शनिवार, 2 जून 2018

  • धर्मांध दक्षिणपंथियों की मुँहजोरी से निपटने के लिये कुछ प्रगतिशील वामपंथी मित्र आपा खो देते हैं! वे धर्म-मजहब के मामलों में हद दर्जे की नकारात्मकता पर उतर जाते हैं! वे धर्मांधता पर खूब बहस करते हैं, किन्तु धार्मिक पुस्तकों को पढ़े बिना ही तत्संबंधी तकरीरें झाड़ने लगते हैं। कुछ अति उत्साही प्रगतिशील चिंतक एक ही ढर्रे पर लगातार लिखते-बोलते चले जा रहे हैं ,कि शंबूक के साथ अन्याय हुआ,कि एकलव्य के साथ बुरा हुआ,कि महिलाओं के साथ ऐंसा हुआ और दलितों के साथ वैंसा हुआ! जब आपने मान लिय...ा कि रामायण,गीता ,महाभारत,वेद और पुराण सब मिथ हैं या काल्पनिक हैं,तो उसी मिथ को आधार बनाकर अब विधवा विलाप क्यों?
    यदि हरिष्चंद्र और दधिचि के त्याग बलिदान की कथा मिथ है,तो शंबूक बध या धोबी की कथा का महिमा मंडन क्यों? जो जो बेहतर है उसकी चर्चा न कर केवल जो प्रतिकूल नजर आया,उसीको आधार मानकर अपनी पुरातन मूल्यनिधि की धज्जियाँ उड़ाना कौन सी प्रगति शीलता है? प्राय : आरोप लगाया जाता है कि सवर्ण हिंदु या आर्य लोग अपनी महिलाओं को और शूद्रों को उनके हकों से बंचित रखते थे! वेशक सामंतयुग में शोषण बहुत था,किंतु तब तो सभी कमजोर बेहाल थे ! यह पूरा सच नही कि सिर्फ दलित या दास या स्त्री जाति ही पीड़ित हुआ करते थे!
  • बाल्मीकि रामायण के अध्याय चार श्लोक १,२,३,को पढ़ने पर मालूम हुआ कि हिन्दू समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था कैसी थी! ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र और स्त्रियों को सामान अधिकार मिले हुए थे-
''अन्यमासम् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वम सुसमहिता ,
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ब्राह्मण क्षत्रिय विशां शूद्राणां चैव योषितां '' [वाल्मीकि रामायण अध्याय -४ श्लोक १,२,३,]
  • अर्थात :- बाल्मीकी रामायण सहित सभी धर्मशास्त्रों को ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र एवं स्त्रियां जो भी पढ़ेगा ,उसे ज्ञान और पूण्य का लाभ होगा !
  • यह अच्छी बात है कि वामपंथी -प्रगतिशील साहित्यकारों को विश्वकाआर्थिक,सामाजिक ऐतिहासिक दार्शनिक और साइंटफिक ज्ञान है!किन्तु यदि वे भारतीय वांग्मय सहित संसार के सभी धर्म-दर्शनों का भी उचित अध्यन कर लेंगे तो साम्प्रदायिकता और फासिज्म का मुकाबला करने में सफलता अवश्य मिलेगी !भारतीय वामपंथियों और प्रगतिशील साहित्यकारों को चाहिए कि वे भी चीनियों की तरह अपनी राष्ट्रीय अस्मिता और अतीत की धरोहरों की रक्षा करते हुए पाखंडवाद से मुकाबला करें। अभी भारत में जो जेहादी-अल्पसंख्य्कवादी- हिन्दुत्ववादी ताकतें हैं वे भारत को रौंद रहीं हैं ,इसका मुकाबला केवल 'नकारात्मक' तरीकों से नहीं किया जा सकता!क्योंकि अतीत की हर चीज बुरी नही हो सकती! और यदि अतीत का सब कुछ गलत है तो उसकी पैदावार याने वर्तमान पीढ़ी सही कैसे हो सकती है?

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