हिन्दू धर्म के रूप में जानी गई और जो आज भी विद्यमान है। आदि शंकराचार्य ने तो सिर्फ धार्मिक आधार पर 'एक भारत' का निर्माण किया था,जबकि अंग्रेजों ने पूरे दक्षिण एशिया में एक सिक्का चलाकर ,सम्राट अशोक के जमाने का अखंड भारतवर्ष पुन:जीवित किया।
वास्तव में अतीत के बनते बिगड़ते राष्ट्रों में इस भूभाग में आर्यों से लेकर लेकर शक,हुँण,कुषाण,पिंडारी,तातार कोई भी विदेशी नहीं था,सिवाय अरबौं और यूनानियों के। मध्य युग में १६ वीं सदी में यूरोपियन्स आये जो शुद्ध विदेशी थे. किन्तु ईसापूर्व के हमलावर विदेशियों से पृथक ये यूरोपियन मानों अपने दांतों में जैतून की पत्ती दबाकर भारतवर्ष/हिन्दुस्तान आये ! व्यापर करते करते ये विदेशी गोरे बाद में मुल्क के मालिक हो गए.जबकि ईसापूर्व आये यूनानी यवन भारत में शक हूँणकुषाणों की तरह खप गए। चूँकि वे भारत के उत्तर पश्चिम में बसे और खपे सो उन्होंने अपनी पहचान बनाये रखने के लिए 'खापों' का अनुशीलन जारी रखा।
सातवीं -आठवीं शताब्दी में भारत पर हमला करने वाले तुर्क,अफगान,उजबेग तथा मंगोल इत्यादि तो पूर्ववर्ती अखंड भारत के ही हिस्से थे किन्तु इजिप्शन और अरबी मुसलमान शुद्ध विदेशी हमलावर थे।बुरी तरह खंड खंड भारत को उस समय विजित करना इन बर्बर विदेशी मुसलमानों के लिए तब बहुत सरल था जब यहाँ का आम नागरिक और हरएक राजा 'बुद्धं शरणम् गच्छामि' और 'अहिंसा परमोधर्म:'का मंत्रजाप कर रहा था।
वैसे भारत चाहे अखंड रहा हो या खंड-खंड अशोक और कनिष्क के बाद किसी ने भारत से बाहर जाकर आक्रमण नहीं किया। बाहरी ताकतों द्वारा भारत पर आक्रमण और इसकी दर्दनाक पराजयों का इतिहास बहुत पुराना है। कनिष्क के बाद के इतिहास में भारत हमेशा हारता रहा। सिकंदर आदि यवनों ने पश्चिमी भारत पर हमला किया,भारत विकलांग हुआ। शक हूँण कुषाण बार बार हमला करते गए और कुछ लूटकर चले गए ,किन्तु अधिकांश यहीं रम गए.. भारतीय सभ्यता और संस्कृति में घुल मिल गए। किन्तु इनके बाद आये बर्बर हमलावर मुहम्मद बिन कासिम,मेहमूद गजनबी,मुहम्मद गौरी के वंशज-तुर्क गुलाम,खिलजी,सैय्यद, उजबेग, तातार ,कज्जाक,कुरैश,अफगान ,पठान और मंगोल[मुग़ल] सभी एक के बाद एक इस भारत भूमि को रौंदकर ,लूटकर,मंदिरों को जलाकर,जनता को रुलाकर भारत को गुलाम बनाकर यहीं डट गए। दुनिया जिस धरती को सोने की चिड़िया कहती थी ,उसे इन दरिंदों ने बूचड़खाना बना डाला.
हर्षवर्धन के मरणोपरांत भारत खंड खंड अवष्य हो गया था,किन्तु तत्कालीन भारत की समृद्धि को देख सुन कर ही विदेशी हमलावर और मध्य पूर्व के खूँखार बर्बर कबीले पश्चिमी भारत पर बार बार हमले करते रहे.वे जनता और पराजित राजाओं का सर्वस्व लूटकर ही संतुष्ट नहीं हुए. बल्कि भारतीय समाजों की सहनशीलता, करुणा और उदारता जैसी महानतम मानवीय मूल्यवत्ता को एवं शैक्षणिक आध्यात्मिक संस्थानों को बर्बाद करते रहे । तत्कालीन भारतीय समाज भारत भूमि को 'स्वर्गादपि गरीयसी' मानकर आत्ममुग्ध था. बाह्य हमलों से तो वह परिचित था,किन्तु उसे यह अंदाज नहीं था की भारत के बाहर अहिंसा,करुणा,जीवदया और मानवता जैसे मूल्यों का कोई मोल नहीं है। बाह्य हमलावर सिर्फ लूट,हत्या,व्यभिचार और पाशविक प्रवृत्ति से संचालित थे। जिस देश से कभी सिकंदर गीता और पवित्र गंगाजल मेसोपोटामिया ले गया,उस भारत भूमि के समाज को सब कुछ लुट जाने पर भी होश नहीं आया कि अहिंसा तभी तक ठीक है जब तक कोई हमला न करे।
तत्कालीन भारतीय समाज-शासक और शासित,राजा प्रजा प्राय:सभी धर्म अध्यात्म की अनुत्पादक बहस में उलझे थे. उन्हें रंचमात्र गुमान नहीं था कि असभ्य दुनिया में खूँखार बर्बर शैतानी कबीलाई लुटेरों ने मजहब के नाम पर एशिया,यूरोप और अफ्रीका को लील लिया है.अतीत में जिस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था, जहाँ से स्वयं सिकंदर गीता,गंगाजल और गुरु ले जाने के लिए मरते दम तक लालायित रहा,उस महान भारत भूमि की नदियों का पानी यायावर हमलावरों ने लाल कर दिया। साधु,संत,गुरु,योगी और शिक्षक मार दिए गए.नालंदा,तक्षशिला और काशी विद्यापीठ जला दिये गए। चूँकि धर्म कर्मकांड के क्षेत्र में अधिकांश ब्राह्मण ही हुआ करते थे,अतः क्षत्रिओं के बाद अधिकांश ब्राह्मण ही मारे गए। तैमूर लंग,अहमदशाह अब्दाली,मुहम्मद बिन कासिम,मेहमूद गजनबी ,मोहम्मद गौरी और बाबर जैसे बर्बर दरिंदों ने पश्चिमोत्तर भारत को अनेक बार लहूलुहान किया। इस्लामिक खुरेन्जियों के आक्रमण से भारतीय उपमहाद्वीप में जो रक्त से नहाये मजहबी जलजले आये,वे हिरोशिमा नागासाकी से भी बदतर थे।
भारत के राजनैतिक असंगठित रूप ने भले हथियार डाल दिए हों,किन्तु किसानों,मजदूरों और साधु,संत महात्माओं ने इस्लामिक आक्रमणों का प्रबल विरोध किया,निरंतर होना वाले बर्बर आक्रमणों के खिलाफ जनता के संघर्ष जारी रहे !
