रविवार, 24 जनवरी 2021

अंधश्रद्धा' और धर्मान्धता

 जिस तरह विवेक बुद्धि वाले सजग मानवों ने मानव इतिहासके अलगअलग दौरमें, अलग-अलग कबीलों में और अलग-अलग सभ्यताओ में सामाजिक ,राजनैतिक व्यवस्था संचालन के लिए कहीं सामन्तवाद ,कहीं पूँजीवाद और कहीं साम्यवाद के सिद्धान्त-सूत्र स्थापित किये हैं ,उसी तरह सजग और विवेकशील मानवों ने अध्यात्म,दर्शन,धर्म - मजहब ,ईश्वर ,अल्लाह,गॉड और 'पारलौकिक शक्ति' के सारभौम सिद्धांत सूत्र प्रतिपादित किये हैं। जिस तरह किसी भद्र और नेक नीयत नागरिक के लिए यह उचित है कि वह अपने देश के स्थापित संविधान और कानून के अनुकूल आचरण करे, क्योंकि इसीमें उसका और उसके देशका हित सुरक्षित है। इसी तरह मनुष्य मात्र के लिए यह उचित है कि वह अपने पूर्वजों द्वारा अन्वेषित धर्म -मजहब और आध्यात्मिक दर्शन का भावात्मक अनुशीलन करे। क्योंकि इसीमें उसकी ,उसके परिवार की और समाज की भलाई सुनिश्चित है। हरेक सचेतन और तर्कशील विवेक बुद्धिवाले मनुष्य की यह जिम्मेदारी भी है कि वह धर्म और साम्प्रदायिकता का राजनीतिकरण नहीं होने दे। इसके अलावा धर्म-मजहब में व्याप्त पाखण्ड ,अधर्म ,अन्याय का वह प्रबल प्रतिकार भी करे ! सिद्धान्तः कोई भी मनुष्य 'अंधश्रद्धा' और धर्मान्धता को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

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