सोमवार, 9 दिसंबर 2019

गृह मंत्री अमित शाह की जिन्नाह-सावरकर भक्ति



आज लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बिल्कुल वाट्सएप यूनिवर्सिटी के निष्ठावान छात्र की तरह भाषण दिया।
विकृत इतिहास बोध के सहारे सांप्रदायिक नफरत से भरे अपने भाषण में धार्मिक आधार हुए भारत के विभाजन के लिए पूरी तरह कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी जिन्नाह-सावरकर भक्ति का परिचय दिया।
ऐसा करते हुए उन्होंने न सिर्फ मुहम्मद अली जिन्नाह और उनकी मुस्लिम लीग को क्लीन चिट दी, बल्कि परोक्ष रूप से जवाहरलाल नेहरू के साथ ही महात्मा गांधी और उन सरदार पटेल को भी कठघरे में खडा किया, जिनका रणनीतिक गुणगान वे खुद और प्रधानमंत्री मोदी अक्सर करते रहते हैं।
सवाल यही है कि अगर देश के विभाजन के लिए उस समय का कांग्रेस नेतृत्व यानी नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद, कृपलानी आदि जिम्मेदार थे, तो भाजपा के राजनीतिक और वैचारिक पुरखे उस समय क्या कर रहे थे?
स्वाधीनता संग्राम से अलग रहकर ब्रिटिश हुक्मरान के अंतर्वस्त्र धोने में मशगूल सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर आदि ने क्यों नहीं रोक लिया देश का विभाजन? उन्हें पहल करने से किसने रोका था? अगर वे वाकई देशभक्त थे तो उनकी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती थी कि नहीं?

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