साधु संत महात्मा भी मानव समाज का हिस्सा हैं,कोई भले ही कितना ही वीतरागी क्यों न हो या कोई समाधि की उच्चस्तरीय अवस्था को प्राप्त क्यों न हो गया हो! किंतु यदि उसे अभीष्ठ को प्राप्त करना है तो जिंदा रहना जरूरी है! जिंदा रहने के लिये उसे देश समाज और सरकार के सहयोग की नितांत आवश्यकता रहेगी ही! और मजदूर किसान के बिना तो चींटी का भी काम नही चलता!
यह महाराष्ट्र की घटना से सिद्ध हो गया कि सामाजिक सहयोग बिना कोई भी नही जी सकता,साधू संत महंत तो क्या,धर्म अध्यात्म और ईश्वर भी मानव जाति के मुहताज हैं!
यदि किसी का सहयोग चाहिये तो देना भी पड़ेगा!
यह उचित नहीं कि रेल का टिकिट नही लिया,क्योंकि हम तो साधु हैं! यह भी उचित नही कि कोरोना संकटकाल में यदि देश व्यापी लॉकडाउन है, तो उसकी परवाह किये बिना वहां- चले जाओ जहां पुलिस भी सुरक्षित नहीं! इसके अलावा देशमें दुनिया में जब कभी,जहां कहीं,निर्दोषों पर अत्याचार होता दिखाई दे तो साधू संतों को चुप नहीं बैठना चाहिये!
महाराष्ट्र की घटना पर किसी की आलोचना करने से पहले हिंदू समाज के धर्मगुरूओं और तमाम साधु संत महात्माओं को शपथ लेना चाहिए कि
यदि किसी का सहयोग चाहिये तो देना भी पड़ेगा!
यह उचित नहीं कि रेल का टिकिट नही लिया,क्योंकि हम तो साधु हैं! यह भी उचित नही कि कोरोना संकटकाल में यदि देश व्यापी लॉकडाउन है, तो उसकी परवाह किये बिना वहां- चले जाओ जहां पुलिस भी सुरक्षित नहीं! इसके अलावा देशमें दुनिया में जब कभी,जहां कहीं,निर्दोषों पर अत्याचार होता दिखाई दे तो साधू संतों को चुप नहीं बैठना चाहिये!
महाराष्ट्र की घटना पर किसी की आलोचना करने से पहले हिंदू समाज के धर्मगुरूओं और तमाम साधु संत महात्माओं को शपथ लेना चाहिए कि
"आइंदा-चाहे वह हिंदू हो, चाहे मुस्लिम हो,सिख,ईसाई अथवा कोई अन्य हो,किसी भी निर्दोष पर अत्याचार नही होने देंगे"
इस शपथ को कार्यान्वित करने के उपरांत यह संभव ही नही कि किसी साधु की कहीं पर जघन्य हत्या हो!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें