छ लोगों को भ्रम है कि व्यक्ति,समाज और राष्ट्र में किसीभी तरह का बदलाव >परिवर्तन प्रगतिशीलता का स्वाभाविक गुण है! वे भूल जाते हैं कि आजकल हर क्षेत्र में नकारात्मक परिवर्तन हो रहा है! अमेरिकी लोकतंत्र शर्म सार होने पर आमादा है,चीन -पाकिस्तान मिलकर भारत को बर्बाद करने के षडयंत्रों पर आमादा हैं!
इधर भाजपा,उसके नेता और मित्र अडानी- अंबानी पूरा भारत अपने कब्जे में लेने को आतुर हैं! वे किसानों की जमीन पर कब्जा जमाने पर आमादा हैं तो संघर्षरत किसान और मजदूर कुर्बानी देने पर आमादा हैं!
बहरहाल सिद्धांत : कोई भी परिवर्तन यदि वैज्ञानिक,सकारात्मक,ऊर्ध्वगामी और सर्वजनहितकारी है तो मंजूर, किया जाना चाहिए! लेकिन आजकल कुछ लोग विचित्र परिवर्तन कर रहे हैं- जैसे कुछ मर्द औरत बनने पर उतारू है और कुछ औरतें मर्द बनने पर आमादा हैं ! कुछ इसी तरह के बहुत सारे परिवर्तन मोदी सरकार भी करने जा रही है!
मोदी सरकार ने मालिकों के हुक्म से उनके पक्ष में सारे श्रम कानून बदल डाले ! क्या यही प्रगतिशीलता है? इसी तरह अधिकांश सार्वजनिक उपक्रम बेच डाले गए-क्या यह प्रगतिशीलता है? अब अडानी अंबानी के पक्ष में किसानों की बर्बादी के लिये कृषि कानून थोपकर किसानों को गुलाम बनाने पर आमादा हैं! क्या यह बाकई सकारात्मक परिवर्तन है! भारत के अधिसंख्य गरीब किसानों को देश की आजादी से अब तक कुछ नहीं मिला,क्या यह वैज्ञानिक परिवर्तन है?
किसानों में भ्रम फैलाया जा रहा है कि अंबानी अडानी तो किसानों का भला करने के लिए व्याकुल हैं,किंतु वामपंथी-कम्युनिस्ट और राजनैतिक विपक्ष इस परिवर्तन में रोड़ा अटका रहे हैं! कुछ लोग तो संविधान बदलने पर भी आमादा हैं,क्या यही प्रगतिशीलता है? क्या ये तमाम सर्वनाशी परिवर्तन बाकई प्रोग्रेसिव है? नही! नहीं!! कदापि नही!!! बल्कि ऐंसे परिवर्तन पर हम थूंकते हैं!
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