१६ वीं सदी के अंतिम दिनों में व्यापारी के वेश में समुद्री रस्ते से पुर्तगीज,स्पेनिष,डच,फ्रेंच और अंग्रेज इत्यादि यूरोपियन भारत आये।वास्कोडिगामा भले अरब सागर के रस्ते भारत आया,किन्तु उससे पहले ग्रेट ब्रिटेन का राजदूत 'सर थामस रो' पहला अंग्रेज था ,जो जहांगीर के दरबार में ब्रिटेन की ओर से उपस्थित हुआ। वह अंग्रेज व्यापारियों के लिए अधिकार पत्र हासिल करने में सफल रहा.तदुपरांत अंग्रेजों ने जब मद्रास, कलकत्ता इत्यादि तटीय नगरों में व्यापारिक कोठियां बनाईं और पुर्तगाल से मुंबई दहेज़ में हासिल किया तो अंग्रेजों की भारतीय उपमहाद्वीप पर पकड़ मजबूत होती चली गई ! ऐयास मुग़ल बादशाहों और नबाबों ने भी हथियार डाल दिए और शीघ्र ही अंग्रेजों को भारत की लूट का साझीदार बना लिया। बाद में वे अंग्रेजों के हाथों गुलाम होते चले गए।
चूँकि देशी राजे राजवाड़े और मुस्लिम नबाब एक दूसरे को फूटी आँखों नहीं देख सकते थे,अतः रात दिन एक दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र करते रहते थे,यह स्थिति अंग्रेजों के लिए बहुत अनुकूल थी की वे खण्ड खण्ड भारत को अपने पैरों तले रौंद सकें और भारत की सकल सम्पदाविलायत भेज सकें। यूरोप में आपस में लड़ने वाले देश भारत में एकजुट होकर लूट मचाते रहे और भारतीय समाज की जड़ों में आपसी फूट का मठ्ठा डालते रहे। मुगल बादशाहों-नबाबों की ऐयाशी और हिन्दू राजाओं की निजी अहमन्यता ने भारत को अंग्रेजों के हाथों सौंप दिया और इस तरह पूरा भारतीय उपमहाद्वीप गुलाम हो गया।
ऐतिहासिक बिडंबना है की भारत में राष्ट्रवाद की भावना न होने से यहां का समाज डबल ट्रिपल गुलाम होता चला गया। जनता जमींदार की गुलाम थी,जमींदार- नबाबों या रजवाड़ों का गुलाम था.नबाब-रजवाड़े वायसराय के गुलाम थे,वायसराय ब्रिटिश सरकार के गुलाम थे और ब्रिटिश सरकार 'क्राउन ' की याने ग्रेट ब्रिटेन के सम्राट या साम्राज्ञी की गुलाम हुआ करती थी। दअरसल १९७१ से पहले के दो हजार साल का इतिहास भारत की पराजयों का और बहुगुणित गुलामी का इतिहास रहा है,यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी ने *सोवियत संघ* से मैत्री न की होती और सोवियत नेताओं ने भारत के समर्थन में ५ बार वीटो इस्तेमाल न किया होता तो १९७१ में भी भारत को हार का मुँह देखना पड़ता। और बांग्ला देश बनवा पाना आसान न होता।
'१९७१ की विजय' के पहले का भारतीय इतिहास इस मुल्क की अनवरत पराजयों का इतिहास रहा है। इस दंश के लिए सिर्फ विदेशी हमलावर भुजंग ही दोषी नहीं थे,बल्कि चीटियों की तरह जिन धरतीपुत्रों ने बामी रुपी राष्ट्र का निर्माण किया,उनकी प्रमादपूर्ण जीवन शैली भी गुलामी का कारण रही है। लगभग २००० साल का इतिहास
इस भारतीय भूभाग की पराजयों का इतिहास रहा है। सवाल उठता है की ऐंसा क्यों?
भारतीय भूभाग की दीर्घ गुलामी का पहला कारण राजनैतिक था कि हर्षवर्धन के उपरान्त केंद्रीय सत्ता खत्म हो गई और यह भूभाग खंड खंड होकर अनेक रियासतों में बट गया। दूसरा कारण मजहबी था.बाहर से आने वाले हमलावर धर्म के नाम पर हिंसक कबीलोंको एकजुट करके खैबर दर्रा या सिंधु नदी पार कर पश्चिमी भारत पर हमला करते,नगरों गाँवों में लूटपाट मचाते,मंदिरों को लूटते,स्त्रियों को उठा ले जाते। तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह था कि जब मध्य एशिया एवं यूरोप में नई नई वैज्ञानिक खोजें हो रहीं थीं,तोपें बन रहीं थीं,गोला बारूद का आविष्कार और उसका जनसंहार के लिए इस्तेमाल होने लगा था ,युद्ध की नई तकनीक ईजाद हो रही थी,तब भारतीय भूभाग पर नदियों के किनारे नंग धड़ंग बाबाओं के विशाल मेले लग रहे थे,राजाओं के पुत्र घर बार छोड़ कर हिमालय की गुफाओं में सत्य की खोज कर रहे थे,जनता जनार्दन को त्याग और अपरिग्रह सिखा रहे थे,मक्कारी और भिक्षाटन की शिक्षा दे रहे थे। ततकालीन तथाकथित स्वर्णिम के दौर की जनता खेती बाड़ी छोड़,वाणिज्य व्यापार छोड़ ,लंगोटी लगाकर,'अहिंसा परमोधर्म:' का जाप कर रहे थे.
तत्कालीन भारतीय दुरावस्था के लिए सीधे सीधे धर्मान्धता और जड़ता ही जिम्मेदार थी। सम्राट पुष्यमित्र शुंग की महाविजय और उनके द्वारा तीन अश्वमेध किये जाने के उपरान्त,विगत दो हजार सालों में भारतीय भूभाग का ऐंसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि किसी भारतीय नरेश ने भारत से बाहर एक इंच जमीन हस्तगत की हो।ऐंसा इसलिए नहीं कि तत्कालीन भारतीय सामंत,राजे रजवाड़े और सम्राट सब सम्राट अशोक की तरह प्रवज्या शील थे अथवा विश्वविजय की कामना नहीं रखते थे। बल्कि ६ठी सदी समाप्त होते होते भारतीय भूभाग पर पश्चिम से जो नए हमले होने लगे, उनके प्रतिकार के लिए दक्षिण भारत और पूर्वी भारत के राजे राजवाड़े तैयार नहीं थे।पश्चिमी सीमा पर बर्बर धर्मांध जंगखोर लुटेरे कबीलों के निरंतर आक्रमणों से वहाँ रक्षा कवच टूट गया। वेशक पूरा भारत कभी कोई विदेशी नहीं जीत पाया,किन्तु अंग्रेजों के आने के बाद शनैः शनैः पूरा भारत भौगोलिक रूप से गुलाम होता चला गया.भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर आंच अवश्य आई ,किन्तु जनमानस की निष्ठा,उत्सर्ग और गुरुकुल परम्परा ने भारत की सांस्कृतिक और चारित्रिक विरासत को काफी हद तक अक्षुण रखा.
चूँकि भारत को गुलाम बनाने वाला ग्रेट ब्रिटेन और दुनिया को गुलाम बनाने वाले यूरोपियन देश,दो विश्वयुद्धों के बाद इस स्थिति में नहीं थे कि अपने तमाम उपनिवेश यथावत कायम रख सकें,अतः मजबूरन उन्हें तमाम गुलाम राष्ट्र आजाद करने पड़े। इसी सिलसिले में १५ अगस्त १९४७ को भारत भी स्वतंत्र राष्ट्र बना। कांग्रेस और महात्मा गाँधी के नेतत्व में देश की जनता ने अनेक आंदोलन चलाये। अवज्ञा आंदोलन,सत्याग्रह,नमक कानून विरोधी दांडी मार्च ,खिलाफत आंदोलन,साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन और जलियांवाला बाग़ जैसे अनेक संघर्षों में शांतिपूर्वक कुर्बानी से इस मुल्क को आजाद कराने में बड़ी मदद मिली। 'आजाद हिन्द फौज' और 'हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' जैसे संगठनों और उनके नेताओं की शहादत भी बेकार नहीं गई।
वेशक अनेक अनगिनत कुर्बानियों की कीमत पर भारत को आजादी मिली,किन्तु अंग्रेजों की क्रूर दुरभिसंधि मुस्लिम लीग और कुछ जातिवादी नेताओं की गद्दारी से मुल्क का बटवारा हो गया। भारत पकिस्तान दो मुल्क बनाकर अंग्रेज यहां से विदा हो गए।सिर्फ जमीन का बटवारा नहीं हुआ,भारतीय आत्मा का भी बटवारा हो गया। मुस्लिम लीग और हिंदूवादी संगठनों ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया। महात्मा गाँधी ,पंडित मोतीलाल नेहरू,पंडित मदनमोहन मालवीय,पंडित गोविन्दवल्ल्भ पंत,लोकमान्य बल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय,विपिनचंद पाल,आसफ अली,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान,पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुउल्ला खान, सआदत खान,मौलाना आजाद,भगतसिंग ,चंद्रशेखर आजाद,सुखदेव राजगुरु,पंडित जवाहरलाल नहरू,सरदार पटेल,डॉक्टर राजेंद्रप्रसाद,सर्वपल्ली राधाकृष्णन,महाकवि सुब्रमण्यम भारती और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अनेक हुतात्मओं की बदौलत यह आधी अधूरी आजादी मिल सकी थी।
स्वाधीनता संग्राम के दौरान आंदोलनकारी जनता और नेतत्व करने वालों को अंग्रेजों की लाठी गोली खाना, दमन उत्पीड़न भोगना और जेल जाना तो आम बात थी,किन्तु इस संघर्ष में असल चीज थी भीतरघात याने गद्दारी! १९३१-३२ के दरम्यान लंदन में संपन्न गोलमेज कांफ्रेंस के दौरान जब महात्मा गाँधी ने देखा कि बेमन से ही सही,किन्तु अंग्रेज सशर्त आजादी देने को तैयार हैं। चूँकि अंग्रेजों ने जाति मजह्ब के आधार पर भारत के कई जयचंद अपने जाल में फंसा लिए हैं,तब गांधीजी ने गोलमेज कॉन्फ्रेंस से वॉक आऊट कर दिया। और भारत आकर कांग्रेस से लगभग संन्यास ही ले लिया। अंग्रेजों की गोद में बैठने वालों में मिस्टर जिन्ना सहित वे सभी नेता थे जो साम्प्रदायिकता और जातिवादी राजनीति के जनक माने जा सकते हैं। उन्हीं के बिषैले सपोले अभी भी भारतीय उपमहाद्वीप में आग मूत रहे हैं।
स्वाधीनता संग्राम की गंगा जमुनी तहजीब के बावजूद आजादी से पूर्व भारत का विभाजन न केवल शर्मनाक बल्कि धर्मनिरपेक्षता पर धर्मान्धता की विजय का सूचक भी है। उसकी वजह से भारत में अमानवीय साम्प्रदायिक हिंसा और उस पर आधारित डर्टी पॉलिटिक्स का सिलसिला ७२ साल बाद मुसलसल कायम है.

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी

  चूंकि रामचरितमानस में ढोल गंवार शूद्र पशु नारी! ये सब ताड़न के अधिकारी!!

जैसी अप्रिय चौपाई लिखी है, अत: इस ग्रंथ को नष्ट कर दिया जाए "
:-अखिलेंदु अरजरिया (पूर्व आई ए एस)
मेरा जबाब :-आदरणीय अरजरिया जी इस चौपाई या रामचरितमानस से आपको क्या प्राब्लम है? वैसे भी गोस्वामी जी ने ये चौपाई श्रीराम से नही समुद्र से कहलवाई है! अब यह व्यक्ति विशेष के संस्कार और सोच पर निर्भर है कि वह किसी दोहे या चौपाई के अर्थ का अनर्थ कैसे करता है!
वैसे भी संसार में वेदों के अलावा कोई ऐंसी पुस्तक नही जो विवादास्पद न हो! तो क्या इस आधार पर सारे संसार का संपूर्ण धार्मिक/रिलीजियश/मजहबी साहित्य जला दिया जाए? तब हम में और बख्तियार खिलजी में क्या फर्क होगा! रामचरितमानस में यदि दो चार दोहे चौपाई आपकी समझ से बाहर हैं तो,उन्हें कालगत मानकर आप व्यक्तिगत तौर पर त्याग दीजिये! किसी पर कोई दबाव नही कि वह रामचरितमानस का अनुशीलन करे!
