विगत 25 जून को कुछ कपटी और बेईमान लोगों ने *आपात्काल की सालगिरह पर खूब घड़ियाली आँसू बहाये! इनमें 99% वे थे जो आपात्काल में एक दिन के लिये भी जेल नही गये!और जिनको आपात्काल की वजह से ही प्रसिद्धि मिली,सत्ता मिली और राज मिला!
नई पीढ़ी के युवाओं को मालूम हो कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगाया था!वेशक यह एक तानाशाही पूर्ण और संविधान विरोधी हरकत थी! किंतु इससे भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय संप्रभुता का बाल भी बांका नही हुआ! बल्कि जिनकी औकात चपरासी बनने की नही थी,वे इस मनहूस आपात्काल की वजह सेसत्ता का स्वाद चखने में सफल रहे!
इतना ही नहीं आज जो सत्ता सुख भोग रहे हैं,वे न भूलें कि इसमें भी आपात्काल की ही असीम अनुकम्पा छिपी हुई है!कुछ खामियों और ज्यादतियों के बावजूद आपात्काल तो वरदान ही साबित हुआ है !मेरा खुदका निजी अनुभव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है!
आपात्काल घोषणा के एक माह पहले ही मैं सीधी से ट्रांसफर होकर गाडरवारा आया था! गाडरवारा आने के तीन महीने बाद ही मुझे चार्जसीट दी गई कि 'आप ड्युटी पर नही पाये गये,अत: 24 घंटे में चार्जसीट का लिखित जबाब दें!अन्यथा क्यों न आपको पी & टी विभाग की सेवाओं से बर्खास्त कर दिया जाये?'आरोप था कि आप नाइट ड्युटी के दौरान टेलीफोन एक्सचेंज में ताला डालकर घर चले गए! चूँकि उस दिन तत्कालीन संचारमंत्री स्व.शंकरदयाल शर्मा किसी काम से,दिल्ली से जबलपुर जा रहे थे और गाडरवारा रास्ते में ही पड़ता है!उनसे सौजन्य भेंट के लिये इंतजार कर रहे रामेश्वर नीखरा और नीतिराजसिंह चौधरी,कलेक्टर पटवर्धन इत्यादि नेताओं/अफसरों को पता चला कि मंत्रीजी की गाड़ी गाडरवारा नही रुकी! तब उन्होंने तुरंत एक्सचेंज से संपर्क किया, किंतु वहां से कोई जबाब नहीं मिला!क्योंकि मैं नया नया था,विभागीय नियमों से पूर्णत: अवगत नही था एवं मेरे पास तत्काल रहने का कोई ठिकानाभी नहीथा,अत: ड्युटी खत्म होने के बाद रात्रि वहीं एक्सचेंज के विश्राम गृह में सो गया! अल सुबह नगर में हड़कम मच गया,कि मुझे चार्जसीट मिल गई है!यह आपात्काल का ही प्रतिफल था कि लोग कुछ डरे हुए से थे और सभी विभागों में कसावट आ गई थी!
आपातकाल की उस छोटी सी गफलत की वजह से मुझे कोई सजा नही दी गई ! सिर्फ एक लाइन की चेतावनी दी गई!कि 'आइंदा सावधान रहें' और तत्काल मेरा ट्रांसफर भी इंदौर कर दिया गया!उस घटना से सबक सीखकर मैने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से 40 साल ड्युटी की! फिर किसी नेता मंत्री-अफसर से कभी नही डरा,बल्कि भ्रस्ट और बदमास अधिकारी मुझसे डरते थे!इस घटना से सबक सीखकर न केवल ड्यूटी सावधानी से की अपितु पढ़ना लिखना भी जारी रखा!
चूंकि इंदौर में तब मजबूत ट्रेड यूनियनें हुआ करतीं थीं,अत: सामूहिक हितों के लिये वर्ग चेतना से लैस कामरेडों का अनुशीलन करने का अवसर भी खूब मिला!इसकी बदौलत अपनी शानदार क्रांतिकारी ट्रेड यूनियन में लोकल से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संघर्षों में नेतत्वकारी भूमिका अदा की! और उसी की बदौलत आत्म विश्वास बढ़ता चला गया! हर किस्म का भय काफूर हो गया! मेरे कानौं की पुरानी बीमारी का इलाज भी इंदौर में हो गया!आपात्काल लगना और इंदौर ट्रांसफर होना,मेरे लिये वरदान बन गया! मेरे अनुज डॉ. Parshuram Tiwari के लिये भी इंदौर में ही सीखने और आगे बढ़ने के लिये बहुत कुछ मिला!हम यदि सीधी,गाडरवारा या सागर में होते तो शायद वह संभव नही हो पाता,जो इंदौर में बेहतर संभव हुआ! मेरे लिये तो आपात्काल का भोगा हुआ यथार्थ यही है!
हो सकता है कि किसी को आपातकाल में कुछ नुकसान हुआ हो! किंतु मेरी नजर में तो आपातकाल कुछ मामूली खामियों,त्रुर्टियों के बावजूद वास्तव में मक्कारों,रिस्वतखोरोंऔर जमाखोरों को ठीक करने का अनुशासन पर्व ही था!
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