कुछ प्रगतिशील और दलित साहित्यकार मित्र हिंदू धर्म के मामलों में आलोचनात्मक बहस तो खूब करते हैं,किन्तु धार्मिक पुस्तकों और संस्कृत वांग्मय पढ़े बिना ही ततसंबंधी तकरीरें झाड़ने लगते हैं। जिन्होंने संस्क्रत का व्याकरण नही पढ़ा,ऐंसे तथाकथित सभी प्रगतिशील चिंतक ,एक ही ढर्रे पर लगातार लिखते चले जा रहे हैं! उनका अभिमत है कि रामायण,गीता,महाभारत,वेद और पुराण सब मिथ हैं याने काल्पनिक हैं। दूसरी ओर वे इन्हीं काल्पनिक ग्रंथों के कुछ अनर्गल शब्द समूहों पर हलकान होते रहते हैं!
लेकिन जो कुछ भी पुरातन वाञ्गमय में लिखा गया है, उसमें गलत क्या है ? सही क्या है ? यह वे नही जानते! यह कालक्रम और व्याख्याकारों की समझ के स्तर पर निर्भर रहता है कि कौन सी रचना में कितना सच है और कितनी काल्पनिकता का पुट है!कुछ हिंदू विरोधी आलोचक तो उसी मिथ को आधार मानकर,ऐतिहासिकता खोजकर सामाजिक ताने बाने की धज्जियाँ उड़ाने लग जाते हैं! यह कि सरासर आत्मघाती कदम है।
बाल्मीकि रामायण के अध्याय चार श्लोक १,२,३,को पढ़ने पर मालूम हुआ कि हिन्दू समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था अवैज्ञानिक नहीं थी! ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र और स्त्रियों को सामान अधिकार मिले हुए थे।
''अन्यमासम् प्रवक्ष्यामि शृणुध्वम सुसमहिता ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ब्राह्मण क्षत्रिय विशां शूद्राणां चैव योषितां '' [वाल्मीकि रामायण अध्याय -४ श्लोक १,२,३,]
अर्थात :- इस बाल्मीकि रामायण को ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य ,शूद्र एवं स्त्रियां जो भी पढ़ेगा ,उसे ज्ञान और पूण्य लाभ होगा !
यह अच्छी बात है कि वामपंथी -प्रगतिशील साहित्यकारों को समस्त विश्व का आर्थिक, सामाजिक ऐतिहासिक दार्शनिक और साइंटफिक ज्ञान है,किन्तु यदि वे भारतीय वांग्मय का भी उचित अध्यन कर लेंगे तो उन्हें वर्तमान साम्प्रदायिकता और फासिज्म का मुकाबला करने में सफलता अवश्य मिलेगी !
भारतीय प्रगतिशील साहित्यकारों को चाहिए कि वे भी चीनियों की तरह अपने प्राचीन राष्ट्रीय प्रतीकों एवं अस्मिता की रक्षा करते हुए पाखंडवाद से मुकाबला करें। अभी जो जेहादी-अल्पसंख्य्कवादी हैं,और जो दक्षिण पंथी नकली हिन्दुत्ववादी ताकतें भारत को रौंद रहीं हैं,उसका मुकाबला परम्परागत 'नकारात्मक' तरीकों से नहीं होगा। बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों,आध्यात्मिक उन्नयनों की समसामयिक संगति बिठाते हुए
स्वतंत्रता, समानता,भ्रातत्व,और लोकतंत्र के मूल्यों का सही सूत्रपात करने से ही सभी का कल्याण होगा! श्रीराम तिवारी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें