जिस तरह असफल व्यक्ति,असफल समाज और असफल राष्ट्र की दुनिया में कोई आदर्श स्थिति नहीं हो सकती,उसी तरह किसी सफल व्यक्ति सफल समाज और सफल राष्ट्र का भी दुनिया में कोई आदर्श मानकीकरण नहीं हो सकता ! जो व्यक्ति,समाज या राष्ट्र सफल कहे जाते हैं वे देश,काल,परिस्थतियों के अलावा असफल व्यक्तियों,असफल समाजों और असफल राष्ट्रों की लापरवाही और अयोग्यता का बेजा फायदा उठाते हैं।
इस संसारमें हमेशा ही कुछ शक्तिशाली और नेकदिल करुणावान लोगों की मौजूदगी बनी रहती है!उनकी सदाशयता का बेजा फायदा उठाकर ही कुछ धूर्त बदमाश और काइंयां लोग तथाकथित सफलता को प्राप्त होते रहते हैं। लेकिन तमाम असफल लोगो की असफलता के लिए बहुत हद तक वे खुद ही जिम्मेदार होते हैं। यह तथ्य न केवल तार्किक या बौद्धिक आधार पर,बल्कि विज्ञान और आध्यात्म दर्शन के कार्य कारण सिद्धान्तानुसार भी यह स्वयं सिद्ध है कि:-
"कोऊ न काऊ सुख दुख कर दाता!
निजकृत करम भोग सब भ्राता!!"
निजकृत करम भोग सब भ्राता!!"
यानो गोस्वामी तुलसीदास कह गये हैं कि-''कोई किसी को सुख दुःख दने वाला नहीं हो सकता,सभी अपने अपने कर्म का फल भोगते हैं ''!
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