- सुबह हो या शाम हो जिंदगी पलपल बदलती जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की माँग पूर्ति में गुजर जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई और सर्वत्र भी होगा लेकिन,
न्यायिककी तुला उसकी ताकतके पक्षमें झुक जाती है।
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां कोटिक नक्षत्र चंद तारे,...
निहारती नीहारिकायें तटस्थ कोई काम नही आती है।
अब क्यों नही सुनाई देती आकाशवाणी कोई -हे मानव!
एक ही नूर से जग उपजाया,तत्त्वमसि-वयम रक्षाम:
ख्वाबों में कहा होगा -'सब मम क्रत सब मम उपजाये'
हकीकत में उसे सिर्फ बर्बर लुटेरोंकी दुआ ही सुहाती है।
गाज गिरतीहै सिर्फ कमजोर दरख्तों खंडहरों पर,
और सुनामी भी निर्बलों पर मुसीबत बनकर आती है! - *श्रीराम तिवारी
शुक्रवार, 15 जून 2018
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