- ना मस्जिद की बात हो,न शिवालों की बात हो,*
*जो बेरोज़गार हैं पहले उनंके निवालों की बात हो.*
*मेरी नींद को दिक्कत, ना भजन से.है ना अज़ान से है,*
*मेरी नींद को दिक्कत, खुदकुशी करते किसान से है*
*किसी के बुझते चूल्हे को पुनह सुलगाकर देखो।*...
*किसी के पांव के छालों पर दवा लगाकर देखो।।*
*मजदूरों-किसानों की मेहनत पर गुलछर्रे उडानेवालों*
*समझ में आ जाएगा मूल्य श्रम का और फसलो का*
*जरा कभी खेतो में भी cc tv कैमरे लगाकर तो देखो *
शुक्रवार, 29 जून 2018
खेतो में भी cc tv कैमरे लगाकर तो देखो !
फर्क न रहा जहाँ नीति -अनीति का.....!
- घर से तो निकले थे सारी खुशियाँ जुटाने,
लम्हा लम्हा उदास वीराने में आ गए हम।
होगा कबीलों में कभी जंगल का क़ानून, - किंतु उसी के मुहाने पर फिर आ गए हम।।
हांकते हैं कारवाँ सत्ता के प्यादे जिस दौरमें, - उस पतनशील दौर की जद में आ गए हम।
स्वार्थमें फर्क न रहा जहाँ नीति -अनीति का, - खरामाखरामा वो गली वो शहरआगए हम!!
- लगती रही हैं दाँवपर हमेशा जिधर पांचाली ,
- जाने कब दुर्योधन के उस शहर आ गए हम ।
- चर्चा नहीं किसी जनसंघर्ष क्रांति की जहां,
- ऐंसी बेजान महफ़िल में क्यों आ गए हम।।
और बोलो हर हर मोदी,,,,,,!
- 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान बाबा रामदेव, अण्णा हजारे,मोदीजी,केजरीवाल और संघ ब्रिगेड ने शिद्दत से यह प्रचारित किया था कि स्विस बैंकों में 4 लाख करोड़ रुपये काला धन जमा है! ये वही रकम है जिस मद में से 15-15 लाख जन घन खातों में जमा होने थे! वो सब तो जुमलेबाजी ही सावित हुआ किंतु ताजा खबर है कि यह आंकड़ा कपोल कल्पित था ! कुल रकम 7 हजार करोड़ ही जमा है!और इस रकम का आधा,याने साढे तीन करोड़ रु.विगत 3 साल में याने मोदीजी के राज में ही जमा किया गया है! मोदीजी की ताजपोशी से देश के गद्दारों को यह लाभ हुआ कि चार सालों में काली रकम डबल हो गई है!और बोलो हर हर मोदी! झूठों ने लोकतंत्र की खूब जड खोदी!कालेधन और स्पेक्ट्रम संबंधी झूंठे दुष्प्रचार का लाभ भाजपा को या 'आप' जैसे गैर जिम्मेदारों को हुआ! उम्मीद है कि बेचारे सीधे सरल डा. मनमोहनसिंह को झूंठमूंठ बदनाम करने वालों को देश की जनता एक दिन उनके गुनाहों की सजा जरूर देगी!
जनता की शामत आयेगी....!
- चालचरित्र चेहरे की कालिख,क्या साबुन से धुल पाएगी,
बड़बोले बकरों की अम्मा,कब तक खैर मनाएगी ?
खरदूषण निशिचर भगनी हों,राक्षस कुल की सूर्पनखायें ,
लोकतंत्र की पंचवटी में,अब मृगया काम न आयगी ।
छद्मवेश सत्ताधारी समझेंगे कब अपनी जन वैदेही को,
तनी हुई ये भृकुटि काल की,क्या लंकाकाण्ड करायेगी?
पूंजीवाद और धर्मान्धता दोनों हैं कुम्भकरण रावण जैसे ,
यदि अच्छे दिन आये इनके,तो जनता की शामत आयेगी! - जनता की शामत आयेगी....!
श्रीराम तिवारी
गुरुवार, 28 जून 2018
Modi ji ke 15 lakh,,,,!
- मरणासन्न पिता के पास दो भाई और एक बहन बैठी थी!
- पिता ने कहा- "मैंने जिनसे उधार लिया था, सबको चुका दिया है। जिनसे पैसे वापस लेने थे, उनसे ले भी चुका हूँ। सिर्फ एक जगह बड़ी रकम फंसी है। तुमलोग वसूल सको, तो आपस में बांट लेना।"
- तीनों संतान एक साथ बोली- "जी बाबूजी, जैसी आपकी आज्ञा। किससे कितने पैसे लेने हैं?"
- ...
- पिताजी बोले- "पता नहीं कब मेरे प्राण निकल जाएं, इसलिए मैंने घर के नीचे वाले कमरे की अलमारी में एक खत लिख कर रखा है। मेरी मृत्यु के बाद देख लेना।"
- थोड़ी देर बाद पिताजी ने अंतिम सांस ली। सब काम निपटाने के बाद बच्चों ने घर के कमरे में रखा खत निकाला। लिखा था-
- "2014 में मोदी ने 15 लाख देने का वादा किया था। मेरे हिस्से के रुपये मिल जाऐं तो तुम तीनों पांच-पांच लाख बांट लेना!"
# हरि ओम् #नमो नमो #
पांच वरदान !
- यदि अचानक कभी किसी दैवी शक्ति से अर्थात ब्रह्मतत्व से आपका भी युधिष्ठिर की तरह साक्षात्कार हो जाए,और वो पराशक्ति आपसे पांच मन वांछित वरदान मॉंगने को कहे,तो आप क्या वरदान मांगेंगे ?
- आपकी सुविधा के लिए बतौर उदाहरण मैं यहाँ अपनी च्वाइस बता देता हूँ !
- पहला वर :-हे प्रभु ! यदि बाकई पुनर्जन्म होता है,तो मेरा हर जन्म भारत भूमिपर ही हो!जिस घर में जन्म हो वहाँ विवेकानंद, भगतसिंह ,चेगुवेरा,मुस्तफा कमाल अतातुर्क के विचारोंऔरआदर्शों का सम्मान होता हो!
- ...
- दूसरा वर :-जो लोग भारत में पैदा हुए,यहाँ की खाते हैं,यही जिनकी मातृभूमि है ,वे सभी अपने धर्म,मजहब और जाति से ऊपर उठकर भारत देश को ही अव्वल माने !प्रभु !
- तीसरा वर :-जो दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी तत्व सत्ता में आकर पूँजीपतियों की चरण वंदना करते हैं,मजदूरों,किसानों और वामपंथ को गाली देते हैं,उन्हें थोडी सद्बुद्धि देना प्रभु !
- चौथा वर :-जो लोग भारतभूमि पर हिंदू, सिख,जैन,बौद्ध,ईसाई और मुसलमानों को बरगलाते हैं ,जातिवाद के नाम पर सत्ता हथियाते हैं, देश भक्ति के नाम पर विपक्ष को खत्म करने के सपने देखते हैं,उन दुष्टों का सत्यानाश हो प्रभु !
