रविवार, 24 जनवरी 2021

अलि संग कोयल बसंत को बुलावै है

 पूस में गुजारी रातें गुदड़ी में जाग-जाग,

माघ संग हेमंत मचान पै बितावै है।
फागुन के संग आई गेहुओं में बालियां,
अमुआ की डार बौर अगनि लगावै है।
चंपा कचनार बेला सेमल पलाश फूले,
पतझड़ पवन पापी मदन जगावे है।
मादकता गंध भरे महुए के फूल झरें,
अलि संग कोयल बसंत को बुलावै है।
(मेरे प्रथम काव्य संग्रह अनामिका से अनुदित... )

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