दो सौ साल तक भारतीय उपमहाद्वीप पर काबिज रहे अंग्रेजों ने,द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले शायद यह उम्मीद नहीं की थी कि उनके 'ब्रिटिश क्राउन' का सूर्यास्त शीघ्र अस्त होने वाला है !यदि उन्हें इसका जरा भी अंदाजा होता तो वे भारत समेत तमाम विश्व में 'फूट डालो राज करो' की दुर्नीति क्यों अपनाते ?खैर द्वितीय विश्वयुद्ध में हुये महाविनाश और मित्र राष्ट्रों की विजय के उपरान्त, अंग्रेजों को भारी मन से भारत छोड़ना पड़ा। विभाजन की कीमत पर भारत आजाद तो हो गया,किन्तु जाते जाते अंग्रेज ,राजकाज चलाने के लिए उनके द्वारा आविष्कृत कानूनी पुलिंदा कांग्रेस के हाथ थमा गए! वायसराय लार्ड माउन्टवेटन की देखरेख में तत्कालीन कांग्रेस ने संविधान सभाका निर्माण किया। दरसल वही ब्रिटिश कानून का ऐतिहासिक पुलिंदा बाद में भारतीय संविधान बना।यह पूरा सच नही है कि संविधान किसी एक व्यक्ति ने लिखा। अपितु यह अंग्रेजों के वीं सदी के मैग्नाकार्टा से लेकर २६ जनवरी १९५० तक जन अनुमोदित कानूनी धाराओं का संकलन है। डा.राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने उसमें जातीय आरक्षण और धर्म- मजहब के उपनियम जोड़कर भारतीय संविधान का निर्माण किया !जिसका कुशल संपादन डॉ भीमराव आंबेडकर ने किया है ! यह सुविदित है कि इस संविधान में जातीय आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ १० वर्ष के लिए थी !अब यदि ७० साल बाद भी अधिकांश दलित और आदिवासी गरीब हैं ,दमित हैं ,शोषित हैं तो इसका सीधा मतलब है कि आर्थिक आरक्षण से कुछ मुठ्ठी भर लोगों का ही भला हुआ है,किन्तु समग्र दलित,शोषित समाज, पिछड़ी जाति के गरीबों और सवर्ण निर्धनों को आरक्षण की नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की मांग करनी चाहिए !
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