- चालचरित्र चेहरे की कालिख,क्या साबुन से धुल पाएगी,
बड़बोले बकरों की अम्मा,कब तक खैर मनाएगी ?
खरदूषण निशिचर भगनी हों,राक्षस कुल की सूर्पनखायें ,
लोकतंत्र की पंचवटी में,अब मृगया काम न आयगी ।
छद्मवेश सत्ताधारी समझेंगे कब अपनी जन वैदेही को,
तनी हुई ये भृकुटि काल की,क्या लंकाकाण्ड करायेगी?
पूंजीवाद और धर्मान्धता दोनों हैं कुम्भकरण रावण जैसे ,
यदि अच्छे दिन आये इनके,तो जनता की शामत आयेगी! - जनता की शामत आयेगी....!
श्रीराम तिवारी
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