- पाँचवाँ वर :-जो लोग स्वयंभू देशभक्त हैं ,वे भारत के दलितों,कम्युनिस्टों, मुसलमानों पर अनावश्यक संदेह न करें हैं,उन्हें आतंकी न समझें,हे ईश्वर उन्हें सही दॄष्टि प्रदान करो !
पापी पेटका ही सवाल है!
चूंकि प्रतिक्रियावाद और साम्प्रदायिकता इस देश के आधुनिक पूँजीपतियों की जुडवा पसंद हैं, इसलिए अधिकांस न्यूज चैनल या तो मंदिर मंदिर चिल्ला रहे हैं या मोदी मोदी रटते रहते हैं! उनके पास वे ही सूचनायें हैं जो गोदी मीडिया उपलब्ध कराता है! और वे वही बोलते हैं जो उनके आका बुलवाते हैं! क्योंकि इधर भी पापी पेटका ही सवाल है!
अंबानी,अडानी के उपकार मोदीजी भला कैसे भूल सकते हैं?उन्ही के दम पर तो उन्होंने पहले अपने गुरूवर आडवानी जैसे दिग्गजों को और बाद में कांग्रेस सहित पूरे देश को पछाड़ा है! अब तो झक मारकर वही करना पड़ेगा जो धन्ना सेठ और बाबा लोग कहेंगे !
अंबानी,अडानी के उपकार मोदीजी भला कैसे भूल सकते हैं?उन्ही के दम पर तो उन्होंने पहले अपने गुरूवर आडवानी जैसे दिग्गजों को और बाद में कांग्रेस सहित पूरे देश को पछाड़ा है! अब तो झक मारकर वही करना पड़ेगा जो धन्ना सेठ और बाबा लोग कहेंगे !
पाकिस्तान कोई बालू की लकीर नही है!
भारत -पाकिस्तान के कुछ मूर्ख लोग शगूफा छोड़ रहे हैं कि 2019 में यदि मोदी जी फिर से जीत गये तो पाकिस्तान खत्म हो जायेगा!वेशक भारतीय आवाम मोदी और भाजपा से बेहद नाराज है,किंतु भाजपा को हरा पाने की विपक्ष की ही अभी कोई तैयारी नही है! माया,ममता,शिवसेना और आप जैसे क्षेत्रीय दल जबतक कांग्रेसऔर वामपंथ से दूरी नही मिटाते तब तक भाजपा की बल्ले बल्ले है! इसलिये मोदी और भाजपा को सीटें भले ही कम मिलें,किंतु 2019 में सरकार एन डी ए की ही बनेगी!जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है तो वह कोई बालू की लकीर नही है कि हवा के झोंके से मिट जायेगा! वहां भी तो मजदूर हैं, दलित-अल्पसंख्यक हैं,वामपंथी हैं और भारत से दोस्ती चाहने वाले लाखों हैं! यदि पाकिस्तान के खिलाफ जंग लडने का किसी को शौक है तो खुद जाकर लड़ मरे! भारत पाकिस्तान को जंग में धकेलकर पूरे दक्षेस को बर्बाद करने का मंत्र जपने वाले सावधान -'नमो नमो' सिर्फ मन में ही जपा करो! पालिटिक्स में 'नमो नमो'मत पढ़ो!
धर्म और राजनीति !
- यदि कोई सभ्य सुशिक्षित मनुष्य 'भाववादी उटोपिया' की असफलताओं को समझना चाहता हो तो उसे विश्व मानव सभ्यताओं के इतिहास को वैज्ञानिक नजरिये से समझना होगा! मानव इतिहास में ऐंसा कोई भी धर्म-मजहब,पंथ,दर्शन या विचार नहीं है,जिसने अपने आपको स्थापित कराने में या दूसरों पर थोपने के लिए शक्ति का इस्तेमाल न किया हो ! भारत के वैदिक मन्त्रदृष्टा मुनियों ऋषियों,बौध्दों,जैनों,वैष्णवों और इस्लाम की सूफी धारा में भले ही 'अहिंसा परमो धर्मः' और 'अनलहक 'का जाप किया जाता रहा हो,किन्तु कट्टरपंथी अनु...यायीयों ,संरक्षकों शासकों और चक्रवर्ती सम्राटों ने अपने[अ ] धर्म के लिए अपने सहोदर भ्राताओं का खून बहाने में भी परहेज नहीं किया।भले ही बाद में अनगिनत लाशों को देखने के बाद किसी राजा या सेनापति को आत्मग्लानि हो गयी हो !और वह अपने बुढापे में अहिंसावादी' हो गया हो ! अतीत के भारत,चीन,और यूनान में आधुनिक लोकतांत्रिक बहस से भी बेहतर और सभ्य तरीके से पक्ष-विपक्ष के मध्य, विद्वान गुरुओं और उनके पट्ट शिष्यों के मध्य,प्रश्नोत्तर अथवा शास्त्रार्थ हुआ करते थे! धर्म और राजनीति के क्षेत्र में आलोचनात्मक मत व्यक्त करने का इतिहास आष्चर्यजनक रूप से बहुत पुराना है। किन्तु इस आलोचना अथवा 'मतखण्डन'को कट्टर पंथी इस्लाम ने और भारत के भाववादी -परम्परावादियों एवं स्वार्थी शासकों ने कभी पसंद नहीं किया।
मेरी नजर में आपातकाल !
- आपातकाल की घोषणा के एक माह पहले ही मैं सीधी से ट्रांसफर होकर गाडरवारा आया था! गाडरवारा आने के तीन महीने बाद ही मुझे चार्ज सीट दी गई कि आप 24 घंटे में चार्जसीट का जबाब दें!अन्यथा क्यों न आपको पी & टी विभागकी सेवाओं से बर्खास्त कर दिया जाये? आरोप था कि आप नाइट ड्युटी के दौरान टेलीफोन एक्सचेंज में ताला डालकर घर चले गए! चूँकि उस दिन तत्कालीन संचारमंत्री स्व.शंकरदयाल शर्मा किसी काम से,दिल्ली से जबलपुर जा रहे थे! और गाडरवारा रास्ते में पड़ता है!उनसे सौजन्य भेंट के लिये इंतजार कर र...हे रामेश्वर नीखरा और नीतिराजसिंह इत्यादि नेताओं तथा अफसरों को पता चला कि मंत्रीजी की गाड़ी गाडरवारा नही रुकी! तब उन्होंने तुरंत एक्सचेंज से संपर्क किया, किंतु वहां से कोई जबाब नहीं मिला!क्योंकि मैं नया नया ही था और नियमों से अनभिज्ञ भी,इसलिये रात्रि वहीं एक्सचेंज के विश्रामगृह में सो गया! यद्दपि आपातकाल की उस छोटी सी भूल की मुझे कोई सजा नही दी गई ! सिर्फ एक लाइन की चेतावनी दी गई!'आइंदा सावधान रहें' उस एक लाइन से सबक सीखकर मैने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से 40 साल ड्युटी की! फिर किसी नेता मंत्री-अफसर से कभी डरा नही!इस सावधानी और अपनी शानदार क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन में लोकल से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संघर्ष की बदौलत आगे बढ़ता गया! पूरे 5 प्रमोशन भी प्राप्त किये ! हो सकता है कि किसी को आपातकाल में कुछ नुकसान हुआ हो! किंतु मेरी नजर में तो आपातकाल कुछ तु्र्टियों के बावजूद वास्तव में अनुशासनविहीन भारतके लिये एक जरुरी अनुशासन पर्व ही था!इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को भारतमें आपातकाल लगाया,बुरा किया! तत्कालीन विपक्ष ने 1977 में जनता पार्टी बनाई और जीते भी !किंतु संघ और जनता पार्टी की दोहरी सदस्यता के सवाल पर सभी घटक आपस में लड़ मरे,बहुत बुरा किया!! 1980 में देश की जनता ने इंदिरा गांधी को पुनः जिता दिया! याने उस जनादेश के मार्फत जनता ने इंदिरा जी का आपातकाल वाला अपराध क्षमा कर दिया! यही वजह रही कि आपातकाल के बाद भी केंद्र में कांग्रेस नीत गठबंधन की सरकारें लगातार सत्ता में बनी रही!अब जो लोग आपातकाल के बहाने कांग्रेस को कोस रहे हैं वे दोगले हैं!
सोमवार, 25 जून 2018
दर्शन और उसकी पक्षधरता,,,कार्ल मार्क्स !
- मार्क्सवाद दर्शन की समस्याओं और उसके विविध रूपों को समझने की वैज्ञानिक दृष्टि देता है।
- अक्सर धर्म दर्शन के विमर्श में दार्शनिक के सामने प्रश्न यह आता है कि ,,जड़ से चेतन पैदा हुआ या चेतन से जड़।
- ...
- एक तरफ वे हैं जो ,यह मानते हैं कि चेतन से जड़ पैदा हुआ। उनका मानना है कि कोई न कोई ऐसी शक्ति इस ब्रह्माण्ड में अवश्य है जिसने इस संसार की रचना की।वह परम शक्ति परम बुद्धिमान नैतिक और दोष रहित है।वह परम आत्मा है।उसका कोई रंग रूप नहीं है। चर अचर प्राणीमात्र उसका ही स्रजन है!
- इस मत की पुष्टि करने वाला दर्शन आध्यात्मवादी या आदर्शवादी या विचार वादी या प्रत्ययवादी के नाम से जाना जाता है।
- दूसरे वह लोग है,जो यह मानते हैं कि जड़ से ही चेतन की उत्पत्ति हुई है। क्षिति, जल,पावक,गगन समीर ,इन पांच तत्वों से जीव की रचनाहोती है। इस मत की पुष्टि करने वाला दर्शन भौतिकवादी कहा जाता है।अब तो बात इन पांच तत्वों से भी आगे जा चुकी है।इनको तत्व न मान कर सौ से अधिक मूल तत्वों की खोज हो गई है, जैसे ओक्सीजन ,हाइड्रोजन,लोहा आदि आदि।
- आध्यात्मवादी दार्शनिकों के लिए सुविधा की बात यह रही कि वह परमात्मा को रंग रूप रहित मान कर किसी भी तरह के स्पष्ट प्रमाण से मुक्ति पा जाते रहे हैं।
- भौतिकवादी दार्शनिकों के लिए असुविधा की बात यह रही कि जड़ से जीव के पैदा हो जाने की बात के कारण स्पष्ट प्रायोगिक प्रमाण की जरूरत को पूरा करने में वह अक्षम थे,इसलिए कि प्रारंभिक अवस्था का विज्ञान उसे सिद्ध करने में सक्षम नहीं था।
- इसके कारण सदियों तक दुनिया भर में आध्यात्मवादी दर्शन भौतिकवादी दर्शन पर भारी पड़ता रहा।किंतु समय के साथ बदलाव आया और भौतिकवाद आध्यात्मवाद पर भारी पद गया।
- अठारहवी उन्नीसवी सदी में विज्ञान अपनी युवावस्था में पहुंच गया।प्रयोगों के उपकरणों का विकास हो जाने से अनेक बातों को प्रमाणित किया जाने लगा।
- आम रूप से यह स्वीकार किया जाने लगा कि मनुष्य के शरीर में दिमाग है।यह भी जड़ है।दिमाग से विचार पैदा होता है ,न कि विचार से दिमाग।
- इसके बाद भी कई सवालों का जवाब भौतिकवाद को देना था और उसने उसे दिया।
'संघ परिवार' हिंदूधर्म और हिंदुत्व !
- अभी तक जितना अध्ययन मैने किया है, तदनुसार वेद,उपनिषद,गीता,रामायण और महाभारत में तो 'हिंदू'शब्द नही है!बहुत संभव है कि भारतीय उप महाद्वीप के आर्य, अनार्य,द्रविड शैव,वैष्णव शाक्त, गाणपत्य, जैन और बौद्ध मतों के साझे निष्कर्ष को 'सनातन धर्म' कहा गया है! और विदेशी हमलावरों ने ही इस उपमहाद्वीप के जन्मना निवासियों को हिंदू कहा होगा!जहां तक धर्म के रूप में 'हिंदू' शब्द की उत्पत्ति का सवाल है,भारतमें इस्लामके आगमन पर 'सिंधु'शब्द के फारसी उच्चारण से यह उत्पन्न हुआ है। यह सब जानते हुये भी 'संघ परिवार' हिंदूधर्म और हिंदुत्व के नाम पर सत्ता की राजनीति कर रहा है ! कुछ प्रगतिशील लोग भी जाने अनजाने धरमांधता पर चोट करने के बजाय हिंदू धर्म को निशाना बनाते रहते हैं, इससे संघ को खाद पानी मिलता रहता है और उसकी आनुषंगिक राजनैतिक पार्टी भाजपा की खेती भी भरपल्ले से चल रही है!
रविवार, 17 जून 2018
'राज्य' और उसकी सरकार विषयक कार्ल मार्क्स के विचार -
मार्क्सवाद राज्य के उद्देश्य और सरकार के उद्देश्य,सरकार के संगठन, तथा उसके विविध रूपों को समझने की दृष्टि देता है।
मार्क्सवाद यह बतलाता है कि राज्य समाज के ऊपर जरूर होता है किन्तु विकास की एक मंजिल पर समाज की ही उपज है।
राज्य की उपज तब हुई जब समाज स्वामी और दास नाम के दो परस्पर विरोधी हित समूहों या वर्गो का जन्म हुआ।
कोई ख़ुशी खुसी दूसरों के लिए जी तोड़ मेहनत करे यह नहीं हो सकता। दासों को दबा कर ही उनसे काम लि...या जा सकता था।
दासों को दबा कर रखने के लिए स्वामियों ने जिस व्यवस्था को जन्म दिया उसका नाम है ,,राज्य,,।
इस तरह राज्य का जन्म उत्पादन के साधनों के स्वामित्व से रहित वर्ग को दबा कर रखने की स्वामी वर्ग की आवश्यकता के कारण हुआ।
इस तरह राज्य का मूल उद्देश्य उत्पादन के साधनों के स्वामी वर्ग के हाथ में स्वामित्व हीन वर्ग को दबा कर रखना है।इसका जो उद्देश्य इसके जन्म के समय था,वहीं आज भी है और यह जब तक जिंदा रहेगा वहीं रहेगा।
इस तरह राज्य दमन का हथियार है।और इसकी प्रकृति तानाशाही की होती है।क्योंकि तानाशाही के स्वभाव के बिना किसी का दमन नहीं किया जा सकता।
इतिहास का पहला राज्य स्वामी वर्ग का ,दूसरा सामंत वर्ग का था और तीसरा पूंजीपति वर्ग का और चौथा सर्वहारा वर्ग का है।
अत: राज्य चाहे जिस वर्ग का हो तानाशाह राज्य ही होता है।
हां सरकारें तानाशाही या लोकतांत्रिक कोई भी हो सकती हैं।
मार्क्सवादी दृष्टि उस आदर्शवाद या प्रत्ययवाद को अमान्य करती है जो राज्य को नैतिक,निर्दोष,कल्याणकारी ,पवित्र,प्राकृतिक और ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण मानती मनवाती है।और यह सिद्धांत देती है कि,,राज्य एक अनिवार्य अच्छाई है।,,
मार्क्सवादी दृष्टि के लिए रास्ता पूंजीवादी दार्शनिकों ने भी बनाया था जिन्होंने निरंकुश राजाओं को चेतावनी देते हुए यह कहा कि राज्य प्राकृतिक नहीं कृत्रिम संस्था है और ,,,राज्य एक आवश्यक बुराई है।,, इसलिए राज्य को वाह्य प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के अतिरिक्त समाज के किसी दूसरे काम में कोई दखल नहीं देना चाहिए।
शुक्रवार, 15 जून 2018
- स्वतंत्रता के भीषण रण में,आशाओं के दीप जले ।
धर्मनिपेक्ष-समाजवाद के ,लोकतंत्र के नीड पले ।।
जाति पाँति भाषा-मजहब के,जब शैतानी तीर पगे!
राजनीति की क्यारी में तब ,खरपतवार बबूल उगे।।
गिद्धबाज चमगादड़ डोलें,बोलें चमन हमारा है । ...
इसीलिये तो आधा भारत,भूँख प्यास का मारा है ।।
निर्धन युवकों का यौवन,अब खटता मारा मारा है ।
अमर शहीदों ने जो चाहा,क्या वह वतन हमारा है।।
श्रीराम तिवारी
- नास्तिकों की भावनाएं भी आहत होती है।
- (1) आस्तिक लोग बात बात में कहते रहते हैं कि हमारी भावना आहत हुई। कोई फिल्म बनी तो भावना आहत हुई। किसीने किताब लिखी तो भावना आहत हुई। किसी का नाम पार्वती खान है तो भावना आहत हुई। ऐसी कैसी है आपकी भावना जो बात बात में आहत होती रहती है !!!
(2) भावनाएं तो नास्तिक की भी होती हैं भावनाएं उनकी भी आहत होती हैं! जब किसी मंदिर में किसी नारी को देवदासी बनाकर उसका आजीवन शोषण किया जाता है,तब भावनाएं नास्तिक की भी आहत होती है।
(3) आस्था के नाम पर दूध ...और घी जैसे कीमती द्रव्यों का अपव्यय होता है और मंदिर के बाहर भूखे बच्चें भीख मांग रहे होते हैं और भगवान को 56 भोग लगाएं जाते हैं तब भावनाएं किसी नास्तिक की भी आहत होती हैं!
(4) संविधान में बताये गये सिद्धांतों के विरुद्ध आप अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं और सांसद की उम्मीदवारी का फॉर्म भरते वक्त घड़ी में 12.39 का समय का मुहूर्त देखते हैं तब भावनाएं विज्ञानवादियों कीभी आहत होती हैं!
(5) रथयात्रा हो या ताजिया जुलूस हो, आप रोड पर चक्काजाम कर देते हैं, तब किसकी भावनाएं आहत नही होती ? माईक पर धार्मिक ध्वनि प्रदूषण से लोग परेशान हैं लेकिन आपको किसी की फिक्र नहीं , भावनाएं औरों की भी हैं और आहत भी होती हैं।
(6) जब आप कलेक्टर, डॉक्टर या इन्जीनीयर बनकर अनपढ़ पंडित से पूछते हैं कि शादी का सही समय (मुहूर्त) क्या है ?तब भावनाएं ज्ञानियों की भी आहत होती हैं।
(7) शहर में हजारों लोग फुटपाथ पर सोते हैं और आप नये मंदिर के लिए जमीन का दुरूपयोग करते हैं। स्कूल और अस्पताल बनाने के लिए जमीन और पैसा नहीं है, लेकिन मंदिर पर मंदिर आप बनाते जाते हैं, तब भावनाएं गरीबों मजूरों की आहत होती हैं।
(8) अच्छी पुस्तक,अच्छे विचार पढने के लिए आपके पास समय नहीं है,लेकिन अनपढ़ नेताओं के भाषण सुनने के लिए आपके पास समय है। माइक, टीवी,रेडियो, मोबाइल, कम्प्यूटर, इन्टरनेट का इस्तेमाल आप अंधविश्वास को बढ़ावा देने के लिए करते हैं, तब भावनाएँ भगवान की भी आहत होती हैं। आस्तिकों की तरह नास्तिकों की भी भावनाएं होती है। आहत भी होती हैं। इसीलिये बिना पक्षपात सभी की भावनाओं की कद्र कीजिये!
- मोदी सरकार के पास अपने सैकड़ों वादे और हजारों जुमले पूरे करने के लिये अब सिर्फ एक साल बचा है! चूँकि उन्हेंअपने क्रतित्व पर भरोसा नही, इसलिये सरकारी खजाने का अरबों रुपये खर्च कर अनकिये को किया हुआ बताया जा रहा है! किसीभी जन निर्वाचित लोकप्रिय सरकार के लिए यदि संवैधानिक रूप से पांच साल का कार्यकाल उपलब्ध है,तो उसे अपना 'राज धर्म' भूलकर,अनावश्यक वितण्डावाद में नहीं पड़ना चाहिए ! उसे अपनी नीति -रीति और उपलब्धियों का रोज-रोज बखान करने की क्या जरूरत है ? किसी भी बेहतरीनऔर लोकप्रि...य सरकार के लिए,उसके द्वारा पांच साल काम कर चुकने के बाद, अपना कार्य दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी! जनता के बीच अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने में अपना कीमती वक्त और जनता का अरबों रुपया बर्बाद करना देशभक्ति नही बल्कि देश द्रोह है! ये भारत की 'पब्लिक है सब जानती है'!अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा तो वे ही पीटते हैं ,जिन्हे खुद पर भरोसा नहीं !और अपने साथियों के सत्ता संचालन पर शक -सुबहा हो । जन असंतोष की आशंका उन्ही को हुआ करती है ,जिन्हे अपने राजनैतिक द 'रणकौशल ' पर भरोसा नहीं। प्रचार की जरुरत उन्ही को है जो सत्ता मिल जाने के बाद केवल जुमलों के ढपोरशंख ही बजाते रहे हैं। जो जनता को झूंठे चुनावी - वादों भाषणों,जुमलों तथा शिलान्यासों में भरमाते रहे हैं । जब कोई राजनेता या पार्टी आम जनता को बार-बार अपनी उपलब्धियां गिनाए, प्रिंट,इलेक्ट्रॉनिक तथा सोशल मीडिया पर धुआँधार प्रचार करे कि -जो कुछ किया हमने किया ,जो नहीं हो सका उसके लिए विपक्ष जिम्मेदार है। और सारे गुनाहों के लिए पूर्ववर्ती सरकारें जिम्मेदार हैं। हमें तो अभी 5 साल ही हुए हैं ,अतः हे मूढ़मति मतदाताओं ! हमें सत्ता से मत उखाड़ फेंकना। क्योंकि 'हमसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं '! इस तरह की सोच वाले अहंकारी -पाखंडी नेता और पूँजीवादी दल अपराध बोध से पीड़ित हुआ करते हैं !इस तरह की आत्मभक्ति जैसी हरकतों पर 'चोर की दाड़ी में तिनका' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सत्तापक्ष का यह आचरण निंदनीय है!
- सुबह हो या शाम हो जिंदगी पलपल बदलती जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की माँग पूर्ति में गुजर जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई और सर्वत्र भी होगा लेकिन,
न्यायिककी तुला उसकी ताकतके पक्षमें झुक जाती है।
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां कोटिक नक्षत्र चंद तारे,...
निहारती नीहारिकायें तटस्थ कोई काम नही आती है।
अब क्यों नही सुनाई देती आकाशवाणी कोई -हे मानव!
एक ही नूर से जग उपजाया,तत्त्वमसि-वयम रक्षाम:
ख्वाबों में कहा होगा -'सब मम क्रत सब मम उपजाये'
हकीकत में उसे सिर्फ बर्बर लुटेरोंकी दुआ ही सुहाती है।
गाज गिरतीहै सिर्फ कमजोर दरख्तों खंडहरों पर,
और सुनामी भी निर्बलों पर मुसीबत बनकर आती है! - *श्रीराम तिवारी
जातीय आधार पर आरक्षण-एक नजर !
कभी कभी कुछ लोगों का किसी कालगत सिद्धांत विशेष पर जबरन चिपके रहने का कोई औचित्य स्पष्ट नही हो पाता! भाजपा ने जब दलित राष्ट्रपति बनाया,दो दर्जन दलित कैबिनेट मंत्री बनाये,और जब सैकड़ों दलित पार्टी पदाधिकारी बना डाले!तब जातीयता आधारित विपक्ष के समक्ष भारी संकट आन पड़ा! लालू,माया,मुलायम,अखिलेश और अन्य दलित नेताओं को सोचना पड़ाकि उस तथाकथित शोषित समाज को जातीय आधार पर हमेशा के लिए अपना पिछलग्गू कैसे बनाये रखा जाये? भारत में शोषण उत्पीडन की असल तस्वीर सिर्फ वह नही जो तमाम हरल्ले दल चीख चीख कर बताते रहे हैं,अथवा संविधान निर्माता बता गये हैं! बल्कि तस्वीर का दूसरा पहलू भी है! इसीलिये गौर से देखा जाये तो रामदास अठावले,रामविलास पासवान,उदितराज जैसे दलित नेता औरों की अपेक्षा ज्यादा ईमानदार और प्रगतिशील दिखाई देते हैं!आज भले ही वे पदलोलुप या मौकापरस्त समझे जाते हैं, किंतु एक वक्त के बाद वे इतिहास के हीरो भी माने जा सकते हैं!
इन पंक्तियों के लिखे जाने से पचास -साठ साल पहले के ठेठ ग्रामीण उत्तर भारत की व्यवस्था कुछ वैसी ही थी जैसी कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में और कहानियों में वर्णित है ! शेष कुछ वैसी थी जैसी कि 'राग दरबारी' में श्रीलाल शुक्ल ने चित्रित किया है! तब भारत के कुछ बडे किसानों और भूतपूर्व जमींदारों के यहां ट्रेक्टर का आना, शहर से गांव की तरफ कच्ची सड़कों पर धक्कामार बसों का चलना,गांव के संपन्न आदिवासी हीरालाल सौंर (रावत) के घर 'कंडी घासन' बंदूक का आना,वैसे ही था जैसे तीर तलवार के जबाब में बाबर मंगोल का पानीपत के मैदान में तोपें लाना! हीरालाल को बंदूक में छर्रे,बारूद और कंडे के टुकड़े ठूंसते देख मैने उस बंदूकका नाम रखा था-कंडीधासन!उस जमाने में बंदूक की नली को लोहे की राड से धांसा जाता था! हीरालाल जी (आदिवासी) अपने सौंरयानै के प्रमुख थे और गांव की पंचायत के पंच भी थे! वैसै तो हीरालाल मेरे बड़े भाई की उम्रके थे,और मैं उन्हें दाऊ ही कहता था! उनके आदिवासी समाज में शादी जल्दी हो जानेसे बच्चे भी जल्दी हो जाते थे! उनका बड़ा लडका 'मुखल' मेरा हमउम्र था!आदिवासी होने के बावजूद उसका लालन पालन राजकुमारों की तरह होता था!जबकि कुलीन और ब्राम्हण पुत्र होने के बावजूद मैं पांच साल की उम्र में नंगे पैर खेतों पर जाने को मजबूर था! विद्वान होने के बावजूद यह स्थिति 'बाबा साहिब' क्यों नही देख पाये? ताजुब्ब है!कहने मात्र को हम सवर्ण ब्राह्मण थे किंतु किसीभी द्रष्टि से सिवाय पूजा पाठ के,वाकी सभी मामलों में हम गांव के पटैलौं (पिछडों)से और आदिवासी सोरों (रावत) से पीछे थे! हमारा संयुक्त परिवार बहुत बड़ा था और माली हालत ठीक नहीं थी!इसलिये हमें स्कूल से गैरहाजिर रहकर खेती किसानी के अलावा ढोर ,डंगर,जंगल और खलिहान के भी काम करने होते थे!जबकि हीरालाल आदिलीसी अपने कंधे पर कंडी धासन बंदूक टांगकर,घोड़े पर सवार होकर,शिकार खेलने जाते थे!कभी कभी वे अपने बेटे मुखल को भी बंदूक पकड़ा देते थे! जबकि हम सभी भाइयों को खेलने की तो क्या रोटी खाने की फुर्सत नही मिलती थी! सुबह शाम खेत और दिन में स्कूल और स्कूल से आकर हमें रोज गाय, बैल, भैंसों को चारा सानी देना होता था! इसके बाद रामायण गीता भी पढ़ना आवश्यक था! इसी दरम्यान जब कभी मेरा आदिवासी दोस्त 'मुखल' हमारे घर हम भाइयों को अंडाडावरी या कबड्डी खेलने का आमंत्रण देने आता तो वह पिताजी के कोप का भाजन बनता!पिताजी उसे डांटकर भगा देते कि 'तूं तो हिरण,तीतर,बटेर मार खायेगा, मेरे बच्चे क्या घास खायेगें !तब हीरालाल आदिवासी के पास खुद का कुआं भी था! जबकि हमारे पिताजी की खेती वाली जमीन असिंचित थी!ऐंसा नही था कि हर दलित आदिवासी हीरालाल जैसा संपन्न था,और ऐंसाभी नही था कि हर सवर्ण परिवार हमारे समकक्ष आर्थिक रूप से कमजोर था!वेशक असमानता तब भी थी और अभी भी है,किंतु उसका आधार जात पांत और धरम मजहब नही है! अपितु यह व्यवस्थागत दोष और वंशानुगत आर्थिक असमानता की वजह से ही विद्यमान है!
रविवार, 10 जून 2018
- सच्चाई तो अब शायद सच में बेअसर हो गई!
इसीलिये शैतानियत कुछ ज्यादा ही ज़बर हो गई।।
बानगी पेश की जमाने ने अपनी कुछ इस तरह ,
कि जो पोशीदा भी न थी बात उसकी खबर हो गई।
किस्ती के डूबने का अनुमान तो था सभी को मगर ,...
माझी की गफलत से तूफ़ान को पहले खबर हो गई।
दिखाई दिये दूर से ही साहिल वे हमराह हम सफर ,
मझधार में उनकी मगर इक जान लेवा लहर हो गई।
बिजली गिरी कमबख्त उसी मासूम से दरख्त पर ,
था परिंदों का वसेरा जहाँ पहले एक कहर हो गई।
सच्चाई तो अब शायद सच में बेअसर हो गई।।
श्रीराम तिवारी
शुक्रवार, 8 जून 2018
बदमाश विजय माल्या 9900 करोड रुपए लूटकर लन्दन भाग गया!अम्बानी ,भारती, वोडाफोन तथा अन्य प्राइवेट टेलिकाम आपरेटर्स ने सरकारी BSNL कंपनी का यूएसओ फंड ,एडीसी ,सब्सिडी सब रुकवाया!निजी संचार कंपनियों की सम्रद्धि के लिए,चंदाखोर सत्ताधारी नेताओं ने सरकारी कंपनी को चूना लगाया! अंबानी ने गोदावरी वेसिंन से 50000 करोड की एक्ट्रा गेस निकाल ली, अपनी रिलायंस पेट्रोलियम कं के वास्ते ! अढानी ने झारखंड् में अवैध खनिज उत्पादन के लिये सार्वजनिक भूमि दबाकर देश को 80000 करोड् का चुना लगाया ! पढ़े लिखे होने के बावजूद जो लोग इन आदमखोर बहशी बुलडागों के खिलाफ नही बोलते,वे देश के गद्दार हैं! जिन्हें सिर्फ अपने धर्म,जाति और मजहब की फिक्र है, वे या तो सत्ता के दलाल हैं या नितांत औंधी खोपड़ी के हैं !
नूतन युग का उदयगान by shriram tiwari
- बुद्धि बल पौरुष और सत्ता यदि,
किसी कमजोर के काम आ जाये । - स्वस्थ्य जवानी यदि किसी देश की ,
सीमाओं पर बल-पौरुष दिखलाये ।। - हो सत्य-न्याय का सिंहनाद -मानव,
सर्वहारा क्रांति के गीत गाता जाये! - कृषकाय युवा खेतों को देकर अपना,
तन मन यौवन और श्रम स्वेद बहाए ।। - जीवन यापन संघर्षों में अडिग रहे,
और न कोई पथ विचलन हो पाए । - लोभ-लालच की भृष्ट व्यवस्था का,
जनकवि लेखक पुर्जा न बन जाए ।। - इतिहास पुरुष कहते इसको क्रांति
और नूतन युग का उदयगान गाते हैं । - त्रिकालज्ञ योगीजन शायद इसको,
परमात्मा का अनुशासन कहते हैं।।
भारत के लोगों ने चीन से कुछ नही सीखा
- पी एम मोदीजी चार साल में चार बार चीन हो आये! उनकी इन यात्राओं से किसी एक भी भारतीय युवा को रोजगार नही मिला! वेशक दो तीन भारतीय पूँजीपतियों के चीन से संबंधित व्यापारिक रिस्ते मजबूत हुये हैं! आज चीन की तारीफ दुनिया करती है और भारतको अभी भी मध्ययुग का बर्बर पिछड़ा देश ही समझती है! विदित हो कि भारत को चींन से पहले आजादी मिल गई थी !क्यों भारत हर चीज में चींन से पिछडता चला गया ?क्योंकि चींन ने मार्क्सवादी दर्शन से जो सीखा वह हम भारतीय लोग गांधी दर्शन में,गोडसे दर्शन में खोजते रहे... !भारतीय नेता साहित्यकार,बुद्धिजीवी और चिंतक केवल अंतरराष्ट्रीयतावाद या अंधराष्ट्रवाद ही परोस्ते रहे !जबकी चीन की विशाल साम्यवादी पार्टी वैज्ञानिक भौतिकवाद के साथ साथ राष्ट्रवाद भी परोसती रही ! भारत के लोगों ने चीन से कुछ नही सीखा !इसीलिये कुछ लोग कश्मीर मसले पर या सींमाओं पर हो रही हिंसाके बरक्स,हिंसक पाकिस्तानी आतंकियों की निन्दा करने से भी डरते हैं! कुछ लोग तो पाकिस्तानी दलालों बदमाश जनरलो की आलोचना करने के बजाय अपनी ही सेना और अपने ही जनरलों को भी कोसते रहते हैं !ऐंसा व्यक्ति कदापी देशभक्त या वामपंथी नही हो सकता ! वह बुद्धिजीवी भी नही हो सकता,वह उत्क्रिष्ट अंतरराष्ट्रीयतावादी भी नही हो सकता !वह किसी भी नजर से इंटेलेक्चुअल नही हो सकता,जो चींन की कम्युनिस्ट पार्टी से कोई सार्थक सबक नही सीखता !
सृजन के ठाँव by Shriram tiwari
- सिंहनाद हो धीरोदात्त चरित्र का
तो सारे जग के अन्यायी थर्राते हैं। - समरसता भ्रातृत्व भाव के नूतन,
शब्द संघर्षों के क्रांतिदूत बन जाते हैं ।। - म्रत्युंजयी नरमेदिनी के युग युग में,
मानव उत्क्रिष्ट अवतारी हो जाते हैं । - जन महानाद संगीत कला साहित्य
सृजन के ठाँव और नये बसते जाते हैं!! - 'सत्यमेव जयते' जैसे शाश्वत मंत्र सदा,
उनसे इंकलाब के नारे प्रेरक बन जाते हैं । - हम एक देश नही एक खेत नही मांगते,
मांगते सारी दुनिया गीत निरंतर गाते हैं।।
शनिवार, 2 जून 2018
बड़ी कोफ्त होती है,जब कोई ऐंसा शख्स फेसबुक पर कम्युनिज्म की आलोचना करने लगता है,जिसने कम्युनिज्म का ककहरा भी नही पढ़ा!जो कभी किसी मजदूर संघर्ष में शामिल नही हुआ !जिसने दास कैपिटल' तो दूर 'कम्युनिस्ट मेनीफेस्टो' के भी दीदार नहीं किये !इसी तरह बहुत भौंडा लगता है जब कोई स्वयंभू प्रगतिशील या तोतारटंत समाजवादी - साम्यवादी बिना किसी अध्यात्म दर्शन के अध्यन अथवा पुरातन वांग्मय का अध्यन किये बिना उन पर लठ्ठ लेकर टूट पड़ताहै!
सभ्यताओं के विकास क्रम में आदिमानव युगसे लेकर ऋग्वेदकाल तक की यात्रा में, और उसके तदनंतर मध्ययुग के युरोपियन रेनेंसा तथा भारतीय उपमहाद्वीप के करुण भक्तिकाल एवं पुनर्जागरण कालतक जितने भी जागतिक अनसंधान या अन्वेषण हुए हैं, उनमें मनुष्य द्वारा 'ईश्वर की खोज' सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है ! इस विषय पर विश्व की तमाम सभ्यताओं ने देश,काल,परिस्थिति अनुसार अपनी-अपनी परम्पराओं और तत्सम्बंधी तत्व दर्शन का प्रतिपादन किया है! इस संबंध में यदि कोई धर्मान्ध-धर्मभीरु मठाधीशों की बातों को न भी माने तो भी यह स्वयंसिद्ध है कि मानव सभ्यताओं के उत्थान-पतन,भौतिक विकास और 'धर्म' मजहब का उदय इत्यादि उपादान 'ईश्वर', GOD,अल्लाह की परिकल्पना से बहुत पूर्व के हैं।
जिस तरह भारतीय वैदिक और परिवर्ती संस्कृत वांग्मय में भ्रगु,शांडिल्य,अष्टाबक्र जनक,कपिल,कणाद,सुश्रत,चरक और अन्य मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के'तत्वदर्शन' में अद्भुत वैज्ञानिक चिंतन का समावेश है।उसी तरह अमेरिकी माया सभ्यता,मध्यएसिया की सुमेरु सभ्यता,नील नदी की इजिप्षियनऔर फैरोन सभ्यता से लेकर रोमन कैथोलिक युग के ओल्ड टेस्टामेंट और अरबी कबीलों के मानवीकरण की प्रक्रिया में भी साइंटिफिक मानव जीवन जीने की कला द्रष्टव्य है।चूंकि कालांतर में अरब-मध्य एशियाई सभ्यताओं के उत्तराधिकारियों ने लूट,युद्धपिपासा और साम्राज्य्वादी म्रगतृष्णा के लिए मजहब को हथियार बनाया और आरंभिक सफलता के बलबूते उन्होंने सारे एशिया और आधे यूरोप को अपना चरागाह बना लिया। जो लोग उनके आचार विचार से सहमत नही हुये,वे मार दिये गये! जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के प्रगत मनुष्य ने सांसारिक, लौकिक ही नहीं और सिर्फ आत्मा,परमात्मा,माया ही नही बल्कि करुणा,उदारता,सत्य,अहिंसा और समस्त प्राणीमात्र को अपना सर्वश्व होम कर दिया। इसी को आर्यों ने यज्ञ कहा है! उन्होंने जब इन मूल्यों से लैस सारे विश्व का एक सृष्टा पालनहार और संहारक मान लिया तो फिर कोई पराया भी नहीं रहा। इसीलिये जब शकों, हूणों,कुषाणों ,तुर्को ,खिलजियों सैयदों ,मुगलों ,अंग्रेजों ने भारत को चरागाह मानकर यहाँ मुँह मारा तो इन बर्बर कबीलाई समाजों को भारत की सनातन परम्परा ने ईश्वरपुत्र मानकर 'बसुधैव कुटुंबकम' धर्म का पालन किया !
कालांतर में मिश्रित मानवीय जीवन संस्कृति की विविधतापूर्ण यात्रा में व्यक्ति,परिवार और समाज को संचालित करने के लिए इस भारतीय भूभाग में सभी समाजों ने अपने धर्मग्रंथ ,और अपने अपने रीति रिवाज सहेज लिए। किन्तु चाणक्य के सिवाय अन्य किसी ने 'राष्ट्र' शब्द का उल्लेख भी नही किया! यूरोपियन उपनिवेशवाद,आधुनिक पूँजीवाद और लोकतान्त्रिक राजनीतीने तमाम पुरातन मूल्यों,धर्म,श्रद्धा और रीति रिवाजों को कुछ हद तक अप्रासंगिक बना दिया। हिन्दुओं में जिस तरह सती प्रथा,बालविवाह अप्रासंगिक हो गये!उसी तरह अन्य धर्म मजहब में भी उन कुरीतियों से तौबा किया जाता रहा है, जिनकी इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में कोई अर्थवत्ता नहीं रही।
वेशक आज की दुनिया चांद सितारों के पार सोचने की क्षमता से लैस है! किंतु अशिक्षा और अज्ञान ने मानव मेदिनी को लोकतंत्र का चारा बना कर रख छोड़ा है! धर्म,मजहब,खुद, ईश्वर संबंधी आस्था और साम्प्रदायिकता के पुरातन खंडहर अब वोट की राजनीति के काम आ रहे हैं! जब तलक मजहबी और जातीय उन्माद की राजनैतिक खेती की जाती रहेगी,तब तलक लोकतंत्र अधूरा रहेगा !चूँकि सर्वहारा क्राति ही तमाम बीमारियों का इलाज है! जब तक क्रांति सफल नही हो जाती,तब तलक आम आदमी की आस्था -धर्म मजहब को वर्ग शत्रुओं का अस्त्र नही बनने देना चाहिए! श्रीराम तिवारी!
