नए दौर के महाठगों ने ,
नव उदार चोला पहना।
निर्धन जन की नियति हो गई ,
शोषण को सहते रहना।।
सार्वजनिक सम्पत्त पर कब्जा,
अब निजी क्षेत्र का सारा है!
बैंक लुटेरे माल्यओं को,
किसने दिया सहारा है।।
'सबको शिक्षा सबको काम दो,
मेहनतकश का नारा है।
राष्ट्रनिर्माण से बंचित क्यों हैं,
ये भारत का सर्वहारा है।।
पूंजीवादी लोकतंत्र को,
भ्रस्टों का बड़ा सहारा है!
मेहनतकश भ्रम वश सोचें
कि सारा जहाँ हमारा है।।
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