रविवार, 17 जून 2018

'राज्य' और उसकी सरकार विषयक कार्ल मार्क्स के विचार -


            मार्क्सवाद राज्य के उद्देश्य और सरकार के उद्देश्य,सरकार के संगठन, तथा उसके विविध रूपों को समझने की दृष्टि देता है।
मार्क्सवाद यह बतलाता है कि राज्य समाज के ऊपर जरूर होता है किन्तु विकास की एक मंजिल पर समाज की ही उपज है।
राज्य की उपज तब हुई जब समाज स्वामी और दास नाम के दो परस्पर विरोधी हित समूहों या वर्गो का जन्म हुआ।
कोई ख़ुशी खुसी दूसरों के लिए जी तोड़ मेहनत करे यह नहीं हो सकता। दासों को दबा कर ही उनसे काम लि...या जा सकता था।
दासों को दबा कर रखने के लिए स्वामियों ने जिस व्यवस्था को जन्म दिया उसका नाम है ,,राज्य,,।
इस तरह राज्य का जन्म उत्पादन के साधनों के स्वामित्व से रहित वर्ग को दबा कर रखने की स्वामी वर्ग की आवश्यकता के कारण हुआ।
इस तरह राज्य का मूल उद्देश्य उत्पादन के साधनों के स्वामी वर्ग के हाथ में स्वामित्व हीन वर्ग को दबा कर रखना है।इसका जो उद्देश्य इसके जन्म के समय था,वहीं आज भी है और यह जब तक जिंदा रहेगा वहीं रहेगा।
इस तरह राज्य दमन का हथियार है।और इसकी प्रकृति तानाशाही की होती है।क्योंकि तानाशाही के स्वभाव के बिना किसी का दमन नहीं किया जा सकता।
इतिहास का पहला राज्य स्वामी वर्ग का ,दूसरा सामंत वर्ग का था और तीसरा पूंजीपति वर्ग का और चौथा सर्वहारा वर्ग का है।
अत: राज्य चाहे जिस वर्ग का हो तानाशाह राज्य ही होता है।
हां सरकारें तानाशाही या लोकतांत्रिक कोई भी हो सकती हैं।
मार्क्सवादी दृष्टि उस आदर्शवाद या प्रत्ययवाद को अमान्य करती है जो राज्य को नैतिक,निर्दोष,कल्याणकारी ,पवित्र,प्राकृतिक और ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण मानती मनवाती है।और यह सिद्धांत देती है कि,,राज्य एक अनिवार्य अच्छाई है।,,
मार्क्सवादी दृष्टि के लिए रास्ता पूंजीवादी दार्शनिकों ने भी बनाया था जिन्होंने निरंकुश राजाओं को चेतावनी देते हुए यह कहा कि राज्य प्राकृतिक नहीं कृत्रिम संस्था है और ,,,राज्य एक आवश्यक बुराई है।,, इसलिए राज्य को वाह्य प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के अतिरिक्त समाज के किसी दूसरे काम में कोई दखल नहीं देना चाहिए।

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