पद्मश्री राहुल बजाज ने अमित शाह की मौजूदगी में मोदी सरकार की यह कहकर आलोचना की थी कि"सरकार के डर से लोग जरूरी प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते,क्योंकि वे बुरे अंजाम से डरते हैं"
जो लोग राहुल बजाज के इस सत्य कथन को ट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं,उन्हें मालूम हो कि उनके पुरखे भी राहुल बजाज के पुरखों के कर्जदार हैं।
इन दिनों ऐसे पूंजीपति मालामाल हो रहे हैं जिनके पूर्वजों का आजादी की लड़ाई में रत्ती भर योगदान नहीं रहा,किंतु इन नव धनाड्यों पर मोदी सरकार 6 साल में देश के खजाने से 5.5 लाख करोड़ लुटा चुकी है।
जबकि इसी देश में एक ऐसा भी पूजीपति हुआ था जिसने आज़ादी आंदोलन में न सिर्फ अपनी कमाई दान कर दी, बल्कि तिलक,महात्मा गांधी और विनोबा भावे के साथ आजादी की जंग लड़ी और जेल भी गया।
नेहरू के जन्म के 10 दिन पहले राजस्थान के एक मारवाड़ी परिवार में एक और लड़का पैदा हुआ था जमनालाल बजाज। वह लड़का केवल चौथी कक्षा पास कर पाया जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी। उन्हें वर्धा के एक धनी परिवार ने गोद ले लिया।
यह परिवार अपने धन वैभव का प्रदर्शन करने का शौकीन था। एक बार एक विवाह उत्सव में जाना था। जमना से कहा गया कि हीरे जवाहरात जड़े कपड़े पहनें। इस बात पर जमनालाल की अपने पिता से झगड़ा हुआ और उन्होंने घर छोड़ दिया। भागने के बाद जमना ने अपने पिता को एक कानूनी दस्तावेज भेजा जिसमे कहा कि मुझे धन का लोभ नहीं है। आपका धन्यवाद कि आपने मुझे उस जंगल से मुक्त कर दिया।
बाद में उन्हें खोजकर लाया गया, लेकिन जब उनके इस पिता की मृत्यु हुई तो जमनालाल ने उनकी सारी संपत्ति दान कर दी, क्योंकि वे इसे पहले ही त्याग चुके थे।
जमनालाल को बचपन मे किसी आध्यात्मिक गुरु की तलाश थी। सबसे पहले वे मदन मोहन मालवीय से मिले और कुछ दिनों तक उनके सानिध्य में रहे। इसके बाद में रबीन्द्रनाथ टैगोर से मिले, कई संतों से मिले लेकिन खोज पूरी नहीं हुई।
1906 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी के लिए इश्तहार दिया तो जमनालाल ने अपनी जेब खर्च से 100 रुपये बचाये और दान किया। बाद में उन्होंने लिखा कि उस 100 रुपये के दान से जो खुशी मिली थी, वह बाद में लाखों के दान से नहीं मिल पाई।
उधर अफ्रीका में गांधी जी अंग्रेजी हुक़ूमत के अन्याय के खिलाफ चरस किये थे। इसकी खबरें पढ़कर जमना काफी प्रभावित हो रहे थे। गांधी जब भारत लौटे तो जमनालाल भी उनके साबरमती आश्रम पहुंच गए। गांधी की जीवन शैली देख कर जमनालाल को लगा कि बस गुरु, हमें तो अपना गुरु मिल गया।
इसके बाद गांधी और जमनालाल का साथ एक इतिहास बन गया। जमनालाल ने गांधी से वर्धा में आश्रम खोलने का अनुरोध किया। गांधी ने इसके लिए विनोबा को भेजा। विनोबा बजाज परिवार के गुरु की तरह वहां रहने लगे।
1920 में जमनालाल बजाज ने गांधी के सामने प्रस्ताव रखा कि वे गांधी को अपने पिता के रूप में गोद लेना चाहते हैं। गांधी इस अजीब प्रस्ताव को हैरान के साथ मान गए। गांधी उनको अपना पांचवां पुत्र मानते थे।
जब गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो जमनालाल ने अपने घर सारे विदेशी वस्त्रों को इकट्ठा करवाया और बैलगाड़ी पर लाद कर शहर के बीचोबीच जलवा दिया।
अंग्रेजों ने जमनालाल को राय बहादुर की पदवी दी थी जिसे उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने अदालतों के बहिष्कार करते हुए अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए। जिन वकीलों ने असहयोग में वकालत छोड़ दी उनकी आर्थिक मदद के लिए जमनालाल ने कांग्रेस के कोष में एक लाख दान दिया।
जमनालाल ने भारत में तब ट्रष्ट और फाउंडेशन की स्थापना की जब देश को इसके बारे में सोचने का वक्त नहीं था।
पंडों के विरोध के बावजूद जमनालाल ने विनोबा के साथ मिलकर दलितों का मंदिर में प्रवेश करवाया। अंग्रेजी हुक़ूमत के विरोध के लिए 1921 में जमनालाल और विनोबा भावे गिरफ्तार किए गए। विनोबा को एक महीने और जमना को डेढ़ साल की सजा हुई।
1937-38 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया जिसे उन्होंने अस्वीकार करते हुए सुभाष चंद्र बोस के नाम की सिफारिश की।
1924 में नागपुर में दंगे हुए तो जमना दंगे रोकने पहुंच गए। उनको चोट आई। इस पर गांधी ने कहा मुझे खुशी है। आप लोग डरपोक न बनें। अगर जमना की जान भी चली जाती तो मुझे दुख नहीं होता क्योंकि इससे हिन्दू धर्म की रक्षा होती।
जमनालाल बजाज ने ताउम्र तन, मन, धन से। आज़ादी आंदोलन और गांधी का साथ दिया। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ने विनोबा के साथ भूदान आंदोलन में सक्रिय थीं।
गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत को जीने वालों में एक नाम जमनालाल बजाज का है। जमनालाल बजाज का 1942 में देहांत हुआ लेकिन उनका परिवार देश के लिए सक्रिय रहा और यथासंभव योगदान देता रहा।
गांधी जी ने खुद जमनालाल के बारे में काफी कुछ लिखा है। गांधी और विनोबा उनके पारिवारिक सदस्य जैसे थे। सब यहाँ लिखना संभव नहीं है। उन्हीं के पोते हैं राहुल बजाज जिनको भारत सरकार ने पद्मभूषण दिया है।
आज के इस कॉरपोरेट और राजनीति के गठबंधन के दौर में, जब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राफेल लूट हो रही हो, तब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में कौन बताए कि इस देश में एक वैरागी पूंजीपति भी हुआ था, जिसने अपनी पूंजी देश की आज़ादी के लिए लुटाई। वह ऐसा पूंजीपति या ऐसा फ़क़ीर नहीं था जो देश को लूटे और झोला उठा कर चल दे।
लेकिन भारत में आज नमकहरामों की भरमार हो गई है जो गांधी से लेकर गौरी गणेश तक किसी को भी गरिया सकते हैं। इनपर आप सिर्फ तरस खा सकते हैं।
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