सुकरात को आधुनिक वैस्टर्न फ़िलोसोफ़ी का जनक माना जाता है, उनके चेले प्लेटो ने "रिपब्लिक" नाम की किताब में सुकरात की एक बात आज से चौबीस सौ बाईस साल पहले (399 BC में) दर्ज की है !
आधुनिक फ़िलोसोफ़ी, तथा आज के चल रहे डेमोक्रेटिक सिस्टम की धारणा इन यूनानी दार्शनिकों ने दी हुई है! हालांकि इंडिया में भी गणराज्य हुआ करते थे, किंतु पुरातन इंडिया में वोटिंग हुआ करती थी या नहीं, इस पर मेरे को आईडिया नहीं है !!
इसी ग्रीक फ़िलोसोफ़ी से आगे चलकर साईंस और साईंसी शऊर पैदा होते हैं, रिनेंसा या पुनर्जागरण होता है, वग़ैरह वग़ैरह।
ख़ैर, प्लेटो लिखते हैं कि सुकरात का खुल्ली डेमोक्रेसी पर विश्वास नहीं था। उन्होंने अपने एक साथी Adiementus से डेमोक्रेसी के तौर तरीक़े पर एक सवाल पूछा था कि मान लो दरिआई जहाज किसको चलाना है, यह तुमको चुनना है, तो तुम अनसिखुओं को चुनोगे, या कुशल खेवनहारों को ?
एडीमेंटस ने जवाब दिया कि अनाड़ी या अकुशल नाविक तो नैया डुबो देंगे, इसके लिए तो कुशल खेवनहार ही चुने जाने चाहिए !!
यह बहुत शानदार एनालोगी या ज़र्ब-उल-मसल है, मिसाल है।
लेकिन हमारे देश में यह समस्या आन खड़ी है कि हमारे यहाँ तो पढ़े लिखे लोगों की डेमोक्रेसी की समझ अनपढ़ों से भी गई गुज़री हो गई है, ख़ास करके शहरी बकरीटोले की !!!
डेमोक्रेसी का मतलब सबका भला ना भी हो, तब भी बहुतों का भला होना लाज़िमी शर्त मानी जाती है, पर कंडीशन यह भी होती है कि नुकसान किसी भी सिटिजन ग्रुप का नहीं होना चाहिए !!
शहरी बकरीटोला तो यह सोचता है कि हम भले ही डूब जाएं, पर वामी, कांगी, दलित, मुस्लिम, कश्मीरी, पंजाबी, बंगाली, तमिल, नास्तिक, ग़ैर-गौमूत्र-प्रिय लोग, इन सबका भट्ठा बैठना चाहिए !!
नैया डूबना यक़ीनी तौर पर तय है, मित्तरो !!
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