पूरे देश में कोरोना वायरस से लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में क्यों बदल दिया गया है? मीडिया इतनी हायतौबा क्यों मचा रही है? क्योंकि करोना की टेस्टिंग में हर तरफ लूट,आपाधापा और अराजकता मची हुई है! कोरोना भुक्तभोगियों के अलावा दुनिया में यह भारत की पहली सरकार है जो उच्चतम न्यायालय में इसलिये गई कि करोना पीड़ित, आम भारतीय करोना टेस्ट का खर्च खुद वहन करें।और यह सिर्फ 4500 रुपए का सवाल नहीं है। बल्कि सवाल बहुत बड़ा है। मतलब इस महामारी के संकटकाल में भी सांप्रदायिक नफरत में उलझाकर कहीं कोई अपना अभीष्ठ सिद्घ करने के लिये प्यास रत तो नहीं!
जब पूरे देश में सबका काम-धाम ठप्प है। फिर भी हर व्यक्ति को अपने करोना टेस्ट के लिए 4500 रुपये व्यय करना होगा। आज की परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति के 4500 रुपया टेस्ट के लिए पेमेंट करना दुष्कर है। वैसे भी पॉजिटिव होने पर एक व्यक्ति का कम-से-कम तीन बार टेस्ट होता है। कोनिका कपूर का मामला याद है, उनका पांच-छह बार टेस्ट हुआ। मतलब कम-से-कम 4500 रुपये तीन बार देने होंगे। अर्थात, 13500 रुपये एक व्यक्ति को लगेगा।
अगर कोई व्यक्ति पॉजिटिव पाया जाता है तो उनके पूरे परिवार का टेस्ट होता है, एक परिवार में अगर कम-से-कम पांच लोग ही हैं तो 22500 रुपया खर्च होगा। सब करोना पॉजिटिव तो लाखों रुपया रुपया सिर्फ टेस्ट में लगेगा। लॉकडाउन में यह कोढ़ में खाज नहीं बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार की याचिका पर फैसला दिया कि सिर्फ आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आने वाले बीपीएल के टेस्ट के खर्च का वहन सरकार करेगी। अन्य सबको खुद इसका बोझ उठाना होगा।
उच्चतम न्यायालय को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें इस तथ्य की रोशनी पर गौर करना चाहिए कि भारत के आम लोगों की प्रति व्यक्ति प्रति माह आय 11254 है। अभी तो वह शून्य नहीं, ऋणात्मक है। आय जीरो बटा सन्नाटा है। लेकिन खर्च तो जारी है। लिहाज़ा, सरकार को करोना टेस्ट और उपचार के पूरे खर्च की जिम्मेवारी लेनी चाहिए। अन्यथा, उच्चतम न्यायालय को पुनः अपने आदेश पर विचार करना चाहिए। अभी भी अगर हिन्दू-मुस्लिम खेल का मतलब नहीं समझ में आया है तो भगवान आपका भला करे। हुकूमत श्मसान में आपका कफ़न लूट लेना चाहती है और आप दुश्मन हिन्दू-मुस्लिम में ढूंढ रहे हैं।
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