मुझे यह जानकर बहुत अफशोस हुआ कि मुल्क में लॉकडाऊन के दौरान जिन्हें घर के काम करने पड़ रहे हैं,पत्नी की मदद करनी पड़ रही है,वे शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं! कुछ लोग जो घर का कोई काम नही करते,वे उनका मजाक उड़ा रहे हैं,जो घर पर पत्नी के और बच्चों के काम में हाथ बटा रहे हैं!
एतद् द्वारा सूचित किया जाता है कि हम बचपन में और किशोर अवस्था में भी सभी घरेलू काम किया करते थे!गांवमें खेती बाड़ी के अलावा बहुत काम थे! दर्जनों गायें,बैल भैंसें हुआ करती थीं,जंगल से लकड़ी,जरेंटा, महुआ,तेंदूपत्ता,चारोली,गुली धपरा इत्यादि के काम हम सभी भाई बहिन मिलजुलकर किया करते थे!पिताजी बुजुर्ग होने के कारण केवल मार्गदर्शक की भूमिका में रहे!मां को बहुत काम करना पड़ता था,चूंकि हम सब भाई बहिन अपने हिस्से का काम खुद कर लिया करते थे!इसलिये मां पर काम का बोझ थोड़ा कम हो जाता था!
मैं जब हाई स्कूल पढ़ने शहर गया और बाद में यूनिवर्सिटी गया तो किराये के कमरे में रहा!चूंकि तब शहर में खुद का मकान नही था,अत: एक कमरा किराये पर लिया!चूंकि मकान मालिक हमारे गांव का था,अत: उसने नकद किराया देने की क्षमता न होने पर मुझ पर दया दिखाई और किराए के एवज में मकान मालिक मुझसे उसकी दुकान पर भी काम लेता था! कभी कभी मकान मालकिन को बाजार से सामान ला देता और उनके बच्चों को भी पढ़ा दिया करता था,किंतु खुद के कमरे को चकाचक रखने से और पढ़ाई में हमेशा फ़र्स्ट डिवीजन आने से प्रभावित मकान मालिक ने हमारे गांव में स्थित उसका मकान मेरे निवेदन पर सस्तेमें हमारे पिताजी को दे दिया!
हम जब सरकारी नौकरी में आये,शादी हुई और छोटे भाई को साथ लाये तब ईमानदारी से अपनी ड्युटी करने के बाद,घर पर पत्नी की हर काम में सहायता किया करते थे!अनुज को बड़ा आदमी बनाने की चाहत में घंटों पढ़ाते!मारते पीटते भी थे! वैसे तौ मैंने 6 साल की उम्र से ही गांव स्थित घर में झाड़ू लगाना शुरू किया था!और अभी भी क्रानिक बीमारी के बावजूद,जब कभी काम वाली बाई छुट्टी पर रहती है,तो अधिकांस काम मैं ही करता हूँ! लाकडाऊन में यदि कोई बाई नही आ पाती,तो झाड़ू पोछा मैं ही लगाता हूं!
जब भाई परशुराम स्कूल जाता था या बाद में मेरे बच्चे स्कूल जाते थे,तब उन्हें भी स्कूल के लिये तैयार करने,घर पर पढ़ाने और उनकी यूनीफार्म पर प्रेस करनेका काम मैं ही करता था! उन्हें अद्यतन राजनीति,अध्यात्म दर्शन, सामान्य ज्ञान,वेद,उपनिषद,पुराण और सभी विचारधाराओं से परिचित कराने का काम भी मैने ही किया!
अनुज डॉक्टर परशुराम तिवारी, पुत्र डॉक्टर प्रवीण तिवारी,पुत्री अनामिका और नाती अक्षत मेरी सजग परवरिश के सशक्त प्रमाण हैं! ये सभी मेरी तरह अपने अपने काम खुद कर लिया करते हैं और घर पर भी यथासंभव सहयोग करने से पीछे नही हटते!
मैं लंबे अरसे तक एक विराट राष्ट्रीय यूनियन के विभिन्न पदों पर रहा!राष्ट्रीय पदाधिकारी चुने जाने के उपरांत भी और देशभर में होने वाली लगातार मैराथान मीटिंगों,सम्मेलनों के बावजूद भी, जब लौटकर घर आता, तब एक सप्ताह के तमाम घरेलू पेंडिंग वर्क मैं ही किया करता था दवाईयां,किराना,सब्जी,फल और तमाम बिल भरने का काम मैं ही करता रहा हूँ! अब ऑन लाईन पेमेंट और हट्टी सुपर मार्केट का क्रेडिट कार्ड से लेन दैन बगैरह मेरा नाती अक्षत करने लगा है!
श्रीमती जी के हिस्से में सिर्फ चार काम हैं! एक -मुझे सुबह शाम चाय देना!दूसरा घर के मंदिर में पूजा करना,तीसरा- टीवी चैनल पर एकता कपूर के सीरियल देखना! चौथा -समय समय पर रेस्पैटरी एक्सरसाईज और अस्थमा की दवाइयां लेना! रोटी वाली बाई लाकडाऊन के कारण नही आ रही,इसलिए वह काम भी मेरी बेटी संभाल रही है !
कर्फ्यू या लॉकडाउन न भी हो तब भी मेरे लिये कोई फर्क नही पड़ता! अपने घर के अधिकांस काम मैं खुद करता रहता हूँ ! मैने अपने कपड़े पत्नी से या बच्चों से कभी नही धुलवाए!अभीभी जबकि कपड़े धोने वाली
नही आती,तो वाशिंग मशीन जिंदाबाद! मेरे स्वयं के कपड़े,बैडसीट,रजाई,कंबल के खोल और डाइनिंग कुर्सी के कवर,सोफा कवर बगैरह मैं ही धोता हूँ !
कहने का लब्बोलुआब यह कि माबदौलत पहले भी घर के अधिकांस काम खुद करते रहे हैं और अब भी कर रहे हैं और आइंदा जब लॉकडाऊन कर्फ्यू हट जाएगा और यदि हम कोरोना से बच गये और शरीर साथ देता रहा,तो अपने घर के काम खुद करते रहेंगे!
स्वर्गीय कॉ.वी टी रणदिवे कहा करते थे:-
"जो व्यक्ति अपने कपड़े भी खुद नही धो सकता, घर के काम खुद नहीं कर सकता,जो व्यक्ति पत्नी को नौकरानी समझकर हर काम अपनी पत् छोड़ दे ,वह व्हाइट कॉलर तो हो सकता है,किंतु सच्चा कम्युनिस्ट नही हो सकता !"
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