प्रातः पसर गये धुआँ धूल धुंध शोर,
पता ही नही चले कब दिन ढल जावे है!
अगहन की रातें ठंडी झोपड़ी में काटे,
खेत खलिहान शीत लहर में बितावै है!!
कटी फटी गुदड़ी और घास फूस छप्पर ,
आशंका ओलों की नित जिया घबरावे है!
भूत का भविष्य का और वर्तमान काल का,
मौसम शीत रितु का निर्धन को सतावे है!!
गर्म ऊनी वस्त्र और वातानकूलित कोठियाँ ,
लक्जरी लाइफ भ्रस्ट बुर्जुआ ही पावे है।
पता ही नही चले कब दिन ढल जावे है!
अगहन की रातें ठंडी झोपड़ी में काटे,
खेत खलिहान शीत लहर में बितावै है!!
कटी फटी गुदड़ी और घास फूस छप्पर ,
आशंका ओलों की नित जिया घबरावे है!
भूत का भविष्य का और वर्तमान काल का,
मौसम शीत रितु का निर्धन को सतावे है!!
गर्म ऊनी वस्त्र और वातानकूलित कोठियाँ ,
लक्जरी लाइफ भ्रस्ट बुर्जुआ ही पावे है।
-श्रीराम तिवारी
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