जिस तरह भारतीय वैदिक और परिवर्ती संस्कृत वांग्मय में भ्रगु,शांडिल्य,अष्टाबक्र जनक,कपिल,कणाद,सुश्रत,चरक और अन्य मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के'तत्वदर्शन' में अद्भुत वैज्ञानिक चिंतन का समावेश है।उसी तरह अमेरिकी माया सभ्यता,मध्यएसिया की सुमेरु सभ्यता,नील नदी की इजिप्षियनऔर फैरोन सभ्यता से लेकर रोमन कैथोलिक युग के ओल्ड टेस्टामेंट और अरबी कबीलों के मानवीकरण की प्रक्रिया में भी साइंटिफिक मानव जीवन जीने की कला द्रष्टव्य है।चूंकि कालांतर में अरब-मध्य एशियाई सभ्यताओं के उत्तराधिकारियों ने लूट,युद्धपिपासा और साम्राज्य्वादी म्रगतृष्णा के लिए मजहब को हथियार बनाया और आरंभिक सफलता के बलबूते उन्होंने सारे एशिया और आधे यूरोप को अपना चरागाह बना लिया। जो लोग उनके आचार विचार से सहमत नही हुये,वे मार दिये गये! जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के प्रगत मनुष्य ने सांसारिक, लौकिक ही नहीं और सिर्फ आत्मा,परमात्मा,माया ही नही बल्कि करुणा,उदारता,सत्य,अहिंसा और समस्त प्राणीमात्र को अपना सर्वश्व होम कर दिया। इसी को आर्यों ने यज्ञ कहा है! उन्होंने जब इन मूल्यों से लैस सारे विश्व का एक सृष्टा पालनहार और संहारक मान लिया तो फिर कोई पराया भी नहीं रहा। इसीलिये जब शकों, हूणों,कुषाणों ,तुर्को ,खिलजियों सैयदों ,मुगलों ,अंग्रेजों ने भारत को चरागाह मानकर यहाँ मुँह मारा तो इन बर्बर कबीलाई समाजों को भारत की सनातन परम्परा ने ईश्वरपुत्र मानकर 'बसुधैव कुटुंबकम' धर्म का पालन किया !
कालांतर में मिश्रित मानवीय जीवन संस्कृति की विविधतापूर्ण यात्रा में व्यक्ति,परिवार और समाज को संचालित करने के लिए इस भारतीय भूभाग में सभी समाजों ने अपने धर्मग्रंथ ,और अपने अपने रीति रिवाज सहेज लिए। किन्तु चाणक्य के सिवाय अन्य किसी ने 'राष्ट्र' शब्द का उल्लेख भी नही किया! यूरोपियन उपनिवेशवाद,आधुनिक पूँजीवाद और लोकतान्त्रिक राजनीतीने तमाम पुरातन मूल्यों,धर्म,श्रद्धा और रीति रिवाजों को कुछ हद तक अप्रासंगिक बना दिया। हिन्दुओं में जिस तरह सती प्रथा,बालविवाह अप्रासंगिक हो गये!उसी तरह अन्य धर्म मजहब में भी उन कुरीतियों से तौबा किया जाता रहा है, जिनकी इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में कोई अर्थवत्ता नहीं रही।
वेशक आज की दुनिया चांद सितारों के पार सोचने की क्षमता से लैस है! किंतु अशिक्षा और अज्ञान ने मानव मेदिनी को लोकतंत्र का चारा बना कर रख छोड़ा है! धर्म,मजहब,खुद, ईश्वर संबंधी आस्था और साम्प्रदायिकता के पुरातन खंडहर अब वोट की राजनीति के काम आ रहे हैं! जब तलक मजहबी और जातीय उन्माद की राजनैतिक खेती की जाती रहेगी,तब तलक लोकतंत्र अधूरा रहेगा !चूँकि सर्वहारा क्राति ही तमाम बीमारियों का इलाज है! जब तक क्रांति सफल नही हो जाती,तब तलक आम आदमी की आस्था -धर्म मजहब को वर्ग शत्रुओं का अस्त्र नही बनने देना चाहिए! श्रीराम तिवारी!
- धर्मांध दक्षिणपंथियों की मुँहजोरी से निपटने के लिये कुछ प्रगतिशील वामपंथी मित्र आपा खो देते हैं! वे धर्म-मजहब के मामलों में हद दर्जे की नकारात्मकता पर उतर जाते हैं! वे धर्मांधता पर खूब बहस करते हैं, किन्तु धार्मिक पुस्तकों को पढ़े बिना ही तत्संबंधी तकरीरें झाड़ने लगते हैं। कुछ अति उत्साही प्रगतिशील चिंतक एक ही ढर्रे पर लगातार लिखते-बोलते चले जा रहे हैं ,कि शंबूक के साथ अन्याय हुआ,कि एकलव्य के साथ बुरा हुआ,कि महिलाओं के साथ ऐंसा हुआ और दलितों के साथ वैंसा हुआ! जब आपने मान लिय...ा कि रामायण,गीता ,महाभारत,वेद और पुराण सब मिथ हैं या काल्पनिक हैं,तो उसी मिथ को आधार बनाकर अब विधवा विलाप क्यों?
यदि हरिष्चंद्र और दधिचि के त्याग बलिदान की कथा मिथ है,तो शंबूक बध या धोबी की कथा का महिमा मंडन क्यों? जो जो बेहतर है उसकी चर्चा न कर केवल जो प्रतिकूल नजर आया,उसीको आधार मानकर अपनी पुरातन मूल्यनिधि की धज्जियाँ उड़ाना कौन सी प्रगति शीलता है? प्राय : आरोप लगाया जाता है कि सवर्ण हिंदु या आर्य लोग अपनी महिलाओं को और शूद्रों को उनके हकों से बंचित रखते थे! वेशक सामंतयुग में शोषण बहुत था,किंतु तब तो सभी कमजोर बेहाल थे ! यह पूरा सच नही कि सिर्फ दलित या दास या स्त्री जाति ही पीड़ित हुआ करते थे! - बाल्मीकि रामायण के अध्याय चार श्लोक १,२,३,को पढ़ने पर मालूम हुआ कि हिन्दू समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था कैसी थी! ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र और स्त्रियों को सामान अधिकार मिले हुए थे-
''अन्यमासम् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वम सुसमहिता ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ब्राह्मण क्षत्रिय विशां शूद्राणां चैव योषितां '' [वाल्मीकि रामायण अध्याय -४ श्लोक १,२,३,]
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ब्राह्मण क्षत्रिय विशां शूद्राणां चैव योषितां '' [वाल्मीकि रामायण अध्याय -४ श्लोक १,२,३,]
- अर्थात :- बाल्मीकी रामायण सहित सभी धर्मशास्त्रों को ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र एवं स्त्रियां जो भी पढ़ेगा ,उसे ज्ञान और पूण्य का लाभ होगा !
- यह अच्छी बात है कि वामपंथी -प्रगतिशील साहित्यकारों को विश्वकाआर्थिक,सामाजिक ऐतिहासिक दार्शनिक और साइंटफिक ज्ञान है!किन्तु यदि वे भारतीय वांग्मय सहित संसार के सभी धर्म-दर्शनों का भी उचित अध्यन कर लेंगे तो साम्प्रदायिकता और फासिज्म का मुकाबला करने में सफलता अवश्य मिलेगी !भारतीय वामपंथियों और प्रगतिशील साहित्यकारों को चाहिए कि वे भी चीनियों की तरह अपनी राष्ट्रीय अस्मिता और अतीत की धरोहरों की रक्षा करते हुए पाखंडवाद से मुकाबला करें। अभी भारत में जो जेहादी-अल्पसंख्य्कवादी- हिन्दुत्ववादी ताकतें हैं वे भारत को रौंद रहीं हैं ,इसका मुकाबला केवल 'नकारात्मक' तरीकों से नहीं किया जा सकता!क्योंकि अतीत की हर चीज बुरी नही हो सकती! और यदि अतीत का सब कुछ गलत है तो उसकी पैदावार याने वर्तमान पीढ़ी सही कैसे हो सकती है?
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