नैतिकता विहीन सत्ता की भित्ति ही,
अंदर से बहुत कमजोर और दरारी है!
शासक वर्ग अति प्रमादी और अनारी है,
नही दिखती मेंहगाई और बेरोजगारी है!!
दुखी जनता क्रांति गीत गाने के बजाय,
सुन रही 'मन की बात' क्या करें लाचारी है!
उधर किसान खेतों में पसीना बहाता,
इधर कृषि विरोधी कानूनों की तैयारी है!!
वे चुनावी संघर्षों में इंसानियत भूल गये,
इधर किसान संघर्ष उधर कोरोना भारी है!
लोभ-लालच की भृष्ट व्यवस्था के पुरजों ने,
जमकर कर ली सुपर मुनाफों की तैयारी है !!
जनवादी कवि जिसे पूँजीवादी सिस्टम कहते हैं,
वह लाचारों को बेमौत मारने की बीमारी है!
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