सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वैश्विक आर्थिक मंदी और कोरोना संकट.

WHO ने ऐलान किया है कि "दुनिया में छ: जगह एंटी कोरोना वैक्सीन पर रिसर्च जारी है किंतु जब तक कोई कारगर निदान नही मिल जाता तबतक इस COVID-19 कोरोना वायरस से हमें एचआईबी की तरह व्यवहार करना होगा क्योंकि कोरोना को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है!"
WHO के इस नजरिये पर तार्किक और प्रमाणिक नजरिये से विचार किया जाए, न कि वैचारिक अथवा भावनात्मक प्रतिबद्धता के मोहपाश में बंधकर कुकरहाव का निरर्थक प्रदर्शन किया जाए!
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस आकाशवाणी के मद्देनजर किसी ने एक महत्वपूर्ण सवाल किया है कि:-
"कोरोना संकट से निपटने के लिये तमाम धर्म मजहब के मठाधीश और आस्था स्थल क्या कर रहे हैं? क्या कोई उपाय खोज रहे हैं या केवल धर्मांधता का पोषण कर रहे हैं ताकि लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में उसका जमकर दुरुपयोग किया जा सके?"
यह सर्वविदित है कि दुनिया के 70% 'साइंस के आविष्कार' घोर भौतिकवादी 'नास्तिक' वैज्ञानिकों ने किये हैं! 10%आविष्कार ईसाई धर्मावलंबी वैज्ञानिकों ने किये हैं! लगभग 5% आविष्कार यहूदी साइंटिस्टों ने किये हैं! इसी तरह 5% आविष्कार वैदिक आर्यों ने, 5% आविष्कार बौद्ध -जैन विद्वानों ने और शेष 5% आविष्कार उन्होंने किये हैं जो गर्व से कहते हैं कि दुनिया की सारी खोजों का श्रेय उनके पूर्वजों को जाता है !
जो हिंदुत्ववादी हैं उनका भगवान श्रीराम के नाम पर वोट कबाड़ने और सत्ता हासिल करने का रिकार्ड जग जाहिर है!किंतु चाहे कोरोना हो या कोई मामूली वायरल बुखार हर बीमारी के लिये एलोपैथिक डॉक्टरों और अस्पतालों के बाहर भीड़ लगी है! ऐंसा प्रतीत होता है कि रामभक्तों को भगवान श्रीराम पर और अपने 33 करोड़ देवी देवताओं पर अटूट आस्था है! इसीलिए वे कोरोना वैक्सीन बनाने या नये बेहतरीन अस्पताल बनाने और नये काबिल डॉक्टरों को तैयार करने के बजाय संकटकालमें कभी मंदिर बनाने, कभी ताली,कभी थाली बजाने और कभी घंटे घड़ियाल बजाने पर यकीन रखते हैं!
इसी तरह जो भगवान श्रीराम के सनातन विरोधी हैं,मजहबी पत्थरबाज हैं और जातिय आरक्षणधारी हैं,वे कोरोना महामारी रोकने में कोई मदद करने के बजाय बीमारी फैलाने का काम करते रहते हैं! इस घातक महामारी के निदान पर उनका एक ही नजरिया है कि सारी विफलताओं का ठीकरा मोदी सरकार के सर फोड़ दिया जाए! इसीलिये इन तमाम विपक्षियों और श्रीराम विरोधियों की दुर्गति किसी से छिपी नही है!
इसी तरह जमातियों/तालिवानियों का सारा जोर एक अल्लाह के करम पर यकीन करने कराने का रहा है!इसीलिए शताब्दियां गुजर गईं,किंतु कोई वैज्ञानिक अाविष्कार नही कर पाए! यदि कभी कोई वैज्ञानिक आविष्कार इस्लामिक जगत में हुआ भी होगा तो वह भी 'खुदा का कमाल' मानकर उसका श्रेय किसी इंसान को देना ठीक नही माना गया होगा!
सभ्य संसार में साइंस के कंधों पर चढ़कर मजहबी उन्माद और धर्मांधता का जहर फैलाकर वे कई बार गौरवान्वित हो चुके हैं! किंतु अब आधुनिक 21 वीं शताब्दी में यदि ये धर्मांध लोग अतीत का मोह छोड़ने को तैयार नहीं हैं तो यह सरासर 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' है!
आज जबकि गरीब अमीर हरेक के हाथों में 'साइंस का चमत्कार' मोबाइल है और जो इस मुश्किल वक्त में सबका साथी है! आज हर एक के इर्द गिर्द रेल,मोटर बस बाईक, टीवी बिजली,कम्प्युटर जो कुछ भी है,यह सब साइंस का ही कमाल है!वेशक ये सारे आविष्कार जिन लोगों ने किये हैं,उनमें से अधिकांस घोषित नास्तिक रहे हैं!
फिर भी यदि ये सारे आविष्कार अल्लाह या ईश्वर का कमाल हैं तो भी हिंदुओं को और मुस्लिमों को सोचना चाहिये कि बम,बारूद, बंदूक जैसे हथियार ईश्वर -अल्लाह ने नहीं शैतानों ने बनाये हैं! जाहिर है कि शैतान के आविष्कारों का उपयोग करना कुफ्र है!

