इंदौर के वाम जनवादी संगठन,आनंदमोहन माथुर जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता और शफी शेख जैसे सामाजिक कार्यकर्ता अल्पसंख्यक वर्ग के हितों के लिये तो खूब लड़ते हैं!किंतु जब कोरोनाग्रस्त अल्पसंख्यकवर्ग ने ऑन ड्युटी डॉक्टरों,नर्सों,पैरामेडीकल स्टाफ पर पत्थर फैंके,थूंका,दौड़ाकर मारा पीटा तब ये तमाम धर्मनिरपेक्ष क्रांतिकारी साथी चुप्पी साध कर कहाँ छिपे रहे?
क्या अल्पसंख्यक होने का मतलब अराजक अपराधी समूह है? क्या रानीपुरा और अन्य 'शांति के टापुओं' का यह निंदनीय कदाचरण लोकतंत्रात्मक और संवैधानिक है ? जो ऑन ड्युटी डॉक्टर्स स्टाफ,नर्सिंग स्टाफ और पैरा मेडीकल स्टाफ सिर पर कफन बांधकर इस शहर को बचाने में जी जान से जुटा है,जिस पर हमें नाज होना चाहिए,जिस पर हमें फूल बरसाना चाहिये,उस पर कोई पत्थर बरसाये, और कोई कमीना उन पर थूँकता देखा जाए तो ऐंसे अराजक तत्वों को फांसी की सजा भी कम है!
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