मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

'कोरोना पुराण' और 'जमाती अध्याय

रामायण में एक कथा है -एक बार इंद्रपुत्र जयंत कौआ बनकर, सीताजी के चरण में चोंच मारकर भागता है,रामजी का बाण उसका पीछा करता है!तीनों लोक में जब किसी ने उसकी मदद नही की,तो वह वापिस श्रीरामजी की शरण में गया और अभयदान प्राप्त किया!
भारतवर्ष के 'कोरोना पुराण' और 'जमाती अध्याय' में भी ऐंसी ही एक कथा आती है!
"तब्लीगी समाज के प्रमुख मौलाना साद ने पहले तो तमाम जमातियों को 'सोशल डिस्टेंसिंग' और लॉकडाऊन के खिलाफ भड़काया फिर सरकार और भारत पर विष वमन किया! जब पुलिस पीछे पड़ी तो अब किसी दड़बे से उसने आकाशवाणी जारी की है -
''तमाम मुस्लिम जमात को चा
हिये कि प्रशासन की मदद करें"

कोरोनाग्रस्त भगोड़े जमातियोंको चाहियेकि बिल्डर माफिया,खनन माफिया,व्यापम कांडियों के गले मिल-मिला लें,खुदा सारे गुनाह माफ कर देगा !


फेसबुक पर  एक वीडियो देखा! जिसमें एक मुस्लिम युवा एक्टिविस्ट 'सोशल डिस्टेंसिंग' का मजाक उड़ा रहा है-
'हमारे समाज में 10 बाय 10 के कमरे में 10-10 एक साथ रहते हैं,सोशल डेस्टेंसिंग कैसे संभव है'

जनसंख्या बृद्धि की इस स्वीकारोक्ति पर भारतीय संविधान का क्या जबाब है?यदि जबाब है तो कार्यवाही क्यों नही? यदि कोई जबाब नही,तो इसका मतलब संविधान में बहुत बड़ी खामी है!इस तरफ भारतीय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और भारत सरकार का क्या नजरिया है, हमें नही मालूम!

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और भी गम हैं जमाने मैं 'कोरोना' के सिवाय:-
'विचार शक्ति' की महत्ता जग जाहिर है। एक तरफ इसके दुरूपयोग से इंसान हैवान या शैतान बन सकता है ,दूसरी तरफ इसके सदुपयोग से इंसान दुनिया में इंसानियत का झंडा भी बुलंद कर सकता है।
मनुष्य अपने अवचेतन मन की वृत्तियों को पुंजीभूत कर उससे उत्पन्न ऊर्जा के मार्फत प्राकृतिक तत्वों और अन्य प्राणियों के व्यवहार को भी बदल सकता है। यह कोई दैवीय चमत्कार नहीं है! अपितु विशुद्ध मनोविज्ञान है। इस प्रक्रिया का आस्तिक -नास्तिक से कोई वास्ता नहीं। यह विशुद्ध मानसिक मशक्क्त है।
प्रायः हर जागरूक मनुष्य यह जानता है कि यदि वह अपने विचारों पर ध्यान दे,तो उसके विचार ही शब्द बन जाते हैं। और यदि शब्दों पर ध्यान दे तो वे कर्म बन जाते हैं ! याने विचार ही कर्म का कारण या हेतु बन जाते हैं।इसी विचारशक्ति से ही दुनियामें वैज्ञानिक क्रांति हुई है।इसी विचार शक्ति से राजनैतिक -सामाजिक,सांस्कृतिक क्रांतियाँ संपन्न हुईं हैं। इस विचार शक्ति के दुरुपयोग से ही दुनिया में तमाम जेहादियों जमातियों ने और अन्य तमाम उग्र धर्मांध पाखंडियों ने कुटुम्ब सामाज और राष्ट्र में भ्रान्तियाँ उत्पन्न कीं हैं।
सवाल किया जाना चाहिये कि यदि विचार शक्ति का सिद्धांत नकारात्मक संदर्भ में सही हो सकता है,तो वह सकारात्मक अर्थ में भी सही क्यों नहीं होगा ? बीसवीं शताब्दी के नाजीवादी -फासीवादी हिटलर का मंत्री गोयबल्स कहा करता था कि एक झूंठ को बार-बार बोलो तो वह सच में परिणित हो सकता है !
भारत में भी कुछ लोग हिटलर के अनुयायी हैं ,वे भी इस विचार शक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का दुरूपयोग करते हुए राज्य सत्ता हासिल करने में भी कामयाब हो रहे हैं। लेकिन विचार की इस राह पर विनाश सुनिश्चित है। अंततोगत्वा सामूहिक जन चेतना की यह विचारशक्ति ही सहिष्णुता , धर्मनिरपेक्षता,उदारवादी-जनवादी व्यवस्था का आह्लवान कर सकती है!
जो लोग धर्मनिपेक्ष भारत में समाजवादी समाज चाहते हैं,उन्हें भीड़तंत्र को लोकतंत्र नहीं मान लेना चाहिए ,बल्कि अपनी उत्कृष्ट क्रांतिकारी विचार शक्ति की सामूहिक और सकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
इस विचारशक्ति को सिर्फ सार्वजानिक जीवन में ही नहीं,बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी इसका सदुपयोग कर मानव जीवन को खुशहाल बनाया जाना चाहिए।

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वायरस और बैक्टीरिया को अपना शत्रु मत मानिए... वो आपकी कोशिका को आपसे ज्यादा जानते हैं..कोशिका भी उनके साथ तालमेल से रहना जानती है...बस अपने मन से कहिए कि वो डर और नफरत की बजाय सदभाव और साहचर्य पर ध्यान दे... मन की करतूतों ने ही बहुत सारे जीवों और सूक्ष्मजीवों को आपका विरोधी बना दिया है...अब वक़्त आ चुका है ... आप अपने मन को समझा दें कि ये धरती जितनी आपकी है... उतनी ही किसी अदृश्य सूक्ष्मजीव की या किसी सूक्ष्म पौधे की भी है...आपका शरीर खुद एक दुनिया है जिसमें बहुत सारे जीव और पदार्थ एक बेहतर तालमेल के साथ रहते हैं... ये तालमेल अनेक सूक्ष्म कणों और सूक्ष्म जीवों की अथक कोशिशों का नतीजा है... आपका दिमाग इस तालमेल का सहज संचालक है...आपका मन बहुत सारे दिमागों का एक तंत्र है जो आपके लिए सूचना, विचार और कल्पनाएं लाकर देता है...अगर आपका मन आपके दिमाग को लगातार भर रहा है तो आपका दिमाग अपनी सहज संचालन करने की क्षमता खो देता है...ऐसी स्थिति में आपके मन में अनगिनत सूचनाएं, विचार और कल्पनाएं भरी होती हैं.. लेकिन आपका दिमाग उनकी प्रोसेसिंग नहीं कर पाता और हैंग हो जाता है...ऐसे में आपके शरीर में कोशिकाओं, सूक्ष्म जीवों और पदार्थों का सहज तालमेल बिगड़ जाता है.. कुछ घटक सुप्त हो जाते हैं तो कुछ अति सक्रिय... आपकी शारीरिक दुनिया बिखरने लगती है...आपका मन आपके शरीर का दुश्मन बन जाता है क्योंकि उसकी आसक्ति अपनी कल्पनाओं और विचारों को साकार करने में हैं.. न कि आपके शरीर की सहज व्यवस्था को चलाने में... धर्म ,राष्ट्र, जाति, अर्थव्यवस्था, सभ्यता इत्यादि मन के अलग- अलग प्रकार हैं जो किसी न किसी तरीके से आपके दिमाग को हैक करने में जुटे हैं...इन्हें आपके शरीर या किसी अन्य जीव के अस्तित्व की कोई फ़िक्र नहीं है... ये दिमागीतंत्र आपको और अन्य जीवों को केवल अपने काल्पनिक आदर्शों और लक्ष्यों की पूर्ति का साधन बना लेते हैं... अपने मन की हकीकत को आप तभी समझ सकते हैं जब आप किसी समूह या सामूहिक चेतना से अलग होकर अपने दिमाग के साथ संपर्क बहाल करें... आज एक अदृश्य सूक्ष्म जीव , जिसे कोरोना नाम दिया गया है, के माध्यम से आपको सामूहिकता या दिमागीतंत्रों से अलग रहने का अवसर मिला हैं...इस मौके का लाभ उठाइये... बीमारी, आपदा, महामारी या महाविनाश जैसे शब्दों और विचारों में खोए रहने की बजाय अपने दिमाग के संपर्क में रहिए... वही आपको आपके शरीर में मौजूद कोशिकाओं, सूक्ष्म जीवों और कणों के संसार में ले जाएगा ..जहाँ जाकर ही आप अपना ,सृष्टि का,प्रकृति का और मेरा वास्तविक स्वरूप देख समझ सकते हैं ...तभी आप देख पाओगे कि जिस सूक्ष्म जीव को आज आप मानवता का घोर शत्रु या संकट मान रहे हैं... वो लाखों सालों से आपके आसपास ही मौजूद रहा है...आपके सहज भावों को मन के बोझ ने दबा दिया है... इसलिए आपके और सूक्ष्म जीवों के बीच स्पंदन के रूप में होने वाला सहज संवाद थम सा गया है... उस सहज संवाद को पटरी पर दोबारा लाइए... बातचीत शुरू होते ही कोरोना आपको एक सुंदर जीव के रूप में दिखेगा... अपने मन को स्पष्ट बता दीजिए कि इंसान धरती का तानाशाह नहीं... बल्कि जीवन का एक सूक्ष्म हिस्सा है...जब तक आप सूक्ष्मता को अनुभव नहीं करेंगे... तब तक आप अपने विराट ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति नहीं कर पाएंगे...

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