2007-8 में वैश्विक आर्थिक मंदी की सुनामी ने अमेरिका और यूरोप जैसे देशों की कमर तोड़ दी थी!किंतु भारत सुरक्षित बच गया था! क्योंकि भारत के मध्यम वर्ग को बचत करने की आदत रही है! इसलिये भारत की अर्थव्यवस्था गतिमान रही जिसका श्रेय डॉ. मनमोहनसिंह को फोकट में मिल गया!
कोरोना संकट से अमेरिका,यूरोप और पूरी दुनिया में हाहाकार मची है!भारत पर भी कोरोना का कहर टूटा है!किंतु यदि जमाती तबलीगी मरकजी फिदायीन दुष्ट आग नही मूतते, तो जितना नुकसान हुआ है उतना भी नही होता! बहरहाल भारत को अमेरिका, यूरोप के सापेक्ष बहुत कम नुकसान हुआ है! इसकी बजह लाकडाऊन और मेडीकल क्षेत्र का कितना योगदान है?इस पर आने वाला वक्त ही निर्णय करेगा! केंद्र राज्य सरकार ने कोरोना से लड़ने में क्या भूमिका निभाई, वह सब जानते हैं,बताने की जरूरत नहीं!किंतु भारत में कोरोना का कहर यदि अमेरिका या यूरोप के बराबर नही टूटा,तो इसके लिये भारत की 60% वो आबादी है जो गांव में रहती है !
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60-70 के दशक में जब आजाद भारत में निजी क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों ने देश के विकास में सहयोग से इंकार कर दिया,तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने निजी बैंकों और बीमा कंपनियों का जबरन राष्ट्रीयकरण करके देश की तरक्की के ताले खोल दिये! सरकारी बैंक और सरकारी बीमा कंपनी आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं!
कोरोना संकटकाल में निजी अस्पतालों ने जनता और सरकार को ठेंगा दिखा दिया, अत: नाराज सरकारों ने प्राइवेट अस्पतालों को सील करने और लाइसेंस निरस्त करने का फरमान जारी किया है! इससे बेहतर यह विकल्प होता कि बड़े बड़े निजी अस्पतालों को अधिग्रहीत कर उन्हें सरकारी घोषित कर दें!निजी क्षेत्र में कार्यरत डॉक्टरों,नर्स और पैरामेडीकल स्टाफ को अनिवार्य सेवा शर्तो के तहत सशर्त सेवा में लिया जा सकता है!


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खबर है कि म.प्र.और यूपी सरकार ने तीन साल के लिये श्रम कानून स्थगित कर दिये हैं!इस शर्मनाक हरकत पर केवल वामपंथी संगठन ही मजदूरों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं! सीटू सहित तमाम श्रम संगठन लॉकडाऊन के बाद कोई बड़ा आंदोलन छेड़ सकते हैं!
जैसा कि सभीको ज्ञात है कि म.प्र.और यूपी में जब कभी चुनाव होते हैं तो वोटर के रूप में यह मजदूरवर्ग वामपंथी उम्मीदवारों को वोट नही देता,यही वजह है कि म. प्र.और यूपी में एक भी वामपंथी विधायक नही है! लुटा पिटा मजदूरवर्ग जिन्हें वोट देता है,वे सपा,बसपा राजद,जदयू और भाजपा के नेता ऩ केवल औरंगाबाद में हुए मजदूर संहार पर चुप हैं! बल्कि एमपी,यूपी में श्रम कानूनों के स्थगित होने पर ये सभी चुप हैं! मजदूरों का समर्थन करने के बजाय मीडिया और संघी भाई केवल पूंजीपतियों के हितों की रक्षा में तैनात हैं! मजदूर किसान को भी अभी तक यह नही मालूम कि उनके हितों की रक्षा कौन करता है?

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कोरोना संकट के बहाने कई जगह सरकारी,निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूर कर्मचारियों के वेतन समझौते टाल दिये गये!कई जगह 7 वें वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू ही नहीं हुई या थर्ड PRC लागू नहीं हुई!कई जगह मेंहंगाई भत्ता जाम कर दिया गया!मेडीकल भत्ता बंद कर दिया! कहने का लब्बोलुआब ये है कि मजदूर कर्मचारियों से तो मोदी सरकार ने श्रम और उनकी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा जबरन हड़प लिया और इजारेदारों के पक्ष में श्रम कानून ढीले कर दिये ! अब देखने की बात यह है कि 20 लाख करोड़ का पैकेज किस किस को दिया जा रहा है ?

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WHO ने ताजा प्रेस विज्ञप्ति में ऐलान किया है कि "हम जिस तरह 'एचआईवी' को खत्म नहीं कर पाये किंतु उससे बचाव करना सीख गये,इसी तरह कोरोना वायरस को खत्म कर पाना संभव नही, किंतु उसके रहते हुए भी हमें जीना सीखना होगा" -
WHO की उक्त विज्ञप्ति को गौर से पढ़ने के उपरांत समसामयिक भारतीय राजनीति पर एक नया सिद्धांत पेश है:-

भारत के नागरिक 74 साल में सत्ता के चिपकू पूंजीवादी शासकों (एचआईवी) को खत्म नही कर सके! किंतु जनता ने उनके साथ रहना सीख लिया!अब राजनीति में अंधराष्ट्रवाद रूपी (कोरोना) का बोलबाला है और इसे खत्म करना भी मुश्किल है!इसलिए उसके रहते हुए,उससे दूरी बनाकर लोगों को जीने की आदत डालनी होगी!



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