कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़ देशकी तमाम राजनैतिक पार्टियाँ पूँजीपति वर्ग से चंदा लेतीं हैं! पूंजीपति यह चंदा उन्हें दो प्रकार से देते हैं! एक तो 'नंबर एक' पार्टी फंड में!और दूसरा-गुप्त रूप से सत्तापक्ष को नंबर दो में!
क्योंकि कम्युनिस्ट पूंजीवाद के खिलाफ हैं, वे मेहनतकश मजदूर किसान और आम आदमी के पक्षधर हैं,अत: भारत का भ्रस्ट पूंजीपति वर्ग कम्युनिस्टों को चंदा नही देता! और कम्युनिस्ट भी पूंजीपतियों के चंदे को हराम समझते हैं! किंतु इस संदर्भ में 20-25 साल पहले जब पश्चिम बंगाल में ज्योति वसु के नेतत्व में वामपंथ का शासन था,तब एक रोमांचक घटना घटी!
रतन टाटा तब टाटा कंपनी के नये नये प्रमुख बनाये गये थे! उन्होंने हर क्षेत्र में सुधार किया और कंपनी को आगे बढ़ाया!एक बार उनके एक अकाउंट अधिकारी ने राजनैतिक दलों के चुनावी चंदे का व्योरा टाटा के समक्ष पेश किया!रतन टाटा ने देखा कि चंदा लेनेवालों में CPI (M) समेत अन्य कम्युनिस्ट दलों का नाम नही है!तब उन्होंने इस बाबत स्टाफ से जानकारी हासिल कर तत्काल CPI(M) के नाम 16 लाख रु. का चेक काटकर भिजवा दिया!
कुछ दिनों बाद सीपीएम महासचिव ने टाटा को जब धन्यवाद सहित वह चैक लौटाया तो चैक वापिसी का पत्र पढ़कर रतन टाटा दंग रह गये ! सीपीएम महासचिव ने लिखा था कि "जिंदगी भर जिसके खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाये, उससे पार्टी फंड में पैसा कैसे ले सकते हैं?" पत्र पढ़कर रतन टाटा सीपीएम की ईमानदारी और ज़िंदादिली पर फिदा हो गये और बंगाल में उद्योग लगाने के लिये स्वत: तैयार हो गये! स्मरण रहे कि उस दौर के बंगाल में मजदूर संगठन बहुत ताकतवर थे, इसलिए कोई भी उद्योगपति बंगाल में उद्योग लगाने का साहस नही कर पा रहा था! किंतु बाद की कहानी सबको मालूम है कि टाटा ने कैसे बड़ी कठिनाई से सिंगूर में जमीन हासिल की?नेनो कार का कारखाना निर्माण कार्य शुरू किया?और भारत के भ्रस्ट पूंजीपतियों, ने अमेरिका के इशारे पर टाटा और सीपीएम को उखाड़ने का वीभत्स उपक्रम किया और मुस्लिम जमीनदारों ने ममता रुपी घोड़ी पर दाव लगाकर न केवल टाटा को बोरिया बिस्तर बांधने पर मजबूर किया,बल्कि सीपीएम और वामपंथ को भी सत्ताच्युत करवा कर दम लिया!
टाटा और उनकी नेनो तो गुजरात में सफल रहे,किंतु बंगाल में वामपंथ को धक्का लगने से पूरे मुल्कमें वामपंथ अब केवल जनसंघर्षों का हरावल दस्ता मात्र रह गया है!
टाटा और उनकी नेनो तो गुजरात में सफल रहे,किंतु बंगाल में वामपंथ को धक्का लगने से पूरे मुल्कमें वामपंथ अब केवल जनसंघर्षों का हरावल दस्ता मात्र रह गया है!
आज भी हर आंदोलन में नारा सुनाई देता है
-"टाटा बिड़ला की जागीर नही हिंदुस्तान हमारा है "
जबकि हिंदुस्तान को चरने वाले अंबानी अडानी जैसे भ्रस्ट पूंजीपति आज भी वह दर्जा हासिल नहीं कर सके जो टाटा को प्राप्त है!
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