गुरुवार, 28 जून 2018

धर्म और राजनीति !

  • यदि कोई सभ्य सुशिक्षित मनुष्य 'भाववादी उटोपिया' की असफलताओं को समझना चाहता हो तो उसे विश्व मानव सभ्यताओं के इतिहास को वैज्ञानिक नजरिये से समझना होगा! मानव इतिहास में ऐंसा कोई भी धर्म-मजहब,पंथ,दर्शन या विचार नहीं है,जिसने अपने आपको स्थापित कराने में या दूसरों पर थोपने के लिए शक्ति का इस्तेमाल न किया हो ! भारत के वैदिक मन्त्रदृष्टा मुनियों ऋषियों,बौध्दों,जैनों,वैष्णवों और इस्लाम की सूफी धारा में भले ही 'अहिंसा परमो धर्मः' और 'अनलहक 'का जाप किया जाता रहा हो,किन्तु कट्टरपंथी अनु...यायीयों ,संरक्षकों शासकों और चक्रवर्ती सम्राटों ने अपने[अ ] धर्म के लिए अपने सहोदर भ्राताओं का खून बहाने में भी परहेज नहीं किया।भले ही बाद में अनगिनत लाशों को देखने के बाद किसी राजा या सेनापति को आत्मग्लानि हो गयी हो !और वह अपने बुढापे में अहिंसावादी' हो गया हो ! अतीत के भारत,चीन,और यूनान में आधुनिक लोकतांत्रिक बहस से भी बेहतर और सभ्य तरीके से पक्ष-विपक्ष के मध्य, विद्वान गुरुओं और उनके पट्ट शिष्यों के मध्य,प्रश्नोत्तर अथवा शास्त्रार्थ हुआ करते थे! धर्म और राजनीति के क्षेत्र में आलोचनात्मक मत व्यक्त करने का इतिहास आष्चर्यजनक रूप से बहुत पुराना है। किन्तु इस आलोचना अथवा 'मतखण्डन'को कट्टर पंथी इस्लाम ने और भारत के भाववादी -परम्परावादियों एवं स्वार्थी शासकों ने कभी पसंद नहीं किया।

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