वैसे भी विज्ञानवादी/तर्कवादी/ बुद्धिवादी लोग भी शास्त्रों और निगम आगम को मायथालॉजी ही मानते हैं! जब उनके लिये संपूर्ण कथानक फिक्शन है तो उसमें सचाई या प्रमाण क्यों खोजते हैं! वैसे भी रामचरितमानस पर अंगुली उठाने वालों को मालूम हो कि गोस्वामी तुलसीदास ने प्रारंभ में ही उनसे माफी मांग ली है!

अँधेरे के खिलाफ लड़ने के लिए

 सारे जहां के लोग हमको अहिंसा का पुजारी कहते हैं!

पर अन्याय के खिलाफ हम तलवार दुधारी रखते हैं!!
जंग कभी करना ही पड़े काली ताकतों के खिलाफ,
तो संघर्ष में शहादत के लिए हम सदा तैयार रहते हैं !
ईश्वर खुदा गॉड मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों का क्या?
कुछ लोग वहाँ अपनी दुकान चलानेको तैयार रहते हैं!
धर्म-मजहब कमजोरों का साथ कहाँ देते हैं कभी?
उनको ताकतवर ही उपभोग के लिये तैयार रहते हैं।
इसीलिए अज्ञानता अँधेरे के खिलाफ लड़ने के लिए,
दीपक जुगनू चाँद सितारे सूरज सदा तैयार रहते हैं !

जिन्दगी का फलसफा भी_ _कितना अजीब है,_

 ख्वाहिश नहीं मुझे_

_मशहूर होने की,"_
_आप मुझे पहचानते हो_
_बस इतना ही काफी है।_
_अच्छे ने अच्छा और_
_बुरे ने बुरा जाना मुझे,_
_जिसकी जितनी जरूरत थी_
_उसने उतना ही पहचाना मुझे!_
_जिन्दगी का फलसफा भी_
_कितना अजीब है,_
_शामें कटती नहीं और_
_साल गुजरते चले जा रहे हैं!_
_एक अजीब सी_
_'दौड़' है ये जिन्दगी,_
_जीत जाओ तो कई_
_अपने पीछे छूट जाते हैं और_
_हार जाओ तो_
_अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं!_
_बैठ जाता हूँ_
_मिट्टी पे अक्सर,_
_मुझे अपनी_
_औकात अच्छी लगती है।_
_मैंने समंदर से_
_सीखा है जीने का सलीका,_
_चुपचाप से बहना और_
_अपनी मौज में रहना।_
_ऐसा नहीं कि मुझमें_
_कोई ऐब नहीं है,_
_पर सच कहता हूँ_
_मुझमें कोई फरेब नहीं है।_
_जल जाते हैं मेरे अंदाज से_
_मेरे दुश्मन,_
_एक मुद्दत से मैंने_
_न तो मोहब्बत बदली_
_और न ही दोस्त बदले हैं।_
_एक घड़ी खरीदकर_
_हाथ में क्या बाँध ली,_
_वक्त पीछे ही_
_पड़ गया मेरे!_
_सोचा था घर बनाकर_
_बैठूँगा सुकून से,_
_पर घर की जरूरतों ने_
_मुसाफिर बना डाला मुझे!_
_सुकून की बात मत कर_
_ऐ गालिब,_
_बचपन वाला इतवार_
_अब नहीं आता!_
_जीवन की भागदौड़ में_
_क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?_
_हँसती-खेलती जिन्दगी भी_
_आम हो जाती है!_
_एक सबेरा था_
_जब हँसकर उठते थे हम,_
_और आज कई बार बिना मुस्कुराए_
_ही शाम हो जाती है!_
_कितने दूर निकल गए_
_रिश्तों को निभाते-निभाते,_
_खुद को खो दिया हमने_
इस दुनिया से जाते जाते!